1 जनवरी 1894 को कोलकाता में जन्‍मे सत्‍येंद्र नाथ बोस की शुरुआती पढ़ाई नदिया जिले के बाड़ा जगुलिया गांव में हुई। उन्‍होंने कोलकाता के प्रेजिडेंसी कॉलेज से इंटर किया जहां जगदीश चंद्र बोस और प्रफुल्‍ल चंद्र रे जैसे विद्वानों ने उन्‍हें पढ़ाया। सत्‍येंद्र नाथ के पिता सुरेंद्रनाथ बोस ईस्‍ट इंडियन रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में काम करते थे। सत्‍येंद्र नाथ उनके सात बच्‍चों में सबसे बड़े थे।

1920 के दशक में क्‍वॉन्‍टम फिजिक्‍स में किए गए उनके काम के लिए उन्हें दुनिया भर में जाना जाता है। गूगल ने 4 जून को अपने होम पेज पर Satyendra Nath Bose की एक एनिमेटेड तस्वीर डालकर उन्हें याद किया है, आइए जानते हैं आखिर कौन थे Satyendra Nath Bose और क्यों गूगल ने उन्हें आज याद किया?

सत्येंद्र नाथ बोस के नाम रखा गया ‘बोसॉन पार्टिकल’

बोस और आइंस्‍टाइन स्टेटिक्स अध्यन्न के दौरान पॉल दीयरिक, आइंस्‍टाइन और सत्येंद्र नाथ बोस ने साथ में कार्य किया। इसी समय एक विशेष तरह की कणों की खोज हुयी। इस कण का नाम सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर रखने का फैसला लिया और कण का नाम बोसॉन रखा गया।

बता दें कि भौतिक विज्ञान में दो प्रकार के सब-एटामिक पार्टिकल्स माने जाते हैं- बोसॉन और फर्मियान। भौतिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए विज्ञानी पाल डिरक ने ‘बोसॉन पार्टिकल’ का नाम उन पर रखा था। बोस की खोज क्वांटम फिजिक्स को नई दिशा प्रदान में उपयोगी साबित हुई।

1924 में ढाका यूनिवर्सिटी में फिजिक्‍स डिपार्टमेंट में रीडर के तौर पर उन्‍होंने क्‍वॉन्‍टम स्‍टेटिक्‍स पर एक पेपर लिखा और इसे मशहूर वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्टाइन के पास भेजा। आइंस्‍टाइन इससे बहुत प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में छपने भेजा। इसी पहचान के आधार पर सत्‍येंद्र नाथ को यूरोप की साइंस लैब में काम करने का मौका मिला।

सत्येंद्र बोस के काम से आइंस्‍टाइन हुए थे प्रभावित

ढाका यूनिवर्सिटी में फिजिक्‍स डिपार्टमेंट में रीडर के तौर पर बोस ने साल 1924 में क्‍वॉन्‍टम स्‍टेटिक्‍स पर एक पेपर लिखा और इसे चेक करने के लिए वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्टाइन के पास भेजा गया। इस पेपर को देखकर आइंस्‍टाइन इससे बहुत प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में छपने भेजा। इसी पहचान के आधार पर सत्‍येंद्र नाथ को यूरोप की साइंस लैब में काम करने का मौका मिला।

जब बोस का आइंस्‍टाइन से हुआ संपर्क

1924 के बाद बोस आइंस्‍टाइन के सीधे संपर्क में आए और आइंस्‍टाइन ने भी बोस के साथ कार्य करने की इक्छा इच्छा जताई। साल 1924 के बाद बोस भारत के बाहर जाकर शोध कार्य करना चाहते थे, बोस ने विशेष आग्रह कर आइंस्‍टाइन से प्रशंसा पत्र को ढाका विश्वविद्यालय में सम्मलित कर दो वर्ष के लिए अवकाश प्राप्त किया और यूरोप के लिए रवाना हो गए।

अक्टूबर, 1924 में सत्येंद्रनाथ यूरोप पहुँचे। बोस पहले एक वर्ष पेरिस में रहे। फ्रांस में रहते हुए बोस ने ‘रेडियोधर्मिता’ में ‘मैडम क्यूरी’ के साथ तथा ‘मॉरिस डी ब्रोग्ली’ (लुई डी ब्रोग्ली के भाई) में ’एक्स-रे’ शोध में साथ में काम किया।

अक्तूबर 1925 में वे बर्लिन गए और आखिर में आइंस्‍टाइन से पहली बार व्यक्तिगत तौर पर मिले। यह मुलाक़ात बोस और आइंस्‍टाइन दोनों के लिए ख़ास थी। इसी समय बोस-आइंस्‍टाइन स्टेटिक्स और बोस- आइंस्‍टाइन कनडेनसेट (Bose-Einstein Condensate) ( एक तरह की स्टेट ऑफ मैटर) संकल्पना हुई।

इन क्षेत्रों में भी किया काम

बंगाली होने के नाते, उन्होंने बंगाली को एक शिक्षण भाषा के रूप में बढ़ावा देने, उसमें वैज्ञानिक पत्रों का अनुवाद करने और क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वहीं भौतिक विज्ञान में शोध करने के अलावा, उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी और साहित्य (बंगाली और अंग्रेजी) में भी कुछ शोध किये थे। बोस रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, प्राणीशास्त्र, नृविज्ञान, इंजीनियरिंग और अन्य विज्ञानों में गहरा अध्ययन किया।

कला और संगीत के थे प्रेम

सत्येंद्र नाथ बोस को ललित कला और संगीत में रुचि थी। बोस इसराज और बांसुरी बजाया करते थे। बोस के संगीत प्रेम का दायरा लोक संगीत, भारतीय संगीत से लेकर पाश्चात् संगीत तक फैला हुआ था। प्रो. धुरजटी दास बोस के मित्र थे। वह जब भारतीय संगीत पर पुस्तक लिख रहे थे तब बोस ने उन्हें काफ़ी सुझाव दिए थे। प्रो. दास के अनुसार बोस यदि वैज्ञानिक नहीं होते तो वह एक संगीत गुरु होते।