कोरोना विषाणु महामारी के दौरान एक तरफ दुनिया पूरी तरह थम गई थी। सभी खेल आयोजन टाले या रद्द किए जा रहे थे। वहीं दूसरी तरफ ई-स्पोर्ट्स यानी आनलाइन खेलों का बाजार आसमान छू रहा था। भारत में शतरंज चैंपियनशिप ऑनलाइन हुई तो अन्य देशों में बास्केटबॉल, वॉलीबॉल जैसे टूर्नामेंटों का भी आभासी आयोजन हुआ। हालांकि यह तो सिर्फ बानगी है। ई-स्पोर्ट्स सालों से दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में शामिल है। भारत में भी फैंटेसी लीग, मोबाइल गेमिंग, टीवी गेमिंग खूब फल-फूल रहे हैं।

इंडोनेशिया में आयोजित 2018 एशियाई खेलों में प्रदर्शन खेल के तौर पर शामिल ई-स्पोर्ट्स को 2022 के होंगजोऊ खेलों में मुख्य खेल के तौर पर शामिल कर लिया गया है। साथ ही इसे ओलंपिक में भी जगह देने की तैयारी चल रही है। ऐसे में भारत, जिसे खेल महाशक्ति बनाने की बात चल रही है, वहां इस खेल की व्यापकता को समझना अहम हो जाता है। दरअसल, ई-स्पोर्ट्स का मतलब है, वह खेल जो कंप्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तकनीकों के सहारे खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी खेल मैदान से दूर आभासी मैदान पर अपना जलवा दिखाते हैं। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इंग्लैंड के स्टार हरफनमौला बेन स्टोक्स ने कोरोना पूर्णबंदी के दौरान फॉमूला-1 रेसर चार्ल्स लेकलेर्क और एलेक्स एलबोन के साथ फॉमूला-1 ई-स्टोर्ट्स रेस में हिस्सा लिया। इसे दर्शक भी लाखों की संख्या में मिले। यही नहीं अमेरिका में थल, जल और नौसेना की अपनी ई-स्पोर्ट्स टीमें भी हैं। अमेरिकी जल सेना ने हाल ही में ‘गोट्स एंड ग्लोरी’ नाम की ई-स्पोर्ट्स टीम बनाई है। कोरोना महामारी ने इस खेल को समझने और इसमें हिस्सा ले रहे खिलाड़ियों का समर्थन करने का एक नया मौका दे दिया।

भारत में ई-स्पोर्ट्स का क्या है हाल
भारतीय खेल बाजार की आमदनी का एक अहम हिस्सा ई-स्पोर्ट्स से आता है। केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में आॅनलाइन खेलों का बाजार करीब 2000 करोड़ का था तो वहीं 2018 में यह दोगुना से ज्यादा 4300 करोड़ का हो गया। 2020 में कोरोना महामारी के दौरान इसमें जबरदस्त उछाल देखने को मिला। अनुमान के मुताबिक 2023 में यह करीब 11800 करोड़ का हो जाएगा। भारत में तेजी से बढ़ते ई-स्पोर्ट्स को फैंटेसी लीग ने और रफ्तार दे दी है। यही कारण है कि ड्रीम-11 जैसी कंपनी इंडियन प्रमियर लीग जैसे बड़े आयोजन का मुख्य प्रायोजक बनी हुई है।

ई-स्पोर्ट्स करीब 1972 से चलन में है। तब होम कॉन्सोल के माध्यम से लोग इसे खेला करते थे। टीवी पर सबसे पहले 2006 में किसी ई-स्पोर्ट्स का अमेरिका में प्रसारण किया गया। कोई भी दो या इससे अधिक खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा वाला खेल इसका हिस्सा हो सकता है। डोटा-2 आज के जमाने में ई-स्पोर्ट्स का सबसे बड़ा खेल है। इसके करीब 1300 टूर्नामेंटों में 3500 से अधिक खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं।

भारत में सस्ते इंटरनेट ने बढ़ाई दीवानगी
भारत में ई-स्पोर्ट्स के तेजी से बढ़ने का एक कारण यहां इंटरनेट सस्ता होना भी है। अन्य कई देशों के मुकाबले यहां डाटा काफी सस्ते में उपलब्ध है। साथ ही स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने के मामले में भी भारत काफी आगे हैं। इसलिए यहां ई-स्पोर्ट्स का दायरा भी काफी बढ़ा है। आंकड़ों के मुताबिक 2017 तक आनलाइन गेमिंग में 89 फीसद हिस्सा मोबाइल गेंमिंग का ही था। महज 11 फीसद लोग ही कंप्यूटर या अन्य माध्यम से इस खेल में हिस्सा ले रहे थे।
वहीं 2010 में जहां महज दो करोड़ लोग आॅनलाइन खेलों में हिस्सा लेते थे वहीं 2018 में इनकी संख्या 25 करोड़ हो गई। उसमें भी सबसे ज्यादा लोग पहेली सुलझाने वाले खेलों में भाग लेते हैं। वहीं फुटबॉल, रग्बी, कैरम जैसे खेलों में भारतीय लोगों की रूचि आज भी उतनी नहीं है।

भारत में ई-स्पोर्ट्स के लिए अपार संभावनाएं
भारत में आॅनलाइन खेलों के लिए अपार संभावनाएं हैं। 27.9 वर्ष की औसत उम्र वाले इस देश में ई-स्पोर्ट्स ने तेजी से दायरा बढ़ाया है। वहीं 2021 तक भारत की आबादी के 61 फीसद लोग करीब 35 साल की आयु के होंगे। यही कारण है कि यहां डिजिटल माध्यमों का भरपूर उपयोग हो रहा है। साथ ही सरकार ने भी गांव-गांव तक इंटरनेट की सुविधा आसानी से उपलब्ध कराने के लिए कई परियोजनाओं पर काम कर रही है।

विश्व में भी तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन खेल
भारत में ही नहीं विश्व में भी आॅनलाइन खेल तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका मूल कारण इसको मिल रहे दर्शक हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में जहां ई-स्पोर्ट्स देखने वाले 385 मिलियन लोग थे वहीं 13.6 फीसद की तेजी से यह 2021 के अंत तक 600 मिलियन के करीब पहुंच जाएंगे। अच्छी बात यह है कि इस छह सौ मिलियन में से आधे लगातार ई-स्पोर्ट्स को फॉलो करने वाले होंगे।

ऑनलाइन गेमिंग से मेक इंडिया का सपना होगा साकार
भारत ने अपनी अर्थ व्यवस्था को रफ्तार देने के लिए मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया है। आनलाइन गेमिंग इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। साथ ही ब्रेन ड्रेन की समस्या से भी निजात दिला सकता है। दरअसल, यहां की कंपनियां और तकनीक विशेषज्ञ अपने स्तर पर कम खर्च में ऐसे गेम तैयार कर सकते हैं। इसमें आने वाली लागत काफी कम और मुनाफा काफी ज्यादा है। साथ ही कम साधन में भी इसे तैयार किया जा सकता है।