महात्मा गांधी से जुड़े ऐसे काफी किस्से हैं, जिन्हें सुनकर लोग आज भी दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। महात्मा गांधी जब अपने एकमात्र कश्मीर दौरे (Gandhi in Kashmir) पर पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। बताया जाता है कि उस वक्त झेलम के पुल पर थोड़ी-सी जगह भी नहीं बची थी। गांधीजी को कश्मीर तक ले जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ा था। स्थानीय लोगों ने गांधी को ‘पीर’ कहा था।
गो-रक्षा शब्द का इस्तेमाल करने से भी बचते थे गांधीजी, वे कहते थे कि गो-रक्षक होने का दावा करने वाले ही गो-भक्षक होते हैं। गायों को रक्षा नहीं सेवा की जरूरत है। महात्मा गांधी की महानता से प्रभावित होने वालों में नेल्सन मंडेला और जॉन रस्किन तक कई दिग्गज हस्तियां शामिल हैं। वहीं उन पर भी लियो टॉल्सटॉय समेत कई दिग्गजों का प्रभाव रहा।
बिहार के डॉ. सैय्यद महमूद स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। एक बार वह सेवाग्राम स्थित बापू के आश्रम गए थे। बताया जाता है कि उस वक्त डॉ. महमूद बीमार थे और डॉक्टरों ने ‘चिकन सूप’ लेने की सलाह दी, लेकिन आश्रम में मांसाहार की अनुमति नहीं थी। गांधीजी को यह जानकारी मिली तो उन्होंने डॉ. महमूद को आश्रम में ही रुकने के लिए कहा। साथ ही, उनके लिए चिकन सूप तैयार भी कराया।
महात्मा गांधी की महानता से प्रभावित होने वालों में नेल्सन मंडेला और जॉन रस्किन तक कई दिग्गज हस्तियां शामिल हैं। वहीं उन पर भी लियो टॉल्सटॉय समेत कई दिग्गजों का प्रभाव रहा।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम का दौरा किया। गांधीजी की 150वीं जयंती पर वहां पहुंचे पीएम ने उनसे जुड़ी पुरानी चीजों को देखा।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, 'जिस विचारधारा ने महात्मा गांधी को मार डाला, वो अपने कार्यकर्ताओं से हर पंचायत में पदयात्रा करने को कह रही है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वो गांधीजी को कैसे प्रोजेक्ट करेंगे? आप गांधीजी की तरफ खड़े रहेंगे या गोडसे की?'
छुआछूत के खिलाफ महात्मा गांधी की लड़ाई में असम के जोरहाट का खास स्थान है। 1934 में यहां उन्होंने एक ब्राह्मण परिवार के नामघर के दरवाजे दलितों के लिए खोले थे। यह उनकी इस लड़ाई में एक लैंडमार्क माना जाता है।
गो-रक्षा शब्द का इस्तेमाल करने से भी बचते थे गांधीजी, वे कहते थे कि गो-रक्षक होने का दावा करने वाले ही गो-भक्षक होते हैं। गायों को रक्षा नहीं सेवा की जरूरत है।
गांधीजी अपने जीवन में सिर्फ एक बार कश्मीर गए थे। आजादी के 14 दिन पहले किए गए इस दौरे पर गांधी ने कहा था, 'कश्मीर का असली राजा, यहां की प्रजा है।'
महात्मा गांधी जब अपने एकमात्र कश्मीर दौरे पर पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। बताया जाता है कि उस वक्त झेलम के पुल पर थोड़ी-सी जगह भी नहीं बची थी। गांधीजी को कश्मीर तक ले जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ा था। स्थानीय लोगों ने गांधी को 'पीर' कहा था।
बापू फलों के काफी शौकीन थे, लेकिन चीनी से हमेशा परहेज करते थे। वहीं, आम उनका सबसे पसंदीदा फल था, जिसे देखकर वह रुक नहीं पाते थे। बापू ने आम के बारे में एक बात भी लिखी थी। उन्होंने 1941 में लिखा था, ‘‘आम एक शापित फल है। यह फल सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचता है।’’
गुजरात में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर अहमदाबाद के साबरमती आश्रम सहित कई स्थानों पर प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया गया। गांधी का घर कहे जाने वाले साबरमती आश्रम स्थित हृदय कुंज में आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना सभा में बड़ी संख्या में प्राथमिक विद्यालयों के बच्चे शामिल हुए। इस अवसर पर आश्रम ट्रस्ट के सदस्य, विख्यात गांधीवादी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। मुख्यमंत्री विजय रूपानी पोरबंदर के कीर्ति मंदिर में एक प्रार्थना सभा में शामिल हुए। इसी घर में आज के दिन 1869 में महात्मा गांधी का जन्म हुआ था।
मोहन दास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अविस्मरणीय योगदान है। गांधीजी की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उन्होंने तब के बिखरे हुए समाज को एकजुट कर स्वतंत्रता प्राप्ति के महायज्ञ में लगा दिया था। बापू के नेतृत्व में यूं तो कई छोटे-बड़े कई आंदोलन हुए, लेकिन कुछ ऐसे भी आंदोलन थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय समाज की दिशा बदलने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
दिसंबर 1920 तक गांधीजी को महात्मा गांधी कहा जाने लगा था। उस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक हुई, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना ने बापू को महात्मा कहने से इनकार कर दिया। ऐसे में गांधीजी ने कहा, ‘‘मैं महात्मा नहीं हूं। मैं साधारण आदमी हूं। जिन्ना साहब को कोई खास शब्द बोलने के लिए कहकर आप मेरा सम्मान नहीं कर रहे हैं। हम दूसरों पर अपने विचार थोपकर असली आजादी हासिल नहीं कर सकते।’’ इसके बाद सभी लोग शांत हो गए।
