उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां राजनीतिक पार्टियों ने शुरू कर दी है हैं। ऐसे में बीएसपी ने भी अपनी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। हाल ही में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने पार्टी नेताओं के साथ मीटिंग की थी। मायावती ने इसमें कहा कि उनके लिए पद से ज्यादा जरूरी दलितों को उनका अधिकार दिलाना है। एक बार ऐसा ही मौका आया था जब राज्यसभा में दलितों का मुद्दा न उठाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सदन से इस्तीफा दे दिया था।
साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। मायावती राज्यसभा में थीं और सहारनपुर हिंसा का मुद्दा काफी चर्चा में था। उन्होंने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाने के लिए समय मांगा था। तत्कालीन राज्यसभा उपसभापति पीजे कुरियन ने उन्हें तीन मिनट में अपनी बात खत्म करने के लिए कहा था। अपने भाषण के दौरान उन्होंने सहारनपुर हिंसा के लिए बीजेपी सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।
मायावती के इतना कहते ही बीजेपी सांसदों की तरफ से आपत्ति दर्ज करवाई गई और वह अपनी बात खत्म भी नहीं कर पाई थीं। कुरियन ने उन्हें बोलने से रोकते हुए कहा था कि आपका समय खत्म हो गया है इसलिए आप बैठ जाइए। बीएसपी सुप्रीमो ने भी पलटकर जवाब पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे तो बोलने ही नहीं दिया गया। उपसभापति के बार-बार रोकने के बाद वह नाराज़ हो गई थीं और सदन से इस्तीफा देने की बात कहते हुए बाहर चली गई थीं।
शाम को मायावती तत्कालीन राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को अपना इस्तीफा सौंप देती हैं। उन्होंने इस्तीफा देने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था, मैं शोषितों, मजदूरों, किसानों और खासकर दलितों के उत्पीड़न की बात सदन में रखना चाहती थी। सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जो दलित उत्पीड़न हुआ है, मैं उसकी बात उठाना चाहती थी, लेकिन सत्ता पक्ष के सभी लोग एक साथ खड़े हो गए और मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया।
सहारनपुर विवाद: ‘बीबीसी’ के मुताबिक, 5 मई को सहारनपुर के पास के शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया था। कथिततौर पर शब्बीपुर गांव से कुछ लोग शोभा यात्रा निकाल रहे थे, जिसे अन्य लोगों के द्वारा रोकने का प्रयास किया गया था। दावा किया गया था कि इसके बाद ही ये पूरा विवाद शुरू हुआ था, जिसमें कई जगह हिंसा और आगजनी की खबरें भी आई थीं।