महान मैराथन धावक फौजा सिंह का 14 जुलाई 2025 को पंजाब के जालंधर के पास ब्यास पिंड गांव में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। भारतीय मूल के ब्रिटिश सिख एथलीट कथित तौर पर अपनी नियमित सैर के लिए निकले थे, तभी जालंधर-पठानकोट राजमार्ग पर एक तेज रफ्तार वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी और यूं एक अविश्वसनीय जीवन गाथा का अंत हो गया। उम्र को मात देने, रिकॉर्ड तोड़ने और पीढ़ियों को प्रेरित करने वाले फौजा सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा हुआ है।
फौजा सिंह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि संघर्ष, हिम्मत और इंसानी जिजीविषा का प्रतीक थे। वर्ष 1911 में किसान परिवार में जन्में फौजा सिंह 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। वह मैराथन दौड़ पूरी करने वाले 100 साल की उम्र के पहले व्यक्ति बने। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए कई रिकॉर्ड बनाए। वह 1990 के दशक में इंग्लैंड चले गए और बाद में पैतृक गांव आ गए। वह लंदन 2012 ओलंपिक के मशालवाहक थे।
89 की उम्र में धावक बने, 100 की उम्र में तोड़े रिकॉर्ड
बुजुर्गों को आमतौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, लेकिन फौजा सिंह ने 89 की उम्र में दौड़ना शुरू किया और 100 की उम्र में लंदन, न्यूयॉर्क और हॉन्गकॉन्ग जैसे शहरों में मैराथन में हिस्सा लेकर इतिहास रच दिया। उनकी दौड़ सिर्फ ट्रैक पर नहीं थी, बल्कि जिंदगी के हर मोर्चे पर थी। उन्होंने पत्नी, बेटी और सबसे छोटे बेटे को खोने के बाद भी हार नहीं मानी। जब दुख उन्हें निगलने को तैयार था, उन्होंने दौड़ को जीने की वजह बना लिया।
दर्द से मिली प्रेरणा
1990 के दशक में परिवार की असमय मौतों ने उन्हें तोड़ दिया। लोग कहते हैं वह श्मशान में घंटों बैठते रहते थे। बेटे ने उन्हें यूके भेजा, जहां एक रनिंग क्लब ने उनका जीवन बदल दिया। धीरे-धीरे दौड़ना उनके भीतर की आग को दिशा देने लगा।
दुनिया ने उन्हें सराहा
- 2012 लंदन ओलंपिक में टॉर्च-बेयरर (ध्वजवाहक) बने।
- ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ ने उन्हें खेल और चैरिटी में योगदान के लिए सम्मानित किया।
- गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम इसलिए नहीं आया, क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं था- लेकिन उन्हें परवाह नहीं थी। उनका कहना था, ‘मुझे बस लोगों का प्यार चाहिए।’
सादगी और संकल्प का संगम
- पिन्नी (घी, आटा और गुड़ से बनी मिठाई) और मैकडोनाल्ड का स्ट्रॉबेरी शेक बहुत पसंद था।
- रेस से पहले पूरी तरह से संयम और अनुशासन रखते थे।
- पढ़ नहीं सकते थे, लेकिन नंबरों को डिजाइन की तरह याद रखते थे।
- शाकाहारी जीवनशैली, शराब और धूम्रपान से दूर रहे।
- दौड़ से कमाई को चैरिटी और गुरुद्वारे में दान में दे दिया।
मौत भी उनकी सादगी से हार गई
फौजा सिंह अक्सर कहते थे- संगत संभाल लेगी। उन्हें कभी चिंता नहीं रहती थी कि कौन टिकट लेगा, कहां ठहरना होगा। वह बस निकल पड़ते थे- भरोस और प्रेम के सहारे।
फौजा सिंह की उपलब्धियां
मैराथन
- 2000: लंदन मैराथन: 6 घंटे 54 मिनट
- 2001: लंदन मैराथन: 6 घंटे 54 मिनट
- 2002: लंदन मैराथन: 6 घंटे 45 मिनट
- 2003: लंदन मैराथन: 6 घंटे 2 मिनट
- 2003: टोरंटो वॉटरफ्रंट मैराथन (व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ): 5 घंटे 40 मिनट
- 2003: न्यूयॉर्क सिटी मैराथन: 7 घंटे 35 मिनट
- 2004: लंदन मैराथन: 6 घंटे 7 मिनट
- 2011: टोरंटो वॉटरफ्रंट मैराथन: 8 घंटे 11 मिनट
- 2012: लंदन मैराथन: 7 घंटे 49 मिनट 21 सेकंड
हाफ मैराथन
- 2004: ग्लासगो सिटी हाफ मैराथन: 2 घंटे 33 मिनट
- 2004: टोरंटो वॉटरफ्रंट हाफ मैराथन: 2 घंटे 29 मिनट 59 सेकंड
10 किलोमीटर रेस
- 2012: हॉन्गकॉन्ग मैराथन: 1 घंटा 34 मिनट
- 2013: हॉन्गकॉन्ग मैराथन: 1 घंटा 32 मिनट 28 सेकंड
कुछ अनमोल यादें
- ‘बाबा, मरने से डर नहीं लगता?’
- ‘हां, बिलकुल लगता है। अभी तो मेले शुरू हुए हैं।’
- उनकी बॉयोग्राफी ‘The Turbaned Tornado’ के लेखक खुशवंत सिंह ने यह किस्सा साझा किया। फौजा सिंह के जीवन पर आधारित बॉयोग्राफी जिसका शीर्षक ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ है, 7 जुलाई 2011 को प्रकाशित हुई थी। उमंग कुमार बी ने 21 जनवरी 2021 में उन पर एक बॉयोफिक ‘ फौजा’ बनाने की घोषणा की थी।
निष्कर्ष: एक जीवन, एक संदेश
फौजा सिंह का जीवन बताता है कि शुरू करने की कोई उम्र नहीं होती। फौजा सिंह ने दुखों से उबरकर खुद को दौड़ सम्मान और मानवता के प्रतीक में बदल डाला। उनकी जीवनशैली, संघर्ष और दानशीलता हमेशा लोगों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।