पिछले दो दशक में निशानेबाजी में भारतीय सफलता का ग्राफ चढ़ा है। मैक्सिको में हाल ही में संपन्न आइएसएसएफ विश्व कप में युवा भारतीय निशानेबाजों ने अपने उम्दा प्रदर्शन से सुनहरा दौर बने रहने की आस जगाई है। पर लगातार बदल रही परिस्थितियों से इस कला के फनकारों में मायूसी है। दरअसल, उनके खेल को ही अब निशाना बनाया जा रहा है।
दो साल पहले रियो ओलंपिक में निशानेबाजी की कुछ स्पर्धाओं में कटौती की गई थी। अब 4 से 15 अप्रैल तक आस्ट्रेलियाई शहर गोल्ड कोस्ट में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए आयोजकों ने खिलाड़ियों का कोटा तय कर दिया है। इससे निशानेबाजों में हताशा है। इससे भी बड़ा दर्द यह है कि 2022 में बर्मिघम (इंग्लैंड) में होेने वाले अगले राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाजी होगी ही नहीं। इस नियमित खेल को अब ‘ऐच्छिक’ श्रेणी में रख दिया है। यानी मेजबान के रहमोकरम पर रहेगा यह खेल। यों तो राष्ट्रमंडल खेलों में खिलाड़ियों का कोटा तय कर देने का असर हर खेल पर पड़ेगा, लेकिन भारतीय नजरिए से निशानेबाज ज्यादा नुकसान में रहेंगे। ओलंपिक हो या एशियाड, राष्ट्रमंडल खेल हो या विश्व निशानेबाजी, पदकों के लिए हमेशा हमारी नजरें निशानेबाजों पर रहती हैं। राष्ट्रमंडल खेल तो भारतीयों के लिए शुभदायी रहे हैं। निशानेबाजी में सर्वाधिक पदक जीतने वाले राष्ट्रमंडल देशों के सदस्यों में भारत दूसरे नंबर पर है। उसने इन खेलों में 118 पदक जीते हैं। वैसे तो भारतीय निशानेबाजी का सफर बीकानेर के महाराजा कर्णी सिंह के साथ शुरू हुआ था। राजा रणधीर सिंह, जो भारतीय ओलंपिक संघ के सचिव भी रहे, ने 60-70 के दशक में भारतीय पहचान बढ़ाई।

यूरोपीय और अमेरिकियों के सामने तब हमारे निशानेबाज सुनहरी चमक नहीं फैला पाए। बाद में चीन ने अपना दबदबा दिखाया। लेकिन आज माहौल बदल गया है। भारतीय निशानेबाज किसी से कम नहीं हैं। अपनी अचूक निशानेबाजी कला से वे श्रेष्ठता की जंग में बेहतर साबित हो रहे हैं। और जब विश्व कप जैसे महत्त्वपूर्ण मुकाबलों में गोल्ड पर निशाना लगने लगे तो गर्व की बात तो है ही। अनीश भनवाला, मनु भाखर, मेहुली घोष और अंजुम मोदगिल जैसे होनहार निशानेबाजों ने छोटी उम्र में बड़ा कमाल करने के बाद राष्ट्रमंडल खेलों की निशानेबाजी टीम में जगह बनाई है। चयनकर्त्ताओं ने भी इनके प्रदर्शन की अनेदखी नहीं की और पाया कि मौका देने का यह सही समय है। प्रदर्शन कैसा रहेगा, यह समय बताएगा लेकिन स्पर्धाएं हटने और कोटा तय होना निशानेबाजी के लिए झटका है। निशानेबाजों पर बड़े आयोजनों की मार तो है ही, उनकी अपनी संस्था इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन के कुछ फैसलों को निशानेबाज नहीं पचा पा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए महिला की स्पर्धाओं में निशाना लगाने की संख्या और बढ़ा दी गई है। नए निययों के तहत महिला मुकाबलों में शार्ट्स 40 की बजाए 60 लगाए जाएंगे। यानी पुरुषों के बराबर। इसमें काफी समय खर्च होगा। इससे निशानेबाजी रेंज में दर्शकों की संख्या में कमी आ सकती है। पहले ही निशानेबाजी के पास दर्शक कम हैं।

आइएसएसएफ पहले ही 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में पुरुष डबल ट्रैप, 50 मीटर राइफल प्रोन और 50 मीटर पिस्टल स्पर्धा को हटा चुका है। यह कदम इसलिए उठाया गया है कि ओलंपिक में महिलाओं की भागीदारी समानता की हो सके। 2022 के बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों से निशानेबाजी को नहीं हटाए जाने की भारत की ओर से पुरजोर कोशिश की गई। लेकिन प्रयासों से इतना ही हो पाया कि शूटिंग को ‘ऐच्छिक’ खेल कर दिया गया। चूंकि इन खेलों में भारतीय निशानेबाजों ने ढेरों पदक जीते हैं, इसलिए उनमें ज्यादा छटपटाहट है।

ग्लास्गो (स्कॉटलैंड) में हुए पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के 30 सदस्यीय दल ने 17 पदक जीते थे। इनमें चार स्वर्ण, नौ रजत और चार कांस्य पदक थे। इससे पहले 2010 में मेजबान की हैसियत से भारत ने 30 पदक जीते थे। लेकिन इस बार निशानेबाज (15 पुरुष, 12 महिलाएं) ही भेज पाएगा। युवा और अनुभवी दोनों तरह के निशानेबाज होने से उम्मीद तो की जा रही है कि पुराना प्रदर्शन बेहतर हो सके। राष्ट्रमंडल खेलों की निशानेबाजी स्पर्धाएं गोल्ड कोस्ट में न होकर ब्रिस्बेन के बेलमोंट शूटिंग सेंटर में होंगी। राइफल, पिस्टल और शॉटगन में भारतीय निशानेबाज कमाल दिखाएंगे। जीतू राय, गगन नारंग, हीना सिद्धू और अपूर्वी चंदेला जैसे बड़े नाम टीम में हैं। निशानेबाजी भविष्य में खेलों का हिस्सा रहे, अभिनव बिंद्रा और जसपाल राणा जैसे धुरंधर भी ऐसा चाहते हैं। राणा तो इतना खफा हैं कि खेलों के बहिष्कार की मांग तक कर डाली।