पॉक्सो के तहत नामित एक स्पेशल कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक प्रिंसिपल और एक टीचर (रिटायर) को उनके स्कूल में विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के लिए दोषी ठहराया। स्पेशल जज सत्यनारायण आर नवंदर ने 12 दिसंबर के अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा, “स्कूल एक पवित्र संस्थान है। बच्चे अपने शिक्षकों पर भरोसा करते हैं और उन्हें जीवन का मार्गदर्शक मानते हैं। यदि इस भरोसे को तोड़ा जाता है और जब स्वयं ईश्वर तुल्य व्यक्ति यौन उत्पीड़न करता है, तो निःसंदेह पीड़ित जीवन भर आघात से ग्रस्त रहेंगे।

अपनी शिकायत में एक 13 साल की श्रवण और वाक् बाधित लड़की ने कहा था कि जब से उसने स्कूल में दाखिला लिया था, आरोपी लड़कियों को अपने ऑफिस में बुलाता था और उनके साथ दुर्व्यवहार करता था। शिकायत में कहा गया है कि 2013 में, जब छुट्टियों के बाद स्कूल खुला, तो आरोपी प्रिसिंपल ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया और उसका यौन उत्पीड़न किया और वह अन्य लड़कियों के साथ भी इसी तरह की हरकतें करता था। हालांकि, शिकायत में कहा गया है कि निष्कासन के डर से न तो शिकायतकर्ता और न ही अन्य पीड़ितों ने इन घटनाओं का खुलासा अपने परिवार के सदस्यों के साथ किया।

अभिभावकों ने शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया

यह भी आरोप लगाया गया कि स्कूल में टीचर के रूप में कार्यरत दूसरा आरोपी भी नाबालिग छात्राओं का यौन उत्पीड़न करता था। मई 2014 में, संगठन के पूर्व अध्यक्ष के साथ हुई अभिभावक-छात्र बैठक में यह खुलासा हुआ कि आरोपी नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण कर रहे थे। उक्त बैठक के बावजूद उनकी हरकतें जारी रहने पर, पीड़ितों और उनके अभिभावकों ने शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया, जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।

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पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई- स्पेशल जज

स्पेशल जज सत्यनारायण आर नवंदर ने अपने आदेश में कहा, “शिक्षकों के रुतबे के कारण ही अभिभावकों ने पीड़ितों की बात पर विश्वास नहीं किया। हालांकि, जब ये अवैध कृत्य जारी रहे, पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई और उन पर बार-बार हमले किए गए, तब उन्होंने आवाज उठाई और कानून व्यवस्था का सहारा लिया। शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए, सीमित सहायता के साथ, पुलिस के पास जाना और शिकायत दर्ज कराना आसान नहीं था। उनके द्वारा उठाए गए कदम ही उनके द्वारा झेली गई यातना की गंभीरता को दर्शाते हैं। इसलिए, सजा सुनाते समय आरोपियों के प्रति कोई विशेष नरमी नहीं बरती जा सकती।”

जज ने टिप्पणी करते हुए कहा, “आमतौर पर, दुर्व्यवहार करने वाले पीड़ित के करीबी लोगों में से ही होते हैं। वे समाज में उच्च पद और गरिमापूर्ण व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि बच्चों द्वारा किसी शिक्षक जैसे प्रभावशाली और प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा किए गए यौन शोषण के बारे में बताने पर माता-पिता या तो विश्वास नहीं करते या उसे गंभीरता से नहीं लेते। केवल इसलिए कि माता-पिता ने पीड़ितों पर विश्वास नहीं किया या उन्होंने तुरंत कार्रवाई नहीं की, यह नहीं कहा जा सकता कि पीड़ितों के साक्ष्य झूठे या असत्य हैं।”

हालांकि, स्पेशल जज ने कहा कि आरोपी व्यक्ति अब वरिष्ठ नागरिक (रिटायर) हैं और उनकी ज्यादा उम्र और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराध के लिए न्यूनतम सजा देना उचित होगा और उन पर पांच साल का कठोर कारावास लगाया।

पीड़ितों को दिया जाए मुआवजा

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि आरोपियों पर लगाए गए जुर्माने (तीनों पीड़ितों के लिए 15,000 रुपये प्रत्येक) से पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए, क्योंकि अदालत ने कहा कि यह राशि अपर्याप्त थी। कोर्ट ने कहा, “जब न्यायालय अभियुक्तों के अवैध कृत्यों के कारण पीड़ितों की पीड़ा और कष्ट को स्वीकार करता है, तो न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें पर्याप्त मुआवजा मिले। अन्यथा, न्याय पूर्ण नहीं होगा।” इसलिए, इसने मामले को डीएलएसए को सौंप दिया ताकि उन्हें पीड़ित मुआवजा योजना के तहत उचित मुआवजा दिया जा सके।

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