फरवरी 2008 की बात, मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज के एक मैच में भारतीय टीम 160 के मामूली लक्ष्य का पीछा कर रही थी। यह महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी का महज 15वां वनडे मैच था, वह क्रीज पर रोहित शर्मा के साथ मौजूद थे। जब जीत के लिए 10 रन चाहिए थे तो धोनी ने जानबूझकर ग्लव्स मंगाए। क्रिकेट में आमतौर पर ग्लव्स के साथ ड्रेसिंग रूम से कोई जानकारी आती है, मगर यहां उल्टा था। धोनी पवेलियन को एक महत्वपूर्ण संदेश भेज रहे थे। ‘हमारे मैच जीतने के बाद कोई बालकनी में आकर सेलिब्रेट नहीं करेगा।’ मैदान पर धोनी रोहित को समझा रहे थे कि एक नौजवान क्रिकेटर को मैच खत्म होने के बाद ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों से कैसे हाथ मिलाना चाहिए।
यह बात तब की है जब ऑस्ट्रेलियाई टीम अपने प्रचंड रूप में हुआ करती थी। जब उनके लिए हर हार बहुत भारी होती थी। इस मैच में ईशांत शर्मा, श्रीसंत और इरफान पठान ने मिलकर 9 विकेट लिए और ऑस्ट्रेलिया के स्कोर को 159 पर सीमित कर दिया। इसके बाद धोनी ने दिखाया कि दुनिया की बेस्ट टीम को कैसे हराया जा सकता है। बाद में एक खिलाड़ी ने कहा, ”यह माही के कहने का तरीका था कि कोई बड़ी बात नहीं है। मेरे गेंदबाजों ने उन्हें 160 पर ऑलआउट किया और हम उसे चेज कर रहे हैं, उसमें कौन सी बड़ी बात है। अगर हम जमकर जश्न मनाएंगे तो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर्स को लगेगा यह उलटफेर था। हम उन्हें बताना चाहते थे कि यह जीत कोई तुक्का नहीं थी। यह बार-बार होने वाला है। ऑस्ट्रेलियाई यह झेल नहीं सके। वह हिल गए थे।
तब टीम में युवा खिलाड़ी एक क्रिकेटर ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया के बड़े बल्लेबाज विरोधियों को स्लेज करने से नहीं हिचकिचाते थे। जब एक क्रिकेटर ने वैसे ही अंदाज में जवाब दिया था तो उस ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ने थोड़ा सम्मान देने को कहा। अगली बार जब वह बल्लेबाज ओपन करने आया तो धोनी ने सारे जूनियर्स को बाउंड्री पर खड़ा और गार्ड ऑफ ऑनर देने की नकल की। पिच की तरफ बढ़ते ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज से सभी भारतीय क्रिकेटर्स कहते रहे, ‘रिस्पेक्ट, रिस्पेक्ट, रिस्पेक्ट।’ यह माही के कहने का तरीका था, ‘मैं थैंक्यू कहना चाहता हूं, ये ले लो रिस्पेक्ट।’ ”
धोनी के एक जिगरी दोस्त ने कहा, ”गोली मारता है अपने स्टाइल में। वह बोलता है कि अगर मैं अपने प्लेयर्स को मां-बहन की गाली देने की इजाजत दे दूं तो जिन्हें वह गाली दे रहे हैं, उसे नहीं बल्कि खुद उन्हें पूरी दिन वह बात चुभेगी।” दोस्त ने कहा, ”वह खुलकर आक्रामकता दिखाने में यकीन नहीं रखता। वह मानता है कि अगर तुम उनको चोट पहुंचाना चाहते हो तो अपने अंदाज में करो, उनके नहीं। अगर वह गाली देते हैं तो तुम्हें गाली देने की जरूरत नहीं है।”
एक बार आईसीसी और ब्रॉडकास्टर्स को आइडिया आया कि वह हर मैच से पहले टॉस के बाद कप्तानों से टीम के 11 खिलाड़ियों के नाम पढ़वाएंगे। टूर्नामेंट के पहले मैच में भारत का सामना न्यूजीलैंड से था, और माइक की जिम्मेदारी धोनी को निभानी थी। मगर जब उनसे ऐसा करने को कहा गया तो धोनी ने दो-टूक कहा, ”नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता।” फिर आईसीसी ने यह विचार त्याग दिया।
(पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया से साभार)