21, अशोका रोड। कैसरगंज से भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह का सरकारी आवास। बैठक में कई चमचमाती ट्रॉफी के बीच रखी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की तस्वीर। भगत सिंह जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए क्रांति की और शहीद हो गए। इसी सरकारी बंगले से 7 किमी दूर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में देश के लिए मेडल लाने वाले रेसलर्स भी भगत सिंह को याद कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह भगत सिंह को फांसी देने के वर्षों बाद देश को आजादी मिली, उसी तरह उनके आंदोलन के बाद आने वाली पीढ़ियों को भी संघर्ष करना होगा और तभी देश की कुश्ती सुरक्षित हाथों में होगी। बृजभूषण शरण सिंह के गले में फूलों की मालाएं थी और साक्षी मलिक-विनेश फोगाट की आंखों में आंसू। रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (Wrestling Federation Of Indian) के चुनाव के बाद की ये दो तस्वीरें देश के रेसलिंग पर क्या असर डालेंगी यह भविष्य तय करेगा।

संजय सिंह ने बड़े अंतर से जीता चुनाव

कई महीनों से टल रहे चुनावों के लिए जब 21 दिसंबर का दिन का मुकर्रर हुआ तो यह तय था कि जीत चाहे संजय सिंह की हो या अनीता श्योरण की रेसलिंग फेडरेशन को 12 साल बाद नया अध्यक्ष मिलेगा। संजय सिंह को बृजभूषण सिंह का करीबी माना जाता है। बुधवार सुबह करीब 10 बजे संजय सिंह अपने काफिले के साथ ओलंपिक भवन पहुंचे। उनके साथ मतदान करने वालों के साथ-साथ समर्थकों का भी बड़ा दल था। एक-एक करके वोटर्स अंदर गए। कुछ समय बाद संजय सिंह के खिलाफ खड़ी अनीता श्योरण भी वहां पहुंचीं। उन्होंने वोट डाला और फौरन लौट गईं। लगभग तीन बजे के पास आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की गई कि 50 में से 47 वोटर्स ने मतदान किया और संजय सिंह 40:7 के अंतर से जीते। नतीजा जानने आईं अनीता फौरन वहां से निकल गईं।

समर्थकों के हुजूम के साथ निकले संजय सिंह

जैसे ही संजय सिंह मतदान कक्ष से निकले समर्थकों ने बृजभूषण सिंह जिंदाबाद के नारे लगाना शुरू कर दिए। पूरा ओलंपिक भवन बृजभूषण जिंदाबाद, नरेंद्र मोदी जिंदाबाद और जय श्री राम के नारों से गूंजने लगा। समर्थकों के हुजूम के साथ संजय सिंह जब ओलंपिक भवन से निकले तो न किसी को रास्ते में रखी शीशे की मेज का ख्याल था न गमलों का, जो रास्ते में आया सब टूटता चला गया। ढोल की आवाज और समर्थकों के कंधों पर बैठे संजय सिंह को मानो अपने सामने हर कोई छोटा नजर आ रहा था सिवाय नेता जी के।

बृजभूषण सिंह का दबदबा कायम

यह जश्न बृजभूषण सिंह के घर पर भी जारी रहा। घर के मुख्य द्वार पर जहां सबसे ऊपर बृजभूषण सिंह का नाम लिखा है उसके ठीक नीचे पोस्टर लगा था, जिस पर एक ओर बृजभूषण सिंह की आदमकद तस्वीर थी और दूसरी ओर संजय सिंह की तस्वीर। इस पर लिखा था, ‘दबदबा तो है दबदबा तो रहेगा, यह तो भगवान ने दे रखा है।’ मीडिया से बात करते हुए बृजभूषण सिंह के मुंह से भी यही शब्द निकले।

रेसलर्स के चेहरों पर झलक रहा था दिल का दर्द

मीडिया का एक और बड़ा दल प्रेस क्लब में मौजूद था जहां बैठे देश के शीर्ष पहलवानों के चेहरे पर निराशा थी। ओलंपिक मेडलिस्ट बजरंग पूनिया ने अपना दर्द बयां किया, बताया कि उनकी लड़ाई का कोई फायदा नहीं हुआ। आने वाली पीढ़ियों को भी यह लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने उन खबरों का भी खंडन किया जिनमें यह दावा किया गया था कि तीनों रेसलर्स अपनी राजनीतिक पारी शुरू करना चाहते हैं। तीनों रेसलर्स ने भगत सिंह को याद करते हुए कहा कि वे रेसलिंग को बचा नहीं पाए। विनेश की आंखों में आंसू थे तो साक्षी का गला रुंधा था।

पहलवानों के आंदोलन का चेहरे बने तीनों रेसलर्स किसी महिला के हाथ में फेडरेशन की कमान चाहते थे। वे अनीता श्योरण के समर्थक थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में रोते हुए साक्षी मलिक ने अपने जूते सामने मेज पर रखे और कहा कि अब कुश्ती नहीं करेंगी। इसके बाद तीनों के मुंह से एक शब्द नहीं निकला और आंसू पोंछते हुए चले गए।

नए पैनल के सामने हैं कई चुनौतियां

साल भर बाद रेसलिंग फेडरेशन की कमान अब किसी समिति के नहीं, बल्कि उसके पदाधिकारियों के हाथों में होगी। चुने गए नए पदाधिकारियों के सामने बहुत सी चुनौतियां है। सबसे पहली चुनौती उन खिलाड़ियों का विश्वास जीतना जो इस आंदोलन के बाद कुश्ती में आने से कतरा रहे हैं। टूर्नामेंट के आयोजन के दौरान पारर्दशिता रखना ताकि प्रतिभावान रेसलर्स के आगे बढ़ने पर कोई सवाल न हो। रेसलिंग में भारत को बीते 4 ओलंपिक में मेडल मिला है, पेरिस ओलंपिक में अब बहुत कम समय बचा है। ऐसे में नई रणनीतियां, नए नियम, नए फैसलों को लागू करने के लिए समय बहुत कम है। ट्रायल्स से लेकर स्पॉन्सरशिप तक को लेकर हुए विवादों को खत्म करना होगा। पहलवानों के आंदोलन का भारतीय कुश्ती पर जो असर हुआ है वह एशियन गेम्स में नजर आया, जहां भारत एक भी गोल्ड मेडल हासिल नहीं कर पाया। अब ओलंपिक में ऐसा न हो यह तय करना रेसलिंग फेडरेशन का काम है।