आॅकलैंड में वर्ल्ड मास्टर्स गेम्स के दौरान चंडीगढ़ की 101 वर्षीय मन कौर ने एक बार फिर न्यूजीलैंड में देश का मान बढ़ाया, जहां उन्होंने सोमवार 100 मीटर स्प्रिंट का स्वर्ण पदक जीतकर अपने बेमिसाल हौसले की छाप छोड़ी। दरअ1सल, ‘आॅलंपिक फॉर वेटर्न्स’ नाम से चर्चित खेलकूद मुकाबलों का आयोजन वहां 21 अप्रैल, 2017 को शुरू हुआ। इससे पहले भी मन कौर बीते साल कनाडा के वैंकूवर में अमेरिकन मास्टर्स गेम्स में दुनिया की सबसे तेज बुजुर्ग महिला धावक का खिताब अपने नाम कर चुकी हैं।वैसे मन कौर अपनी उम्रवर्ग की इस दौड़ में एकमात्र बुजुर्ग महिला धावक थीं, पर उन्होंने फिर भी यह दौड़ एक 1.14 मिनट के समय में पूरी कर दिखाई और इस तरह वह वर्ष 2009 में विश्वप्रसिद्ध तेज धावक उसैन बोल्ट के 100 मीटर दौड़ मुकाबला जीतने में दर्ज समय से 64.42 सेकंड पीछे रह गर्इं। अपनी इस शानदार और स्मरणीय कामयाबी के बाद न्यूजीलैंड के अखबारों में मन कौर को ‘मिरेकल आॅफ चंडीगढ़’ आदि शीर्षकों आदि से खूब सुर्खियां बटोरने का मौका मिल रहा है।चंडीगढ़ के सेक्टर-40 में रहने वाले उनके पोतों-पोतियों को भी अपनी दादी की शानदार कामयाबी पर गर्व है और उनका कहना है कि वे इस उम्र में भी विदेश में बाकी पेज 8 पर अपने हौसले की धाक जमा रही हैं। मन कौर ने पंजाबी दुभाषिए की मदद से वहां मौूजद रिपोर्टरों को बताया, मैंने इस रेस का खूब मजा लिया और मुझे इसे जीतने की बड़ी खुशी है। मैं फिर दौड़ूंगी और अब जल्द हौसला नहीं छोड़ने वाली। मैं यकीनन फिर इसमें हिस्सा लूंगी। आॅकलैंड में आयोजित भागदौड़ मुकाबलों में 100 देशों से करीब 18000 प्रतियोगियों ने 28 दौड़ों में भाग लिया और मन के हौसले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सौ वर्ष के प्रतिस्पर्धी वर्ग के तहत उन्होंने वहां 100, 200 मीटर रेस, शॉट पुट और जेवलिन-थ्रो मुकाबलों में हिस्सा लिया। वर्ल्ड मास्टर्स गेम्स-2017 कीचीफ एग्जीक्यूटिव जीनहा वॉटन का कहना है कि आॅकलैंड भागदौड़ प्रतियोगिता के आयोजक इस जबरदस्त प्रेरणादायक बुजुर्ग महिला धावक मन कौर की अगवानी कर बेहद आह्लादित है।
With a jaunty victory dance, 101-year-old Man Kaur celebrates winning the 100 metres sprint at the World Masters Games in Auckland pic.twitter.com/GhWd4RjAiW
— AFP News Agency (@AFP) April 24, 2017
जो भी हो, इस बड़ी-बड़ी सफलताओं के लिए मन अपने 79 वर्षीय बेटे गुरदेव सिंह के साथ पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में प्रशिक्षण लेती रही हैं। उनके कनाडाई पासपोर्टधारक बेटे गुरदेव सिंह ने इस बारे में बताया, ट्रेनिंग के लिए चंडीगढ़ का स्टेडियम हमारे आवास से कुछ दूर था और उनकी उम्र को देखते हुए मेरे लिए उन्हें वहां ले जाने-लाने में बड़ी कठिनाई हो रही थी। यही कारण है कि हमें चंडीगढ़ से पटियाला शिफ्ट होना पड़ा। दरअसल, गुरदेव ने भी इन आॅकलैंड मास्टर्स स्प्रिंट मुकाबलों में कनाडा का प्रतिधित्व किया। वह वर्ष 2005 और 2009 के मुकाबलों में 200 मीटर रेस में चौथे स्थान पर आए थे।मन कौर के अतुलनीय जज्बे और हौसले की अनूठी और बड़ी पहचान यह भी है कि उन्होंने एथलेटिक्स मुकाबलों में हिस्सा 93 साल की उम्र में लेना शुरू किया। उसके बाद, मेडिकल चैकअप में उन्हें दौड़ने-भागने की अनुमति मिल गई और उसके दो साल बाद उन्होंने 90 वर्ष के उम्रवर्ग में 100 मीटर और 200 मीटर रेस जीती। तब से यह मां-बेटे की जोड़ी दुनियाभर के दर्जनों मास्टर्स एथलेटिक्स मुकबलों में हिस्सा लेती आई है। उनके बेटे गुरदेव सिंह का कहना है कि जब वह खुद कनाडा में 2008 के खेलकूद मुकाबलों में हिस्सा लेने पहुंचे तो वहां 90 साल की एक महिला को दौड़ते देख उनके मन में अपनी बुजुर्ग मां को भी एथलेटिक ट्रैक पर उतारने का विचार आया था। तब से उन दोनों को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी।

