प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मंदिर में फूल, माला या प्रसाद पैर के नीचे आने पर पाप नहीं लगता। यदि अनजाने में ऐसा हो जाए, तो उसे उठाकर माथे पर लगाएं, जेब में रखें और बाद में पवित्र नदी में प्रवाहित करें। भीड़ में न उठा पाने पर सिर झुकाकर माफी मांग लें। प्रसाद को कपड़े या आंचल में लें। यह भक्तों को भगवान की कृपा पाने और सकारात्मकता बनाए रखने में मदद करता है।