आत्माराम भाटी

ओलंपिक यानी पूरी दुनिया से आए बेहतरीन एथलीटों का जमावड़ा। कोई भी खिलाड़ी यहां से बिना पदक के नहीं जाना चाहता है लेकिन, पदक उसी के गले में पहनाया जाता है जो मैदान में शारीरिक दमखम और मजबूत मानसिकता के साथ अपने विरोधियों को परास्त करते हुए विजेता बनता है। बहुत से ऐसे खिलाड़ी होते हैं जो अपने खेल में हर प्रतियोगिता में अव्वल रहते हैं। सारे रेकार्ड उनके नाम होते हैं। लेकिन, खेलों के महाकुंभ में विजेता बनने के मनोवैज्ञानिक दबाव के आगे उनका सपना अधूरा ही रह जाता है। ऐसे ही खिलाड़ियों की सूची में एक नाम और इस बार जुड़ गया। वो नाम है टेनिस के नंबर एक खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच का।

आज जोकोविच ने सबसे ज्यादा 20 ग्रैंडस्लैम जीतने वाले खिलाड़ियों रोजर फेडरर व राफेल नडाल की बराबरी की हुई है। टेनिस के प्रतिष्ठित चारों ग्रैंडस्लैम अपने नाम कर रखे हैं। लेकिन फिर भी वे अभी तक दुनिया के सबसे बड़े खेल महाकुंभ ओलंपिक में विजेता बनने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाए। इस बार तोक्यो में टेनिस में जब दो बड़े दिग्गज खिलाड़ियों रोजर फेडरर व नडाल ने भाग लेने से मना कर दिया तब सभी को विश्वास था कि जोकोविच के पास मौका होगा कि वे यहां आसानी से स्वर्ण पदक अपने नाम करें। साथ ही अगस्त में होने वाले अमेरिकी ओपन का खिताब भी अपने नाम कर पुरुष वर्ग में गोल्डनस्लैम पूरा करने वाले खिलाड़ी होने का इतिहास अपने नाम कर लेंगे। लेकिन शायद ओलंपिक विजेता बनने के दबाव के आगे वे सेमी फाइनल में ही लड़ाखड़ा कर पदक की दौड़ से बाहर हो गए।


11 बेजिंग ओलिंपिक में कांस्य पदक जीत चुके नोवाक जोकोविच ने जिस तरह से तोक्यो में क्वार्टर फाइनल तक के सफर में अपने विरोधियों और पिछले ओलंपिक के कांस्य विजेता मेजबान जापान के केई निशिकोरी को आसानी से सीधे दो सेटों में हरा सेमी फाइनल में कदम रखा, टेनिस प्रेमियों ही नहीं खुद जोकोविच को भी पूरा भरोसा था कि वे इस बार स्वर्ण पदक लेकर ही लौटेंगे। लेकिन, सेमी फाइनल के दरवाजे पर गत अमेरिकी ओपन उपविजेता एलेक्जेंडर ज्वेरेव ने पहला सेट 1-6 से हारने के बाद वापसी करते हुए आगामी दोनों सेटो में 6-3, 6-1 से जीत दर्ज करते हुए नोवाक जोकोविच का ओलंपिक गोल्ड के साथ गोल्डनस्लैम का सपना तोड़ते हुए खुद खिताबी मुकाबले में कारेन खाचानोव को 6-3, 6-1 से हराकर गोल्ड अपने नाम करने में कामयाब रहे। हारने के बाद खाचानोव भी अपने पर संयम नहीं रख पाए और अपना रैकेट बैग में रखने की बजाय तोड़कर फेंक दिया।

कहते हैं ना कि अति आत्मविश्वास भी कभी-कभी घातक हो जाता है। वही जोकोविच के साथ हुआ। सेमी फाइनल में परास्त होने के बाद जोकोविच के पास 2008 के बाद अपने देश व अपने लिए दूसरा कांस्य पदक जीतने का अवसर भी मौजूद था। लेकिन सेमी फाइनल की हार का उन पर इतना असर हुआ कि वे कांस्य पदक के मुकाबले में स्पेन के पाब्लो कारेनो बुस्टा के सामने भी अपना जो स्वाभाविक खेल है उसका प्रदर्शन नहीं कर पाए। उल्टा जब मैच तीसरे सेट में चला गया और उनसे गलतियां हुई तो अपना आपा खो कर एक बार तो रैकेट को नेट पर और दूसरी बार मैदान से बाहर तक फेंक दिया।

जोकोविच ही नहीं दुनिया के नंबर दो खिलाड़ी आंदे्रई मेदवेदेव भी क्वार्टर फाइनल में परास्त हो गए। वहीं महिला वर्ग में तो और भी सनसनी रही जब सेरेना की अनुपस्थिति में नंबर एक व हाल ही में विंबलडन जीतने वाली आस्ट्रेलिया की एश्ले बार्टी पहले ही मैच में और नंबर दो जापान की नाओमी ओसाका जिन्होंने पिछले साल अमेरिकी ओपन अपने नाम किया वो तीसरे दौर में बाहर हो गर्इं। इस कारण ओलंपिक में इस बार विजेता बनने का अवसर मिला नई प्रतिभा स्विटजरलैंड की बेलिंडा बेनसिच को जिन्होंने खिताबी मुकाबले में चेक गणराज्य की माकेर्टा वोंडरूसोवा को हराया।