टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली जब पिछले साल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष बने थे तब उन्होंने वादा किया था कि उनका फोकस घरेलू क्रिकेटरों पर सबसे ज्यादा होगा। गांगुली ने कहा था कि घरेलू खिलाड़ियों को उनका हक दिलाना सबसे महत्वपूर्ण काम होगा। लेकिन, उनके अध्यक्ष बनने के लगभग 8 महीने बाद भी घरेलू खिलाड़ियों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। यहां तक कि प्लेयर्स को पिछले रणजी ट्रॉफी और सैयद मुश्ताक अली टूर्नामेंट के सीजन की मैच फीस भी नहीं मिली है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कई खिलाड़ियों ने बताया है कि उन्हें पिछले सीजन की मैच फीस नहीं मिली है। सीजन मार्च में ही खत्म हो गया था। रणजी ट्रॉफी में एक खिलाड़ी 35 हजार रुपए प्रति दिन मैच फी के तौर पर कमाता है। वहीं, मुश्ताक अली ट्रॉफी में उसे 17500 रुपए प्रति मैच के मिलते हैं। अगर कोई खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी के पूरे सीजन में यानी की 9 मुकाबलों में खेलता है तो वह 13 लाख रुपए कमा लेता है। खिलाड़ियों को अब तक ये राशि बोर्ड से नहीं मिली है।
सूत्रों के मुताबिक, मुंबई, महाराष्ट्र, बंगाल, त्रिपुरा और कई अन्य डोमेस्टिक टीमों के प्लेयर को मैच फीस नहीं मिली है। महाराष्ट्र की बात करें तो एक खिलाड़ी ने कहा, ‘‘हमें 2019-20 सीजन के मैच फीस अब तक नहीं मिले हैं।’’ एक अन्य खिलाड़ी ने उसका साथ देते हुए कहा, ‘‘हमें पिछले तीन सीजन से रेवेन्यू से मिलने वाले पैसे भी नहीं दिए गए हैं।’’ घरेलू खिलाड़ियों को बोर्ड ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के जरिए दो राशियां भेजती है। पहला उनका मैच फीस और दूसरा बीसीसीआई के रेवेन्यू का एक हिस्सा।
प्री-सीजन क्रिकेट की गतिविधियों में कमी और अगले सीजन को लेकर स्पष्टता की कमी के कारण खिलाड़ी फिलहाल अपने घरों में ही बैठे हुए हैं। बीसीसीआई से समय पर फीस नहीं मिलने के कारण वे परेशानी में हैं। मामला तब बिगड़ा जब घरेलू खिलाड़ियों को मिलने वाले सकल राजस्व शेयर (जीआरएस) को भी पिछले तीन साल से नहीं दिया गया है। जीआरएस अनिवार्य रूप से आईपीएल और घरेलू सत्र के लिए बीसीसीआई की घरेलू टीवी टेलिकास्ट से होने वाली कमाई का एक हिस्सा है।
