भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956) का जन्म एक महार दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता ने मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में महू छावनी में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की। अपनी जाति के अधिकांश बच्चों के विपरीत, युवा भीम ने स्कूल में पढ़ाई की थी। हालांकि, उन्हें और उनके दलित मित्रों को कक्षा के अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी। शिक्षक उनकी नोटबुक को नहीं छूते थे। जब उन्होंने पानी पीने की गुहार लगाई, तो स्कूल के चपरासी (जो ऊंची जाति के थे) ने पीने के लिए ऊंचाई से पानी डाला। चपरासी के अनुपलब्ध होने के दिन, युवा भीम और उसके दोस्तों को पानी के बिना दिन गुजारना पड़ता था।
सीखने और पढ़ाई में गहरी रुचि होने के कारण, भीम बॉम्बे के प्रतिष्ठित एल्फिंस्टन हाई स्कूल में दाखिला लेने वाले पहले दलित बन गए थे। बाद में उन्होंने तीन साल के लिए बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति जीती और न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की। उन्होंने जून 1915 में अपनी M.A की परीक्षा पास की और अपना शोध जारी रखा।
भारतीय समाज, अर्थशास्त्र और इतिहास के साथ काम करने वाले तीन महत्वपूर्ण शोधों को पूरा करने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां उन्होंने डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। वह अगले चार साल तक लंदन में रहें और दो डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की। उन्हें पचास के दशक में दो और मानद डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया गया था।
1924 में भारत लौटने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ एक सक्रिय आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। 1924 में, उन्होंने भारत में जाति व्यवस्था को उखाड़ने के उद्देश्य से, बहिश्रक हितकारिणी सभा की स्थापना की। संगठन ने सभी आयु समूहों के लिए मुफ्त विद्यालय और पुस्तकालय चलाए। डॉ. अंबेडकर ने दलितों की शिकायतों को अदालत में ले गए, और उन्हें न्याय दिलाया।

