कोरोना विषाणु ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। विश्व के ज्यादातर हिस्सों पर उसका कब्जा है। तीन अरब से ज्यादा की जनसंख्या घरों में कैद है। बाजार बंद हैं। शहर वीरान हैं। ऐसे में खेल की भी गतिविधियां ठप हैं। जुलाई तक होने वाले सभी बड़े टूर्नामेंटों को या तो रद्द कर दिया गया है या स्थगित। इसी क्रम में खेलों का महाकुंभ यानी ओलंपिक को भी अगले साल के लिए टाल दिया गया है। विंबलडन को रद्द कर दिया गया। फुटबॉल से जुड़ी कई लीगों को टाल दिया गया है। आस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 क्रिकेट विश्व कप पर भी संकट के बादल छा गए हैं। भारत की मेजबानी में खेला जाने वाला अंडर-17 महिला विश्व कप के आयोजन को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। इंडियन प्रीमियर लीग पूर्णबंदी के कारण टाला जा चुका है और इसका आयोजन होगा या नहीं, इसे लेकर कोई संतुष्ट जवाब बोर्ड की तरफ से नहीं दिया जा रहा। चीन के वुहान से निकलकर तबाही मचाने वाले इस विषाणु ने खेल के रफ्तार को थाम कर रख दिया है। ऐसा पहली बार ही होगा जब किसी विषाणु ने लगभग पूरी दुनिया की खेल प्रतियोगिताओं को रोक दिया है। इससे पहले सिर्फ विश्व युद्ध के दौरान ही ओलंपिक या विंबलडन जैसी प्रतियोगिताओं को टाला गया था। पेश है संदीप भूषण की रिपोर्ट...
बर्लिन ओलंपिक 1916 : स्टॉकहोम में चार जुलाई 1912 को छठे ओलंपिक खेलों की मेजबानी बर्लिन को सौंपी गई थी। जर्मन ओलिंपिक समिति ने युद्धस्तर पर इसकी तैयारी की। जून में बर्लिन स्टेडियम में टेस्ट स्पर्धाएं भी आयोजित हुईं। हालांकि इसके बाद आॅस्ट्रिया के आर्कड्यूक फ्रेंक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई। इसके बाद के घटनाक्रम प्रथम विश्व युद्ध का कारण बने। आयोजकों को लगा कि क्रिसमस तक यह सब समाप्त हो जाएगा और वे खेलों का सफल आयोजन कर पाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विश्व युद्ध 1918 में समाप्त हुआ।
बर्लिन ओलंपिक खेल नहीं हो सके। हालांकि लगभग तीन दो दशक बाद जर्मनी को ओलंपिक की मेजाबानी का मौका मिला और उसने सफलता के साथ 1936 ओलंपिक की अगुआई की। तोक्यो 1940 : कोरोना विषाणु के कारण जिस देश को आज ओलंपिक एक साल के लिए टालना पड़ा है वही 1940 में भी खेलों की मेजबानी के लिए तैयार था। जूडो के आविष्कारक जापान के महान खिलाड़ी जिगोरो कानो की अगुआई में तोक्यो को 1940 में ओलिंपिक की मेजबानी मिली। उसने जमकर तैयारियां की। उसे इस बात की खुशी थी कि पहली बार किसी गैर-पश्चिमी देश को इन खेलों की मेजबानी का मौका मिला है।
हालांकि इसी बीच जुलाई 1937 में जापान और चीन के बीच युद्ध शुरू हो गया। जापान ने इसकी मेजबानी से पीछे हटने का फैसला किया और 1940 ओलंपिक की मेजबानी फिनलैंड को सौंपी गई। वह अभी इसकी तैयारी में लगा ही था कि दूसरे विश्व युद्ध का आगाज हो गया। आखिरकार ओलंपिक के इस संस्करण को रद्द करना पड़ा। 1964 में तोक्यो ने फिर से मेजबानी हासिल की और ओलंपिक की मेजबानी करने वाला पहला एशियाई देश बना।
लंदन 1944 : लंदन ने रोम, डेट्राइट, लुसाने और एथेंस को पछाड़कर ओलंपिक की मेजबानी हासिल की। हालांकि वह अभी अपनी तैयारी के प्रारूपों को अंजाम भी नहीं दे पाया था कि ब्रिटेन और जर्मनी के बीच जंग का एलान हो गया। यह दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत थी।
अंत में इन खेलों को भी रद्द करना पड़ा। साथ ही इटली में शीतकालीन खेल भी रद्द हो गए। लंदन ने 1948 में खेलों की मेजबानी की जिसमें जापान और जर्मनी ने भाग नहीं लिया।
रियो ओलंपिक पर था जीका विषाणु का खतरा : तोक्यो ओलंपिक की तरह 2016 में हुए रियो ओलंपिक पर भी जीका वायरस का खतरा था। जब 2012 में रियो ने खेलों की मेजबानी हासिल की थी तो ब्राजील को उम्मीद नहीं थी कि उसे आर्थिक मंदी के दौर, बेरोजगारी और मच्छरों से होने वाले जीका वायरस, राजनीतिक संकट, बुनियादी ढांचे में रुकावट जैसी बाधाओं से जूझना होगा।
खेलों की तैयारियों के दौरान ही यह साफ हो गया था कि यहां की जनता खुश नहीं है। कई जगह विरोध हुए। कुछ जगहों पर तो लोग बैनर के साथ सड़क पर उतर आए। इन सबने रियो की 2016 ओलिंपिक की मेजबानी की खुशी को समाप्त कर दिया। चुनौतियां यहीं समाप्त नहीं हुर्इं। कई रिपोर्ट के मुताबिक ओलिंपिक नौकायान स्पर्धा के प्रतिस्पर्धियों को जहरीने पानी में भाग लेने का डर था, जो शहर की आधी जनसंख्या के सीवेज से भरा था।
इन सब के बीच कयास लगने लगे थे कि क्या रियो को मेजबानी छोड़नी पड़ेगी या ओलंपिक को स्थगित या रद्द किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आयोजकों ने चुनौतियों पर विजय पाते हुए शानदार ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।
124 साल के इतिहास में पहली बार टाला गया ओलंपिक : 24 मार्च को ओलंपिक आयोजन समिति ने तोक्यो ओलंपिक को स्थगित करने की घोषणा की। ऐसा 124 साल के ओलंपिक इतिहास में पहली बार किया गया। पहले भी कई दफा खलों को रद्द किया गया लेकिन उन्हें स्थगित नहीं किया गया।

