Daughter’s Day 2020 Date in India: भारत में डॉटर्स डे यानी बेटी दिवस 27 सितंबर को मनाया जा रहा है। हर साल सितंबर के चौथे रविवार को इसे मनाने का चलन है। बेटियों का घर में होना हर दिन को खास बनाता है। इसलिए एक दिन को उनके अस्तित्व को मनाने के लिए रखा गया है।
क्या है डॉटर्स डे का इतिहास (History of Daughter’s Day)
बेटियों को लेकर हमेशा से एक गलत धारणा बनी हुई है। लोग बेटे की चाह में बेटियों की भ्रूण हत्या कर देते है। लगभग सभी विकासशील और पिछड़े देशों की यही स्थिति है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच की गहरी खाई को पाटने के लिए संयुक्त राष्ट्र ( United Nations) सामने आया और 11 अक्टूबर 2012 को पहली बार लड़कियों के लिए एक दिन समर्पित किया गया। इसके बाद से ही हर देश में बेटियों के लिए एक दिन समर्पित किया गया है। डॉटर्स डे हर देश में अलग-अलग दिन मनाया जाता है।
वेस्टर्न क्लचर को फॉलो करते हुए अब भारत में भी बेटियों का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। भारत सरकार ने इसके लिए कई सराहनीय कदम भी उठाए। जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में बच्चों के लिंग अनुपात को बेहतर करने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का अभियान शुरू किया। पिछले सालों में डॉटर्स डे पर कई सोशल मीडिया कैंपेन भी चलाए गए जिसमें बेटियों के साथ अपनी तस्वीर को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना एक रहा है।
डॉटर्स डे का महत्व (Importance of Daughter’s Day/ Daughter’s Day Importance)
बेटियों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाने, असमानता को कम करने, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। इससे बाल – विवाह, महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा और यौन शोषण के प्रति भी जागरूकता फैलती है। साथ ही यह दिन बेटियों को सशक्त बनाने के प्रति भी सजग करता है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति आज भी ज्यादा बेहतर नहीं है। हर रोज हजारों की संख्या में भ्रूण हत्या होती है।
प्रतिदिन करीब 22 महिलाओं को दहेज के लिए मार दिया जाता है। हर 22 मिनट पर एक रेप की घटना रिपोर्ट होती है और हर 5 मिनट पर एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है। यह आंकड़ें दिखाते हैं कि अभी हमें महिलाओं के सशक्तिकरण और समाज को जागरूक बनाने के लिए एक नागरिक के तौर पर बहुत कुछ करना है। हालांकि आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपना दमखम दिखा रही हैं जो हमारे समाज के बदलते स्वरूप को दर्शाता है। डॉटर्स डे बेटियों के प्रति समाज की बदलती मानसिकता और उनके सशक्तिकरण का मानक है।
