बीते एक दशक से जब भी रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की चर्चा होती है तो सिर्फ एक ही नाम सामने आता रहा- बृजभूषण शरण सिंह। बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह साल 2010 में पहली बार इस फेडरेशन के अध्यक्ष बने और फिर धीरे-धीरे इस खेल पर ऐसी पकड़ बनाई कि घरेलू टूर्नामेंट से लेकर अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स तक पहलवानों की कामयाबी का श्रेय केवल इसी नाम को दिया जाता था। बृजभूषण सिंह का फेडरेशन पर एक छत्र राज कुछ इस तरह का रहा कि सेलेक्शन से लेकर नेशनल कैंप और यहां तक क शिकायत समिति के अध्यक्ष भी वही थे।
खेल सचिव ने बृजभूषण सिंह को बताया था दबंग
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बृजभूषण सिंह फेडरेशन ही नहीं बल्कि साई अधिकारियों पर भी अपना रौब झाड़ा करते थे। जब उनकी कोई डिमांड नहीं मानी जाती थी तो वह अपने सांसद होने की धौंस दिया करते थे। कुछ साल पहले बृजभूषण सिंह की फेडरेशन की ओर से एक अंतरराष्ट्रीय दौरे की अनुमति मांगी गई। जब खेल सचिव ने इसके लिए जरूरी कागजात मांगे तो बृजभूषण भड़क गए। उन्होंने फोन करके खेल सचिव को काफी सुनाया। इसी खेल सचिव ने बृजभूषण सिंह को गुंडा बताया था। उनका कहना था कि फेडरेशन में कोई भी कुछ ऐसा नहीं कह सकता या कर सकता है जो कि बृजभूषण सिंह को पसंद न आए।
ओलंपिक सफलता का श्रेय लेते हैं बृजभूषण सिंह
बृजभूषण सिंह ने अध्यक्ष रहते हुए भारत को चार ओलंपिक में पांच मेडल मिले। इसका पूरा श्रेय लेते हुए बृजभूषण कहा करते थे कि उन्होंने ही भारतीय रेसलिंग को आगे बढाया है। वह इस खेल को हरियाणा से बाहर लेकर आए, देश को टॉप 20 से आगे बढ़ाकर टॉप पांच में खड़ा किया। बीते चार ओलंपिक खेलों में भारत को हर बार रेसलिंग में मेडल हासिल हुए। हालांकि घेरलू आखाड़े चलाने वाले इन दावों से इत्तेफाक नहीं रखते।
दिग्गज कोच कुलदीप सहरावत लगभग एक दशक तक भारतीय कोच रहे। उन्होंने माना कि बृजभूषण सिंह के आने के बाद से लगातार टूर्नामेंट आयोजित होने लगे। पूरे साल कैंप होने लगे। खिलाड़ी लगातार अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेने लगे लेकिन भारतीय रेसलिंग की सफलता का पूरा श्रेय फेडरेशन को देना ठीक नहीं है। इसका बड़ा श्रेय उनको जाता है जो रेसलिंग आखाड़े चला रहे हैं।
आखाड़ों को जाता है रेसलिंग की सफलता का श्रेय
अर्जुन अवॉर्डी रेसलर काका पवार ने कहा कि खिलाड़ी को सबसे पहले जिले स्तर पर प्रदर्शन करना होता है। इसके बाद वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचता है। राष्ट्रीय चैंपियनशिप में टॉप चार में आने के बाद कैंप में हिस्सा लेने का मौका मिलता है। कैंप के खिलाड़ी सेलेक्शन ट्रायल देते हैं और फिर अंतरराष्ट्रीय दौरे पर जाते हैं। पवार के मुताबिक फेडरेशव का रोल नेशनल स्तर पर होता है इससे पहले लोकल अकेडमी और आखाड़े ही खिलाड़ियों का ध्यान रखते हैं। उनका कहना था कि ओलंपिक मेडलिस्ट हो या वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल सभी खिलाड़ियों ने खेल की शुरुआत आखाड़ों से की है। नेशनल कैंप में खिलाड़ियों को कई बार नुकसान भी होता है क्योंकि उन्हें अच्छे पार्टनर नहीं मिलते हैं।
सेलेक्शन में बृजभूषण सिंह देते थे पूरी दखल
कागजों पर रेसलिंग फेडरेशन के चाहे जो भी नियम हो, हर कोई यह बात जानता था कि आखिरी फैसला बृजभूषण सिंह का ही होता है। नेशनल चैंपियनशिप के खिलाड़ियों को कैंप में हिस्सा लेने का मौका मिलता है लेकिन बृजभूषण के पास यह हक था कि वह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी को उसके प्रदर्शन के दम पर कैंप का हिस्सा बनवा सकते हैं। वह सेलेक्शन कमेटी के अध्यक्ष थे और वही तय करते थे कि अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में कौन से खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। ओलंपिक के लिए ट्रायल होना नियम है लेकिन इस ट्रायल में कौन हिस्सा लेगा इसका फैसला बृजभूषण सिंह लेंगे।
शिकायत निवारण समिति के अध्यक्ष भी थे बृजभूषण सिंह
खिलाड़ी अगर किसी फैसले से सहमत नहीं है तो वह फेडरेशन की शिकायत निवारण समिति के पास जा सकता है। इस समिति के अध्यक्ष भी बृजभूषण सिंह ही थे। बृजभूषण अपने हिसाब से नियमों में बदलाव करते थे। पिछले साल उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए पुरुषों के ट्रायल्स नहीं कराए जबकि महिला वर्ग में विनेश फोगाट साक्षी मलिक सभी रेसलर्स को ट्रायल्स देना पड़ता था। इन ट्रायल्स में भी अध्यक्ष कभी भी किसी भी समय मैच को रोक दिया करते थे। रेफरी भी भी उनके कहे अनुसार फैसला सुनाता था।
खिलाड़ियों को भारी पड़ती है फेडरेशन की लापरवाही
खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय दौरे पर भेजने के दौरान काफी लेटलतीफी की जाती थी जिसका उदाहरण पिछले साल देखने को मिला। अंडर23 वर्ल्ड चैंपियशिप में आधे खिलाड़ी केवल फेडरेशन की लापरवाही के कारण हिस्सा नहीं ले सकते थे। वहीं साल 2021 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान खिलाड़ी इतनी देरी से पहुंचे थे कि अपना वजन सही रखने के लिए उन्हें एयरपोर्ट पर ही वर्कआउट करना पड़ा था।