आजादी से पहले देश में 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतें थीं। इन रियासतों से एकत्रित होने वाले कर पर वहां के राजा, महाराजा, रजवाड़ों और निजाम का हक होता था। यही वजह थी कि अधिकतर रियासतों के प्रमुख अकूत धन-दौलत के मालिक थे और अपने ऐशो-आराम पर पानी की तरह पैसा बहाते थे। ऐसी ही एक रियासत थी पटियाला। पटियाला स्टेट की स्थापना साल 1763 में हुई थी और 1938 आते-आते पटियाला के आठवें महाराजा बने यादवेंद्र सिंह। उन्हें मोटर कारों का बहुत शौक था।
यादवेंद्र सिंह के शाही ठाठबाट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके लिए महीने में दो बार जहाज से लंदन से चाय पत्ती और बिस्किट आया करता था। चर्चित लेखक और इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिड नाइट’ में लिखते हैं महाराजा को चांदी की एक खास ट्रे में चाय सर्व की जाती थी।
इस ट्रे को विशेषतौर पर साल 1921 में ऑर्डर पर मंगवाया गया था। इसके अलावा उनकी जो चायदानी थी उस पर सोने का पानी चढ़ा था। महाराजा खास चाय पीते थे। लंदन की प्रसिद्ध कंपनी फोर्टनम एंड मेसन हवाई जहाज से महीने में दो बार महाराजा के लिए चाय की पत्ती और बिस्कुट भेजती थी।
नरेंद्र-मंडल के अध्यक्ष थे यादवेंद्र सिंह: यादवेंद्र सिंह दुनिया के सबसे अद्भुत संगठन के अध्यक्ष थे। जिसका नाम था ”नरेंद्र मंडल” यानी चांसलर ऑफ द चैंबर ऑफ इंडियन प्रिंसेज। जैसा कि नाम से ही साफ है, उस वक्त तमाम रियासतों के प्रमुख किसी भी खास मुद्दे पर बगैर यादवेंद्र सिंह की सलाहियत के आगे नहीं बढ़ते थे।
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बता दें, साल 1892 में जब पटियाला के महाराजा ने पहली बार फ्रांसीसी कंपनी डी-डियान से अपने लिए कार मंगवाई तो तमाम रियासतों, खासकर अमीर रजवाड़ों के बीच ये बात चर्चा का विषय बन गई थी। इसके बाद ही अन्य रियासतों के महाराजा को भी मोटरकारों का शौक चढ़ा और भारत में रॉल्स रॉयस की एंट्री शुरू हुई।