मनीष कुमार जोशी
इसका एक कारण तो यह था कि विश्वकप इस बार एक एशियाई देश में हो रहा था और दूसरा उम्मीद का कारण था कि इस बार पांच एशियाई देशों ने विश्वकप के लिए पात्रता पाई थी। इसमें आस्ट्रेलिया को शामिल करें तो छह देश एशिया से पात्र बने थे। फीफा ने एशिया परिसंघ में आस्ट्रेलिया को भी रखा हुआ है।
कतर में विश्वकप का आयोजन होने से एशियाई समर्थको में अत्यधिक उत्साह था। एशियाई देश कुछ हद तक इस उत्साह को भुनाने में भी कामयाब रहे। आस्ट्रेलिया समेत तीन टीमें अगले दौर के लिए क्वालिफाई हुर्इं। लीग मैचों में एशियाई टीमों का प्रदर्शन ऐसा था कि यह अहसास हो रहा था कि एशिया परिसंघ की टीमें अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
सऊदी अरब ने जब अर्जेंटीना को पराजित किया तो पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई। यह 2022 का सबसे बड़ा उलटफेर था। दक्षिण कोरिया ने रोनाल्डो की पुर्तगाल को हराकर दूसरे दौर में प्रवेश किया जबकि जापान ने फुटबाल की महाशक्तियों स्पेन और जर्मनी को पराजित कर दूसरे दौर में जगह बनाई। यह फुटबाल विश्वकप इतिहास मे पहली बार फीका एशिया परिसंघ से तीन टीमों ने अंतिम 16 में जगह बनाई है परन्तु कोई भी टीम अपने पूर्व के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दोहराने में नाकाम रही।
जहां तक उलटफेरों की बात है पूूूर्व में भी एशियाई टीमों ने विश्वकप में बड़ी-बड़ी टीमों को अपना शिकार बनाया है। यह सिलसिला 1938 से चला आ रहा है जब पहली बार कोई टीम अंतिम रूप से क्वालिफाई कर पाई । इंडोनेशिया ने पहली बार क्वालिफाई किया था जहां वह हंगरीे से हार कर बाहर हो गई थी। 2022 फीफा विश्वकप एशियाई टीमों के लिए औसत सफलता वाला रहा परन्तु इससे पहले 2002 का विश्वकप एशियाई देशों के लिए सबसे सफल रहा जब दक्षिण कोरिया की टीम सेमीफाइनल में पहुंची थी। इस विश्वकप का आयोजन जापान और कोरिया ने मिलकर किया था।
दक्षिण कोरिया ने 2010 मे भी शानदार प्रदर्शन किया था जब अंतिम 16 में उरुग्वे को 2-1 से पराजित कर क्वार्टरफाइनल में स्थान बनाया था। 1996 के विश्वकप में उत्तरी कोरिया ने समूह स्तर पर शानदार खेल दिखाकर क्वार्टर फाइनल मे जगह बनाई।1994 में सऊदी अरब ने मोरक्को को पराजित किया था। जापान ने 2002 और 2010 में क्वार्टर फाइनल मे जगह बनाई थी। एशियाई टीमें एक अंतराल के बाद उलटफेर करती आई हैं परंतु यह उलटफेर उस हद तक नहीं है कि वे एशियाई फुटबाल की दिशा बदल दें। एशियाई टीमों के खेल में निरंतरता का अभाव है। एशियाई टीमें एक अंतराल के बाद फीफा में धमाका करती हैं मगर इस धमाके की गूंज ज्यादा लंबे समय तक सुनाई नहीं देती है।
फीफा विश्वकप के लिए अब तक 13 देश अंतिम रूप से खेल चुके है। इसमें दक्षिण कोरिया, उत्तरी कोरिया, जापान, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, जापान, इजरायल, कतर, ईरान, चीन और आस्ट्रेलिया शामिल है। दक्षिण कोरिया और जापान इसमें सबसे सफल रहे है। जापान के खेल में सबसे ज्यादा निरंतरता रही है। वह तीन बार दूसरे दौर के लिए क्वालीफाइ हुआ है। दक्षिण कोरिया एकमात्र टीम है जो सेमीफाइनल तक पहुंची है। जापान के खेल में निरंतरता का सबसे बडा कारण यह है कि जापान के सबसे ज्यादा 18 खिलाडी यूरोपियन टीमो से खेलते हैं। इनमें आर्सेनेल के लिए खेलने वाले ताकेहिनो, तोमियाशु, तारू मितोमा और उएदा शामिल है।
इस विश्वकप में जापान, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया का अगले दौर में पहुंचना सफलता का सोपान है। छह देशों का विश्वकप के लिए क्वालिफाई करना और फिर तीन देशों का अगले दौर मे पहुंचने को सफलता तो कहा जा सकता है मगर यह सफलता विश्वकप जीतने की ओर कदम बढाने वाली नहीं है। 80 साल में कोई भी देश विश्वकप जीतने जैसी काबिलियत हासिल नहीं ंकर पाया है। ऐसा क्या है जो एशिया के देश इस खेल में एक चुनौती नहीं बन पाए हैं। भारत और चीन जैसे देश विशाल जनसंख्या के बावजदू कोई स्थान नहीं रखते हैं।
इसके लिए दो मोर्चाे पर काम करना होगा। एक दूसरे लोकप्रिय खेलों के बराबर फुटबाल को लोकप्रिय बनाना और देश में चल रही लीग को मजबूत बनाना। इन दो उपायों से एशिया में फुटबाल तेजी से आगे बढेगा। जापान और दक्षिण कोरिया यदि प्रयास करें तो वे आने वाले सालों में एक चुनौती बन सकते हैं। अगले विश्वकप में 48 टीमें खेलेंगी। ऐसे में एशियाई टीमों के लिए भी अवसर बढ़ेंगे।