जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। इस कहावत को सेना में सूबेदार आनंदन गुणासेकरन (Anandan Gunasekaran) ने सच कर दिखाया है। मद्रास सैपर्स में इस सूबेदार की कहानी लोगों के लिए प्रेरणादाई है। गुणासेकरन ने LOC पर हुए एक धमाके में अपना बायां पैर गंवा दिया था, लेकिन उन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी और रनिंग शुरू की। अब उन्होंने वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स (World Military Games) में गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाकर देश का झंडा फिर बुलंद किया है।

गुणासेकरन 2005 में भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्हें मद्रास सैपर्स यूनिट मिली। जनवरी 2008 में इस यूनिट की तैनाती नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) पर की गई। पांच महीने बाद 4 जून को गुणासेकरन अपनी यूनिट के जवानों के साथ सीमा (बॉर्डर) पर वायर फेंसिंग के लिए रूटीन चेकिंग पर थे। इसी दौरान एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने गुणासेकरन की पूरी जिंदगी बदल दी।
गुणासेकरन बर्फ में हुए उस हादसे को याद करते हुए बताते हैं, ‘मेरे कानों में धमाके की आवाज से कान बज रहे थे। मुझे मेरे बाएं पैर में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था। मेरे तीन साथ मुझसे आगे निकल गए थे। मैं उन तीनों से तेज चिल्लाया। जब वे मुझे उठाने आए तब मुझे बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन मैंने उनके सामने कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया।’ गुणासेकरन बताते हैं, ‘जब मेरे साथियों ने मुझसे पूछा तो मैंने कहा कुछ नहीं हुआ है, सब ठीक है, कुछ टेंशन मत ले।’ हालांकि, वास्तविकता यह थी कि उनका पैर एक लैंडमाइन (बारुदी सुरंग) पर पड़ गया था। उनके बाएं पैर के चीथड़े-चीथड़े हो गए थे। वे अपने उस पैर को दोबारा पा नहीं सकते थे।
गुनासेकरन का मानना है, ‘जहां हम चेकिंग कर रहे थे, वह इलाका माइन फील्ड नहीं था, लेकिन शायद मेरी ही किसमत खराब थी।’ लेकिन गुनासेकरन ने किस्मत से समझौता नहीं किया। उन्हें पहले श्रीनगर के अस्पताल ले जाया गया, जहां से उन्हें पुणे रेफर किया गया। वहीं उनके पैर का ऑपरेशन हुआ, जिसमें घुटने के नीचे के हिस्से को काटना पड़ा। उन्होंने अपने साथ हुए इस हादसे के बारे में 6 महीने तक घरवालों को नहीं बताया। जब घर पहुंचे तो मां ने दोबारा ड्यूटी पर जाने से मना कर दिया। गुणासेकरन ने मां की नजर बचाते हुए घर से भागकर ड्यूटी ज्वाइन की।
उनके दिमाग में चल रहा था कि ऐसे ही जिंदगी नहीं काटनी, इसलिए उन्होंने रनिंग करने की सोची। उन्होंने पैरालंपिक खेलों के बारे में जानकारी हासिल की। उन्होंने 2012 में लकड़ी के प्रोसथेटिक पैर की मदद से 2.5 किमी का रास्ता 9.58 मिनट में तय किया। इसके बाद उन्होंने अपने सीनियर्स से प्रोसथेटिक ब्लेड की डिमांड की।
इसके बाद ही उनके एथलेटिक सफर की शुरुआत हुई। उन्होंने 2014 में पैरालंपिक ग्रैंड प्रिक्स में तीन पदक अपने नाम किए। उसके बाद से उन्होंने लगातार अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। पिछले सप्ताह उन्होंने वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स (World Military Games) में 100मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। वे 12 सेकंड में 100 मीटर की रेस पूरी कर इन खेलों में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी भी बने।