1946 में बापू दिल्ली के मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि कॉलोनी में आए और 214 दिन तक यहीं रुके। उस दौरान उन्हें पता चला कि वाल्मीकि होने के कारण बस्ती में रहने वाले बच्चों को कोई नहीं पढ़ाता था। बापू ने खुद ही बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया और धीरे-धीरे उनके पास गोल मार्केट, पहाड़गंज और इरविन रोड आदि इलाकों से बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे।
बिहार के डॉ. सैय्यद महमूद स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। एक बार वह सेवाग्राम स्थित बापू के आश्रम गए थे। बताया जाता है कि उस वक्त डॉ. महमूद बीमार थे और डॉक्टरों ने 'चिकन सूप' लेने की सलाह दी, लेकिन आश्रम में मांसाहार की अनुमति नहीं थी। गांधीजी को यह जानकारी मिली तो उन्होंने डॉ. महमूद को आश्रम में ही रुकने के लिए कहा। साथ ही, उनके लिए चिकन सूप तैयार भी कराया।
8 अगस्त 1942 की शाम को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बंबई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया गया था। हालांकि गांधी जी को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के जरिए आंदोलन चलाते रहे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर दी गई थी।
भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त 1942 को आरंभ किया गया था। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद बापू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया।
8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की। उनका यह आंदोलन समाज से अस्यपृश्यता मिटाने के लिए था। उन्होंने हरिजन नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भी किया था। हरिजन आंदोलन में मदद के लिए गांधी जी ने 21 दिन का उपवास किया था। दलितों के लिए हरिजन शब्द गांधी जी ने ही दिया था। हरिजन से उनका तात्पर्य था ईश्वर का आदमी।
उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर बुधवार को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए देशवासियों से उनके बताए मार्ग पर चलने का आह्वान किया।
पूना समझौते के बाद गांधी जी ने खुद को पूरी तरह से हरिजनों की सेवा में समर्पित कर दिया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने 1932 ई. में 'अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग' की स्थापना की।
उस दौर में अंग्रेजों ने ने चाय, कपड़ा, यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा था। उस समय बापू ने दांडी में नमक बनाकर अंग्रेजी कानून को तोड़ा था।
नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ 12 मार्च, 1930 में बापू ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था।
नमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलन में से एक था। इसे दांडी मार्च के नाम से भी जाना जाता है।
यह एक तरह से अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की असहयोग की शुरुआत थी। तब गांधी जी ने कहा था कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा। गांधी के इस आंदोलन ने अंग्रेजी साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था।
रॉलेट सत्याग्रह की सफलता के बाद 1 अगस्त 1920 महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन के माध्यम से गांधीजी ने लोगों से आग्रह किया कि जो भारतीय उपनिवेशवाद का खत्म करना चाहते हैं वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएं और न ही कर चुकाएं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि महात्मा गांधी का पूरी दुनिया में सम्मान है। उन्होंने सभी को सांप्रदायिक एकता, अस्पृश्यता को दूर करने और महिलाओं के उत्थान का मार्ग दिखाया था। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में कोविंद ने कहा कि यह सभी के लिए सत्य, अहिंसा, सौहार्द, नैतिकता और सादगी के मूल्यों के प्रति फिर से सर्मिपत करने के लिये एक विशेष अवसर है। कोविंद ने कहा कि सत्य, अहिंसा और सर्वोदय मानवता के प्रति महात्मा गांधी के अनेक संदेशों के आधार रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर बुधवार को राजघाट पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी राष्ट्रपिता को पुष्पांजलि अर्पित की। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने इस अवसर पर कई समारोह आयोजित किए जाने की योजना बनाई है।
गांधीजी ने नमक आंदोलन से सिखाया कि अगर शासन अन्यायी है तो उसका विरोध करो। लेकिन यह विरोध अहिंसात्मक हो। अगर आप सत्य के साथ हैं तो जीत आपकी जरूर होगी।
महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा और सत्याग्रह के प्रति उनकी मुकम्मल सोच शायद साकार नहीं हो पाती, अगर स्थानीय भारतवंशी कारोबारी उन्हें यहां आने का प्रस्ताव नहीं देते। लंदन में कानून की पढ़ाई करने गए नौजवान मोहनदास करमचंद गांधी अपने गृह नगर पोरबंदर में वकालत जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उसी दौरान उन्हें एक साल के लिए दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन ट्रांसवाल प्रांत में काम का प्रस्ताव आया था। परिवार के चौथी पीढ़ी के वंशज एबी मूसा याद करते हुए बताते हैं कि किस तरह उनके पूर्वज गांधीजी को यहां लेकर आए और दक्षिण अफ्रीका में भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह का मार्ग उन्होंने चुना तथा अंिहसक प्रतिरोध के इसी रास्ते का अनुसरण करते हुए बाद में गोरों से भारत को आजाद कराया।
अगर आप भी गांधी जयंती पर भाषण अथवा निबंध प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं तो ये सामग्री आपकी काफी मदद कर सकती है। लोगों के सामने बेहतर तरीके से अपनी बातों को रखने के लिए जरूरी है कि आप बेहतर तरीके से अपना भाषण तैयार करें। ऐसे में अपने भाषण या निबंध लिखने के लिए आप इन कुछ सामग्रियों का सहारा ले सकते हैं।
गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में हम सभी ने सुना है। बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो के प्रतीक स्वरूप ये तीनों बंदर हमें जीवन जीने के सही तरीके के बारे में बताते हैं। इस संदेश को अगर हम अपने जीवन में उतार लें तो हमारी कितनी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएं।
अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ गांधी ने उस समय चंपारण पहुंचकर इस आंदोलन का शंखनाद किया। उन्होंने उस समय जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को नेतृत्व किया। तब उनके समर्थन में हजारों की संख्या में किसान एकत्रित हो गए थे। पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने गांधीजी को जिला छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
उस समय अंग्रेजों और और उनके पिट्ठू जमींदारों द्वारा हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानों को खाद्यान के बजाय नील एवं अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
बिहार के चंपारण जिले में सन 1917-18 महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है।
महात्मा गांधी का जिंदगी तमाम मानवीय आदर्शों की प्रयोगशाला रही है। उन्होंने मानव जीवन के लिए सही माने जाने वाले तमाम आदर्शों का प्रयोग अपने जीवन में किया था।
बताया जाता है कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन भी महात्मा गांधी के मुरीद थे। उन्होंने कहा था कि आने वाली नस्लों को मुश्किल से ही इस बात पर विश्वास होगा कि हांड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर आया था।
महात्मा गांधी का जिंदगी तमाम मानवीय आदर्शों की प्रयोगशाला रही है। उन्होंने मानव जीवन के लिए सही माने जाने वाले तमाम आदर्शों का प्रयोग अपने जीवन में किया था। गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में हम सभी ने सुना है। बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो के प्रतीक स्वरूप ये तीनों बंदर हमें जीवन जीने के सही तरीके के बारे में बताते हैं। इस संदेश को अगर हम अपने जीवन में उतार लें तो हमारी कितनी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएं।
महात्मा गांधी को विश्व पटल पर अहिंसा के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है। उनके जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में हिंसा से त्रस्त दुनिया को जब भी शांति की जरूरत महसूस होती है तब वह हमारे देश की ओर और महात्मा गांधी के आदर्शों की ओर निहारता है।
परमाणु हथियारों के इस युग में गांधी इसीलिए दुनिया की अपरिहार्य जरूरत नजर आते हैं क्योंकि उन्होंने तत्कालीन वक्त के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को भी सिर्फ अहिंसा और असहयोग के बल पर अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर दिया था। यह एक अद्भुत किस्म का क्रांतिकारी प्रयोग था। बाद में इसी प्रयोग को दुनिया के कई देशों में अन्यायी प्रशासन के खिलाफ लड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
महात्मा गांधी उस शख्सियत को कहा जाता है जिसने बिना हथियार उठाए भारत में तकरीबन 200 सालों से अपनी जड़ें जमाए आततायी, निरंकुश और अन्यायी अंग्रेजी शासन का तख्त हिलाकर रख दिया था। अहिंसा का इससे सशक्त उदाहरण दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलता।
चंपारण के बाद उन्होंने भारतीय मुसलमानों के खिलाफत मूवमेंट को अपना सहयोग प्रदान किया। गांधी जी ने मुसलमानों को भी अपने पक्ष में कर लिया और देश में हो रहे हिन्दू -मुस्लिम दंगों पर कुछ सालों के लिए लगाम लग गयी।