पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद भारत को ओलंपिक पदक जीताकर इस खेल को एक बार फिर फैंस के दिल में ज़िंदा कर दिया। दुनियाभर में आज चार दशक बाद भारतीय हॉकी खिलाड़ियों की चर्चा हो रही है। कांस्य पदक के प्ले आफ में जर्मनी को 5-4 से हराने के बाद भारतीय कप्तान मनप्रीत के पास अपनी भावनाओं को जाहिर करने के लिए शब्द नहीं थे।
इस टूर्नामेंट में रूपिंदरपाल सिंह, हरमनप्रीत सिंह, मंडीप सिंह, सिमरनजीत सिंह से लेकर अमित रोहिदास तक सभी ने बेहतरीन खेल दिखाया और भारत को कांस्य पदक जिताया। लेकिन यह जीत आसान नहीं थी, इसके पीछे इन खिलाड़ियों का कई सालों का संघर्ष है। इस टीम के किसी खिलाड़ी के पास हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे नहीं थे तो किसी ने हॉकी छोड़ने का मन बना लिया था। आइए हम आपको बताते हैं पदक विजेता टीम के संघर्ष की दास्तान।
रूपिंदरपाल सिंह –
ड्रैग फ्लिकर रुपिंदर पाल सिंह ने टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई है। पंजाब के फरीदकोट के बाबा फरीद एवेन्यू के रहने वाले रुपिंदर ने इस टूर्नामेंट में चार गोल दागे। रुपिंदर की फिरोजपुर के प्रसिद्ध हॉकी ओलंपियन परिवार के सदस्य हरमीत सिंह, अजीत सिंह व गगन अजीत सिंह के साथ भी रिश्तेदारी है। साथी खिलाड़ी रुपिंदर को ‘बॉबी’ या ‘बॉब’ कह कर पुकारते हैं।
शमशेर सिंह –
पंजाब के अटारी में रहने वाले शमशेर सिंह ने अपने करियर की शुरुआत मिडफील्डर के रूप में की थी और फिर धीरे-धीरे वे फॉरवर्ड खेलने लगे। शमशेर ने बहुत कम उम्र में हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। उनका पिता एक मामूली किसान थे और परिवार की ज्यादा कमाई नहीं थी। जिसके चलते उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उनकी पहली हॉकी स्टिक को उन्होंने कई साल तक कीलों और टेप से मरम्मत कर इस्तेमाल किया।
पीआर श्रीजेश-
केरल के 33 वर्षीय भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने बचपन में हॉकी छोड़ सब खेल खेले थे। केरल में हॉकी इतनी नहीं खेली जाती। जिसके चलते श्रीजेश इस खेल के बार में कम ही जानते थे। तिरुवनंतपुरम के जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिला लेने के बाद उनकी ज़िंदगी बादल गई और उनके रिफ्लेक्सिस को देखते हुए उन्हें हॉकी का गोलकीपर बनाया गया। उन्हें किताबें पढ़ने का शौक है। वे अपने किटबैग में एक किताब लेकर चलते हैं।
हार्दिक सिंह –
स्टार मिडफील्डर हार्दिक सिंह का प्रदर्शन शानदार रहा। जर्मनी के खिलाफ हार्दिक सिंह के 27वें मिनट पर किए गए गोल के बाद ही भारत ने वापसी की थी। हार्दिक सिंह ने भारत के लिए खेलने का सपना लगभग छोड़ ही दिया था और डच लीग में क्लब करियर बनाने की योजना बना रहे थे लेकिन उनके रिश्तेदार पूर्व ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह ने उन्हें प्रेरित किया। पंजाब के जालंधर के समीप खुसरोपुर गांव के रहने वाले 22 साल के हार्दिक ने कहा कि उनका सफर टीम के अपने साथियों से अलग रहा है। हार्दिक सिंह भारतीय जूनियर हॉकी टीम के उप कप्तान रह चुके हैं। वे 2018 में एशियाई पुरुष हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी और साल 2018 में पुरुष हॉकी विश्वकप में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं।
हरमनप्रीत सिंह –
भारतीय टीम के उपकप्तान पंजाब के अमृतसर जिला के कस्बा जंडियाला गुरु के छोटे से गांव तीमोवाल के रहने वाले हैं। डिफेंडर और ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत ने इस ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन किया। भारतीय टीम के पैनल्टी स्पेसिलेस्ट माने जाने वाले हरमनप्रीत ने अपने करियर की शुरुआत बतौर फारवर्ड खिलाड़ी के रूप में की थी। उन्होंने वर्ष 2014 में मलेशिया में हुए सुल्तान जौहर कप में नौ पैनल्टी कॉर्नर को गोल में बदला था। 2015 में जूनियर एशिया कप और 2016 में जूनियर विश्व कप में भारतीय टीम का हिस्सा बने और टीम को खिताब दिलाने में योगदान दिया।
वे 2016-17 में हॉकी वर्ल्ड लीग में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा थे। 2016 में रियो ओलंपिक में भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे। 2016 और 2018 में चैंपियंस ट्रॉफी में भी भारत को रजत पदक दिलाया। वहीं, 2017 में एशिया कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम इंडिया का भी हिस्सा रहे। 2018 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में टीम को कांस्य पदक दिलाने में हरमनप्रीत ने अहम योगदान निभाया।

