सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि सिर्फ शादी से इनकार कर देने भर से किसी व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 107 के तहत मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। इसे आत्महत्या के लिए उकसाने (Abetment of Suicide) के बराबर नहीं माना जा सकता।

यह फैसला जस्टिस डी. बी. पारडीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने दिया। यह मामला यादविंदर उर्फ सनी द्वारा दायर याचिका से जुड़ा था। दरअसल, एक मामले में मृतक युवती की मां ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली क्योंकि आरोपी युवक ने शादी का वादा करने के बाद शादी से इनकार कर दिया था। अभियोजन पक्ष का कहना था कि पहले लड़की को शादी का आश्वासन दिया गया और बाद में विश्वासघात किया गया, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली।

इससे पहले हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे यह साबित हो सके कि आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) और धारा 107 (उकसावे की परिभाषा) के तहत कोई मामला बनता है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों- निपुण अनीता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और जियो वर्गीज बनाम राजस्थान राज्य — का भी उल्लेख किया। बेंच ने कहा कि “उकसावा तभी माना जा सकता है जब जानबूझकर मदद करने की मानसिक प्रक्रिया शामिल हो”। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ शादी से इनकार करना, भले ही वह सच्चा कारण ही क्यों न हो, आईपीसी की धारा 107 के तहत ‘उकसावे’ के बराबर नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने यह जरूर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक युवती ने अपनी जान गंवाई। जजों ने टिप्पणी की, “संभव है कि उसके दिल को ठेस पहुंची हो, या वह भावनात्मक रूप से टूट गई हो। लेकिन अदालत केवल रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों के आधार पर ही निर्णय दे सकती है।”