उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है। 16 मरीजों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इनके अलावा दो और मरीजों में स्वाइन फ्लू के लक्षण पाए गए हैं। इनका इलाज देहरादून के श्री महंत इंद्रेश अस्पताल में चल रहा है। पूरे राज्य में बीते एक महीने में 48 मरीजों में स्वाइन फलू की पुष्टि हुई है। उत्तराखंड के श्री महंत इंद्रेश अस्पताल में सोमवार को हरिद्वार की रहने वाली एक महिला मरीज की स्वाइन फ्लू से मौत हो गई। उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीजों में से श्री महंत इंद्रेश अस्पताल में 14, मैक्स अस्पताल देहरादून और दून राजकीय चिकित्सालय में एक-एक मरीज का इलाज चल रहा है।
उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे ने सभी मरीजों की मौत की असली वजहों की जांच करने का फैसला किया है। राज्य स्वास्थ्य महानिदेशालय ने राज्य के सभी तेरह जिलों को संदिग्ध मरीजों की मौत के मामले में डैथ ऑडिट अनिवार्य रूप से करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही डैथ आॅडिट के बाद ही मृत्यु के वास्तविक कारणों की जानकारी सार्वजनिक करने का फैसला किया है। देहरादून के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ एसके गुप्ता ने इस बात की पुष्टि की है कि श्री महंत इंद्रेश अस्पताल में 65 साल की हरिद्वार निवासी एक महिला मरीज की स्वाइन फलू से मौत हुई है। इसके अलावा स्वाइन फ्लू के दो नए मरीजों की पुष्टि हुई है। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ ताराचंद पंत ने कहा कि स्वाइन फ्लू के मामले में डैथ आॅडिट कराने के बाद ही मृत्यु के वास्तविक कारणों को लेकर कुछ कहेंगे।
स्वाइन फ्लू में हम केवल राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र की रिपोर्ट को ही मानते हैं। श्री महंत इंद्रेश अस्पताल के वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी भूपेन्द्र रतूड़ी का कहना है कि स्वाइन फ्लू के संदिग्ध मरीजों के खून के एक नमूने की जांच अस्पताल खुद करता है और दूसरे नमूने को मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी के दफ्तर में जांच के लिए भेजा जाता है। हमारे अस्पताल में भर्ती सभी मरीजों और मृतकों की रिपोर्ट मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी के दफ्तर में भेजी गई है।
क्या है डैथ ऑडिट
स्वास्थ्य महानिदेशालय के मानक के अनुसार कोई भी मरीज विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हो सकता है। परंतु उसकी मौत उनमें से किसी एक बीमारी से होती है। ऐसे में मरीज की मौत के वास्तविक कारणों को जानने के लिए डैथ आॅडिट किया जाता है। इसमें विशेषज्ञ मरीज की रिपोर्ट का अध्ययन कर मौत के वास्तविक कारणों को पता लगाते हैं।
स्वाइन फ्लू के लक्षण और बचाव
दून मेडिकल कॉलेज देहरादून के मेडिसीन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ केसी पंत का कहना है कि स्वाइन फ्लू वायरस जाड़ों में ही फैलता है। सर्दी, जुकाम, बुखार, लगातार नाक बहने, छीकें आने, लगातार खांसी और बहुत अधिक मात्रा में बलगम आने, सिर में बहुत तेज दर्द होने, बहुत ज्यादा थकान लगने, नींद ना आने, मांसपेशियों में अकड़न और दर्द होने, गले में खुश्की और खराश होने पर स्वाइन फ्लू के लक्षणों का आभास होता है। इससे बचने के लिए सर्दियों में खांसी, जुकाम के लक्षणों को हलके में ना लें, हाथ मिलाने और गले मिलने से बचे, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से परहेज करें, मास्क पहनकर भीड़-भाड़ वाली जगहों और अस्पतालों में जाएं। खांसते और छीकते समय नाक और मुंह पर रूमाल रखें तथा जाड़ों में गर्म पानी से नहाएं और गुनगुना पानी पीएं।

