भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने पेरिस ओलंपिक में भारत को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने के बाद अपने 18 साल के हॉकी करियर को अलविदा कह दिया। पीआर श्रीजेश के लिए ‘Most Likeable Athlete’ विश्लेषण इस्तेमाल किया जाता है। हिंदी में इसका अर्थ सबसे पसंदीदा एथलीट।

कहते हैं प्रसिद्धि और विवाद एक दूसरे के पर्याय हैं। इंसान को जब शोहरत मिलती है तो विवाद में नाम आने की आशंका बनी रहती है। हालांकि, श्रीजेश विवादों से दूर एक शख्सियत हैं। यदि कहा जाए कि मौजूदा भारतीय हॉकी में पीआर श्रीजेश जैसा कोई नहीं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

श्रीजेश ने अपनी सच्चाई से लोगों के दिलों में एक अदृश्य तार जोड़ दिये हैं। इसके अलावा, 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक ने भी उनकी छवि को मजबूत करने में मदद की। हालांकि, पीआर श्रीजेश की खेल उपलब्धियों से कहीं ज्यादा, उनके व्यवहार ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता में अहम भूमिका निभाई है।

पीआर श्रीजेश अपने अब तक के करियर के दौरान बेहद मिलनसार रहे। हमेशा शांत रहे। कभी सेलिब्रिटी की तरह नखरे नहीं दिखाए, कभी लग्जरी कारों का घमंड नहीं किया। वह सड़क पर दिखने वाले आम आदमी की तरह बोलते, बात करते और चलते थे। इस लेख में पीआर श्रीजेश के बारे में विस्तार से जानेंगे।

श्रीजेश का जन्म 8 मई 1988 को केरल के एर्नाकुलम जिले के किझाक्कमबलम गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पीवी रविंद्रन और मां का नाम उषा है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा किझाक्कमबलम के सेंट एंटनी लोअर प्राइमरी स्कूल में पूरी की।

उन्होंने किझाक्कमबलम के सेंट जोसेफ हाई स्कूल में छठी कक्षा तक पढ़ाई की। उन्होंने केरल के कोल्लम के श्री नारायण कॉलेज से इतिहास में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बचपन में उन्होंने एक धावक के रूप में अपना करियर शुरू किया।

इसके बाद उन्होंने लंबी कूद और वॉलीबॉल में हाथ आजमाने शुरू किये। 12 साल की उम्र में, उनका दाखिला तिरुअनंतपुरम में जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल में हुआ। यहां पर उनके कोच ने उन्हें गोलकीपिंग करने का सुझाव दिया। हॉकी कोच जयकुमार ने उन्हें स्कूल टीम में चुना।

इसके बाद पीआर श्रीजेश पेशेवर गोलकीपर बन गए। श्रीजेश ने 2004 में पर्थ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में जूनियर राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई। उन्होंने 2006 में कोलंबो में दक्षिण एशियाई खेलों में सीनियर राष्ट्रीय टीम में पदार्पण किया।

2008 के जूनियर एशिया कप में भारत की जीत के बाद, उन्हें ‘टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर’ का पुरस्कार मिला। दक्षिण कोरिया के इंचियोन में 2014 एशियाई खेलों में उन्होंने भारत की स्वर्ण पदक जीत में अहम भूमिका निभाई। तब उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाए।

13 जुलाई 2016 को श्रीजेश को सरदार सिंह की जगह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान की जिम्मेदारी सौंपी गई। रियो ओलंपिक 2016 में श्रीजेश ने भारतीय हॉकी टीम को टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचाया था। पांच अगस्त 2021 को टोक्यो ओलंपिक में श्रीजेश ने जर्मनी को हराकर भारत को 41 साल बाद कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

पीआर श्रीजेश ने 2021 में इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, ‘एक गोलकीपर से प्यार करना मुश्किल है। उसकी भूमिका पर्दे के पीछे की तरह होती है। वह तभी सुर्खियों में आता है जब वह कोई गलती करता है। जब मैं छोटा था तो मुझे नहीं पता था कि भारत का गोलकीपर कौन है। इसके अलावा मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो आदर-सत्कार का लालयित है, कभी सुपरस्टार बनने के लिए नहीं भागा।’

पीआर श्रीजेश की उपलब्धियां

पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने से पहले ‘सपनों के संरक्षक’ ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। चीन में 2022 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। इंग्लैंड में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता। 2023 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में स्वर्ण पदक जीता।