CJI Shoe-Throwing Incident: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर जूता फेंकने वाले वकील के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिए इच्छुक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सीजेआई ने खुद उसके खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालत में नारे लगाना और जूते फेंकना स्पष्ट रूप से अदालत की अवमानना का मामला है लेकिन यह संबंधित न्यायाधीश पर निर्भर करता है कि वह आगे बढ़ना चाहते हैं या नहीं।
बेंच ने कहा, “अवमानना नोटिस जारी करने से सीजेआई पर जूता फेंकने वाले वकील को अनावश्यक महत्व मिलेगा और घटना की अवधि बढ़ जाएगी।” कोर्ट ने कहा कि इस मामले को ऐसे ही खत्म कर दिया जाए। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एससीबीए की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने शुरू में आरोप न लगाने का फैसला किया था, लेकिन बाद में किशोर ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में अपनी हरकत का बखान किया और इसे दोहराने की कसम खाई। सिंह ने दलील दी, “इस पूरे मामले का महिमामंडन किया जा रहा है। अदालत के पास यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं कि ऐसा दोबारा न हो।”
एससीबीए के वकील ने क्या तर्क दिया?
सिंह ने आगे कहा, “चूंकि मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें जाने दिया, इसलिए उनका हौसला बढ़ गया। अगर उन्हें उसी दिन जेल ले जाया जाता, तो शायद यह महिमामंडन न होता।” हालांकि, जस्टिस कांत ने पूछा कि कोर्ट को इस व्यक्ति को इतना महत्व क्यों देना चाहिए। इसके बाद जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने एक अहम कानूनी सवाल उठाया।
ये भी पढ़ें: कौन हैं CJI पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा, “जूता फेंकना या नारे लगाना धारा 14 के तहत न्यायालय की अवमानना का कृत्य है। ऐसे मामलों में, अवमानना शुरू करने या न करने का फैसला संबंधित न्यायाधीश पर छोड़ दिया जाता है। मुख्य न्यायाधीश ने अपनी उदारता में इसे नजरअंदाज कर दिया। क्या अवमानना के लिए सहमति देना किसी अन्य पीठ या यहां तक कि अटॉर्नी जनरल के अधिकार क्षेत्र में आता है? कृपया धारा 15 देखें।”
मुख्य न्यायाधीश ने आगे नहीं बढ़ने का विकल्प चुना- जस्टिस कांत
इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने धारा 14 के तहत आगे न बढ़ने का विकल्प चुना है, इसलिए किसी अन्य प्राधिकारी के लिए इस मुद्दे को फिर से उठाना संभव नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “यह न्यायालय की अवमानना का अंत है।”
क्या था पूरा मामला?
अब मामले की बात करें तो 6 अक्टूबर को वकील राकेश किशोर ने अदालती कार्यवाही के दौरान मुख्य न्यायाधीश गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन के आसन की ओर जूता फेंका था। इसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर का वकालत का लाइसेंस निलंबित कर दिया था। किशोर का यह गुस्सा कथित तौर पर खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना से संबंधित एक मामले में मुख्य न्यायाधीश गवई की पूर्व टिप्पणी से जुड़ा था।
ये भी पढ़ें: ‘मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं’, भगवान विष्णु टिप्पणी विवाद पर CJI बीआर गवई ने अपना रुख साफ किया
