आज यानी 2 अगस्त को नाग पंचमी है। ये त्योहार सावन के महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव के साथ-साथ नाग देवता की पूजा का भी बहुत महत्व है। नाग पंचमी पर घर की सुख शांति के लिए पूजा की जाती है। व्हाट्सएप के इस दौर में लोग घर बैठे ही दूर रह रहे परिवार के लोगों, दोस्तों व रिश्तेदारों को शुभ संदेश भेजते हैं। तो हम आपको ऐसे ही कुछ कोट्स या संदेश बता रहे हैं, जिन्हें भेजकर लोगों को बधाई दे सकते हैं।

करो भक्तों नाग देवता की पूजा दिल से, होंगे भोले बाबा बहुत खुश
नाग देवता को पंचमी पर चढ़ाओ दूध आप,
देंगे शिव वरदान, होंगे दूर सारे पाप

सावन का महीना है, नाग पंचमी का त्यौहार है
जो दिल से महादेव का नाम जपे, उसका बेड़ा पार है

देवों के देव महादेव का है आभूषण
भगवान विष्णु का शेषनाग है सिंहासन
अपने फन पर जिसने पृथ्वी को उठाया
उस नाग देवता को मेरा वंदन

इस नाग पंचमी पर नाग देवता का आर्शीवाद सदैव बना रहे,
जन-जन के जीवन में खुशियों का आवागमन सदैव लगा रहे

ओम भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग: प्रचोदयात्।
हैप्पी नाग पंचमी 2022

ऊं नमः शिवाय
शब्द में सारा जग समाए
हर इच्छा पूरी कर जाएं
भोले बाबा वो कहलाएं

करो भक्‍तों नाग देवता की पूजा दिल से,
होंगे भोले बाबा बहुत खुश,
नाग देवता को पिलाओ दूध पंचमी पर आप,
देंगे शिव वरदान, होंगे दूर सारे पाप!
नाग पंचमी की शुभकामनाएं

सावन का आया भक्‍तों महीना है,
नाग पंचमी का त्‍योहार है,
जो दिल से बाबा का नाम जपे हरदम,
उसका होता हमेशा बेड़ापार है!
नाग पंचमी की शुभकामनाएं

नाग देवता करें आपकी रक्षा
पिलाएं दूध उन्हें मीठा-मीठा,
हो आपके घर में धन की बरसात,
ऐसी शुभ हो नाग पंचमी की सौगात।।
नाग पंचमी की शुभकामनाएं

ये है शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारंभ: 2 अगस्त 2022, मंगलवार, प्रातः 05:14 से
पंचमी तिथि समाप्त: 3 अगस्त 2022, बुधवार, प्रातः 05:42 पर
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त: 2 अगस्त 2022, मंगलवार, प्रातः 06:06 से प्रातः 08:42 तक

ऐसे करें नाग देवता की पूजा
नाग पंचमी पर दरवाजों के किनारे पर सांप बनाकर पूजा की जाती है। सबसे पहले दरवाजों के दोनों तरफ पानी से शुद्ध कर लें और फिर उसपर कोयले से नाग बनाएं। फिर धूप, दीपक जलाकर इनकी पूजा करें और पुष्प अर्पण करें। नाग देवता की पूजा करने के बाद इन्द्राणी देवी की पूजा करे।

पूजा करते समय इस मंत्र का करें जाप
ॐ नवकुल नागाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि,
तन्नो सर्प: प्रचोदयात।