महान भारतीय हॉकी प्लेयर मोहम्मद शाहिद नहीं रहे। शाहिद ओलिंपिक्स गोल्ड मेडल के अलावा एशियन गेम्स और सियोल एशियाड में मेडल जीतने वाली टीम के हिस्सा रहे। अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री से सम्मानित हुए। टीम इंडिया की अगुआई भी की। हालांकि, ऐसा बहुत कुछ है जिन्हें शाहिद के जीवनकाल में कमाई गई उपलब्धियों से बयां नहीं किया जा सकता। बहुत सारे ऐसे किस्से हैं, जिन्हें सुनकर यह अंदाजा लगाना आसान है कि आखिर क्यों वाराणसी में जन्मे इस शख्स को भारत के महानतम हॉकी प्लेयर्स में शुमार किया जाता है।
विभिन्न हॉकी प्लेयर्स और पत्रकारों ने उनसे जुड़े किस्से शेयर किए हैं। खेल पत्रकार संदीप मिसरा ने एक वेबसाइट के लिए लिखे आर्टिकल में कहा है कि 70 और 80 के दशक में लोग हॉकी देखने नहीं, बल्कि बनारस के मोहम्मद शाहिद का जादू देखने मैदान पर जाते थे। उन दिनों मोहम्मद शाहिद हॉकी का पर्याय बन चुके थे। शाहिद के पास ऐसा खेल कौशल था, जिसे सिखाया नहीं जा सकता। शाहिद की हॉकी स्टिक से ड्रिब्लिंग किसी कैसीनो में कार्ड डीलर के पत्ते फेंटने के हुनर का आभास देता था। बच्चों से लेकर बड़े तक ये जानना चाहते थे कि शाहिद किस तरह ‘डॉज मारते हैं’?
संदीप बताते हैं कि 1979 में हॉकी टीम के कप्तान वासुदेवन भास्करन को जानकारी दी गई कि यूपी स्पोर्ट्स हॉस्टल का एक लड़का मलेशिया टूर के लिए चुना गया है। इस टूर्नामेंट में चार देशों को खेलना था। भारत का मुकाबला उस वक्त की वर्ल्ड चैंपियन पाकिस्तान से होना था। भास्करन ने इस बच्चे के बारे में बस यही सुना था कि वह गेंद को अपने कब्जे से छूटने नहीं देता। दोनों की कभी मुलाकात नहीं हुई थी। भास्करन ने शाहिद को याद करते हुए कहा, ‘वो बेहद शर्मीला और छोटा था।’ एक हफ्ते के कैंप के बाद भारतीय टीम मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर के लिए रवाना हुई। वहां शाहिद और भास्करन होटल के एक ही कमरे में ठहरे।
भास्कर ने बताया, ‘दो दिन लगातार बारिश होते रही, इस दौरान हमें एक दूसरे को जानने का मौका मिला। मैंने उससे हिंदी में बात की। पाकिस्तान से होने वाले गेम के पहले मैंने उससे कहा कि सोचो कि तुम यूपी स्पोर्ट्स हॉस्टल के लिए ही खेल रहे हो।’ इंडिया ने पाकिस्तान को 2-2 के ड्रॉ के लिए मजबूर कर दिया। उस वक्त पाकिस्तान की तरफ अख्तर रसूल, मंजूर, हसन सदर और हनीफ खान जैसे खिलाड़ी हुआ करते थे। दुनिया के महानतम सेंटर हाफ में शुमार अख्तर रसूल मैच के बाद भास्करन के पास आए और पूछा, ‘ये लड़का कौन है, बहुत डॉज (चकमा देना) मारता है।’ शाहिद को उस टूर्नामेंट में बेस्ट प्लेयर का खिताब मिला। इसके अलावा, 500 मलेशियाई रिंगगिट की रकम भी। 1980 में ओलिंपिक जीतने वाली भारतीय टीम के कोच बालकिशन सिंह मानते थे कि शाहिद के डिफेंस की क्षमता सीमित थी। हालांकि, भास्करन का तर्क है, ‘क्या आप मेसी और मैराडोना को डिफेंड करने के लिए कहेंगे?’