सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि यह साबित करना बीसीसीआइ के निर्वासित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन की जिम्मेदारी है कि आइपीएल-6 की जांच के रास्ते में उनके हितों के टकराव नहीं आए थे। न्यायालय ने कार्यवाही के दौरान उनके वकील द्वारा ‘बार बार’ वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम लिए जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की।

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की खंडपीठ ने कहा, आप बार बार जेटली का नाम ले रहे हैं जिनका यहां प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है। वे इसमें पक्षकार नहीं हैं। ऐसे व्यक्ति के मत्थे कुछ मत मढ़िए जिसका यहां प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है।

न्यायाधीशों ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब श्रीनिवासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जोर देकर कहा कि इस प्रकरण की जांच के लिए बीसीसीआइ ने जेटली के सुझाव पर ही एक समिति गठित की थी और उनका मानना था कि जांच बीसीसीआइ के हस्तक्षेप से मुक्त होनी चाहिए।
सिब्बल ने कहा कि रिकार्ड में जेटली का दृष्टिकोण परिलक्षित होता है और बाद में उनके कथन की पुष्टि करने के लिए कार्यसमिति की 28 मई, 2013 की बैठक की कार्यवाही में भी इसका हवाला है।

इस पर न्यायालय ने सुनवाई जारी रखते हुए कहा, अगर आप नाम का जिक्र कर रहे हैं तो आपको संदर्भ भी बताना होगा क्योंकि उनका यहां पर प्रतिनिधित्व नहीं है। आज की सुनवाई का अधिकांश हिस्सा श्रीनिवासन के हितों के टकराव के इर्द-गिर्द रहा। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘हितों के टकराव के बारे में हमारी राय भिन्न है। आपको ही इससे पर्दा उठाना होगा।’

सिब्बल की दलील थी कि न्यायमूर्ति मुद्गल समिति या बंबई उच्च न्यायालय में श्रीनिवासन के हितों के टकराव के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं है।
सिब्बल ने कहा, आप भले ही पर्दा उठा दें लेकिन आपको हितों के टकराव के बारे में कुछ नहीं मिलेगा और वे (विरोधी) तो सिर्फ उन्हें (बीसीसीआइ से) हटाना चाहते हैं।

इस दलील के जवाब में न्यायालय ने कहा कि यह आप पर निर्भर करता है कि आप ‘सिद्ध’ करें कि इसमे कोई हितों का टकराव नहीं था क्योंकि यह एक स्वीकृत तथ्य है।

सिब्बल ने कहा कि इस मामले में किसी भी अवसर पर मुद्गल समिति या उच्च न्यायालय में श्रीनिवासन को हितों के टकराव के सवाल पर अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि हितों के टकराव का सवाल न तो उच्च न्यायालय की कार्यवाही के दौरान उठा और न ही यह मुद्गल समिति की कार्य की शर्तों में शामिल था। यह तो अब शीर्ष अदालत में उठाया जा रहा है। सिब्बल ने यह कहते हुए आज बहस शुरू की कि श्रीनिवासन को सार्वजनिक रूप से बदनाम किया गया है और दोषी ठहराया गया है। आज उन्हें इन आरोपों को गलत साबित करने का मौका मिला है। इस मामले में अब आठ दिसंबर को आगे सुनवाई होगी।