हॉकी लीग के दो मैचों में तीसरे नंबर की टीम नीदरलैंड को लगातार धूल चटाकर भारतीय टीम ने ओलंपिक पदक की उम्मीद जगा दी है। 39 साल बाद ऐसा लग रहा है कि भारत की युवा टीम स्वर्ण पदक के सूखे को समाप्त कर सकती है। जिस दमखम के साथ खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम को पटखनी दी उससे जाहिर होता है कि उन्होंने अपने खेल में बदलाव किया। साथ ही नए कोच ग्राहम रीड की देखरेख में उन्होंने अंतिम तक मैच में बने रहना भी सीखा। इस खेल में एस्ट्रोटर्फ आने के बाद खिलाड़ियों के भीतर जिस तेजी के जरूरत थी, उसका 50 फीसद उन्होंने हासिल कर लिया। आक्रमण में भी टीम ने काफी बदलाव किया। तोक्यो ओलंपिक में उनके सामने असली चुनौती शीर्ष चार टीमें ही बनेंगी। इस लिहाज से बाकी की 50 फीसद प्रगति ही भारतीय टीम के सपने और देश के स्वर्ण पदक के सूखे का अंत कर सकती है।
दरअसल, एक दौर था जब भारतीय हॉकी टीम का ओलंपिक खेलों में दबदबा था। जब टीम मैदान में उतरती थी तो उससे सोने से कम कुछ और की उम्मीद भी नहीं होती थी। लेकिन समय बदला और बदल गई भारतीय टीम की किस्मत भी। हॉकी में एस्ट्रोटर्फ का प्रवेश हुआ और भारत पदक के दौर से बाहर। 1980 (मास्को ओलंपिक) के बाद से उसे कोई स्वर्ण पदक नहीं मिला। हालात ये हो गए कि 2008 में टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाई। रियो में टीम आठवें स्थान पर रही। 2012 में उसने 12वें स्थान पर रहकर अपना अभियान समाप्त किया। प्रदर्शन के आधार पर आकलन करें तो 80 के बाद टीम का ग्राफ लगातार गिरता चला गया। लेकिन युवाओं के प्रदर्शन और खेल में प्रगति ने उम्मीद बंधाई है कि टीम पदक जीत सकती है।
क्यों पिछड़ रही टीम
पूर्व भारतीय कप्तान धनराज पिल्लई का मानना है कि भारतीय टीम लगातार आगे बढ़ रही है। ओलंपिक में टीम के प्रदर्शन पर उन्होंने कहा कि हम बेहतर कर रहे हैं। हालांकि हमें दूसरी टीमों को भी देखना होगा। यह खेल पहले की तरह नहीं रहा। हॉकी में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। नई-नई टीमें तेजी से उभर रही हैं। ऐसे में भारत के सामने कौन सी टीम है इसका ध्यान रखकर ही हमें खिलाड़ियों के खेल का आकलन करना चाहिए।
भारतीय टीम जब हॉकी में बादशाह होती थी तब मैदान एस्ट्रोटर्फ का नहीं था। घास के मैदान पर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने दुनिया को खुद के सामने नतमस्तक किया। लेकिन एस्ट्रोटर्फ ने भारत को पीछे धकेल दिया। इन दोनों मैदानों में काफी फर्क है। एक तरफ जहां घास के मैदान पर गेंद की रफ्तार थोड़ी धीमी होती है वहीं एस्ट्रोटर्फ पर काफी तेज। घास पर गेंद को सीधी स्टिक से रोका जा सकता है तो एस्ट्रोटर्फ पर स्टिक को तिरछा करना पड़ता है। इसके अलावा ड्रिबलिंग में काफी अंतर होता है। हमारे यहां एस्ट्रोटर्फ वाले मैदान की काफी कमी है और ज्यादातर युवा घास के मैदान पर ही अभ्यास करते हैं। ऐसे में जब वे राष्ट्रीय टीम के लिए चुने जाते हैं तो एस्ट्रोटर्फ के साथ तालमेल बैठाने में उन्हें काफी दिक्कत होती है।
क्यों जगी पदक की उम्मीद
नीदरलैंड रैंकिंग में तीसरे स्थान पर है। भारतीय टीम इस सूची मे पांचवें स्थान पर काबिज है। इससे पहले आस्ट्रेलिया, बेल्जियम और अर्जेंटीना की टीमें हैं। ऐसे में प्रो हॉकी लीग के दौरान भारतीय टीम के प्रदर्शन से पदक की उम्मीद जगी है। पहले मैच में भारतीय टीम ने नीदरलैंड को 5-2 हराया तो वहीं दूसरा मुकाबला टाई होने के कारण शूटआउट तक खिंच गया। शूटआउट में भारत ने नीदरलैंड को 3-1 से हराया। कलिंगा स्टेडियम में खेले गए इस मुकाबले के दौरान भारतीय टीम हावी रही। उसके खेल ने भी प्रभावित किया।
संदीप भूषण
