national champion Pravin Jadhav: नाले के पास एक झोंपड़ी में अपना आधा जीवन बिताने वाले प्रवीण जाधव ने भारत के लिए वो कर दिखाया जो झुग्गी में रहने वाले हर गरीब का सपना होता है। सतारा में रहने वाले 22 साल के प्रवीण ने रविवार को तीरंदाजी में अनुभवी तरुणदीप राय और अतनु दास के साथ मिलकर वर्ल्ड चैंपियनशिप सिल्वर मैडल जीता। इतना ही नहीं इसी के साथ उन्होंने ओलिंपिक का टिकट भी हासिल कर लिया है। प्रवीण एक ऐसे घर में रहते हैं जहां दो वक़्त का भोजन भी एक लक्जरी माना जाता है। बिजली और पानी मिलना तो दूर की बात है। उनके इस खेल को चुनने का मुख्य कारण गरीबी है। उन्होंने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ – गरीबी से बचने के लिए, लगभग छह साल पहले धनुष उठाया था।
जाधव, जिन्होंने कुछ साल पहले तक सार्दे गांव से बाहर कदम नहीं रखा था, उस टीम का हिस्सा था जिसने स्वर्ण पदक मैच में चीन से हारने से पहले नॉर्वे, कनाडा, चीनी ताइपे और नीदरलैंड जैसे प्रतिद्वंद्वियों को हराया था। पिछली बार भारत ने 2005 में विश्व चैम्पियनशिप के पुरुष रिकर्व श्रेणी में फाइनल में प्रवेश किया था। द इंडियन एक्सप्रेस से राष्ट्रीय चैंपियन जाधव ने कहा “मुझे अभी भी ओलंपिक खेलों के लिए टीम में जगह बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी है। मेरा चयन होगा और मुझे अपना फॉर्म बरकरार रखना होगा। यह सिर्फ यात्रा की शुरुआत है।”
उनकी यात्रा, सतारा के सूखाग्रस्त क्षेत्र फल्टन तालुका में एक दशक पहले शुरू हुई थी। जाधव के 71 वर्षीय पिता रमेश एक दिहाड़ी मजदूर हैं। जाधव ने बताया “हमारे पास कुछ भी नहीं है। पिछले साल तक, हम एक झोपड़ी में रहते थे। हमारे पास बिजली नहीं थी और एक दिन में दो भोजन के लिए भी पैसे नहीं थे। ” उनके प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बबन भुजबल ने उन्हें सलाह दी कि वे बेहतर जीवन के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में खेलों का उपयोग करें। इसलिए उन्होंने एथलेटिक्स को चुना, जिसमें शून्य निवेश की आवश्यकता होगी। 43 वर्षीय भुजबल कहते हैं, “यह एक स्पष्ट पसंद की तरह लग रहा था। लेकिन हमें जल्द ही एहसास हुआ कि उन्हें अच्छा प्रदर्शन करने के लिए सहनशक्ति की कमी है। एक बार, वह वार्मउप के दौरान बेहोश हो गया। वह गंभीर रूप से अल्पपोषित था।”
इसके बाद भुजबल ने उनके आहार आवश्यकताओं का ध्यान रखा और धीरे-धीरे जाधव 400 मीटर और 800 मीटर दौड़ में सफल होने लगे, उन्होंने तालुका और डिस्ट्रिक्ट में जीत हासिल की। उनके इस प्रदर्शन ने महाराष्ट्र सरकार की क्रीड़ा प्रबोधिनी योजना के स्काउट्स का ध्यान आकर्षित किया, जो आवासीय अकादमियों में ग्रामीण क्षेत्रों के एथलीटों को मुफ्त कोचिंग, शिक्षा और आवास प्रदान करता है। लेकिन प्रवेश-पूर्व परीक्षणों से पता चला कि वह तीरंदाजी के लिए बेहतर हैं। जाधव के कोच 37 वर्षीय प्रफुल्ल डांगे कहते हैं, “स्थिरता और ताकत के साथ-साथ उनकी भुजाओं की लंबाई ने हमें यह एहसास दिलाया कि वह एथलेटिक्स से अधिक तीरंदाजी में अच्छा प्रदर्शन करेंगे।”
लेकिन जाधव के माता-पिता इस विचार के खिलाफ थे। भुजबल कहते हैं, “वे चाहते थे कि उन्हें एक उचित नौकरी मिल जाए… गाँव में कपड़े की दुकान थी और उनके पिता ने वहां काम करने के लिए ज़ोर दिया। उन्होंने महसूस किया कि जाधव को कम से कम वहां वेतन मिलेगा।”लेकिन जाधव जानते थे कि यह गरीबी का जवाब यह नहीं है। तो उन्होंने तीरंदाजी चुनी शुरू में, आधुनिक उपकरणों पर जाने से पहले पारंपरिक बांस के धनुष का उपयोग किया, या तोफिर उपहार में मिले उपकरणों का उपयोग किया। उन्होंने इस साल राष्ट्रीय ताज का दावा करने से पहले जूनियर सर्किट पर हावी होना शुरू कर दिया। वह मार्च में विश्व चैम्पियनशिप के लिए चयन परीक्षणों में टीम के साथी राय के बाद दूसरे स्थान पर थे।
पिछले साल, जब जाधव को खेल कोटे के तहत सेना में भर्ती किया गया था, तो उनके परिवार ने उनसे उस पर ध्यान केंद्रित करने और खेल छोड़ने का आग्रह किया। लेकिन भुजबल और डांगे ने हस्तक्षेप किया और जोर देकर कहा कि जाधव को तीरंदाजी जारी रखनी चाहिए। “वह एक प्राकृतिक तीरंदाज है मैंने उसकी तरह किसी अन्य खिलाड़ियों को इतना फोकस्ड नहीं देखा।” डांगे कहते हैं “वह जानता है कि यह एक अच्छा जीवन बनाने का एकमात्र मौका है।” अगर वह अपना फॉर्म बरकरार रखते हैं तो जाधव अगले जुलाई में टोक्यो में होंगे। लेकिन रविवार के फाइनल से पहले, उन्होंने अपना अधिकांश समय अपने परिवार का पता लगाने में बिताया। उन्होंने अंततः एक दोस्त को फोन किया, जो लगभग 15-20 मिनट पैदल चलकर जाँच करने के लिए चला गया। जाधव कहते हैं, ” उनका फोन टूट गया था। मैं चिंतित था क्योंकि मैंने कुछ हफ्तों के से उनसे बात नहीं की है। मुझे लगा कि पिछले कुछ दिनों से बिजली नहीं होने से उन्होंने फोन चार्ज नहीं किया होगा। लेकिन मुझे कुछ बुरा होने का डर था।”

