पेरिस ओलंपिक 2024 में गुरुवार (9 अगस्त) को जैवलिन थ्रो फाइनल के दौरान हर किसी को गोल्डेन ब्वॉय नीरज चोपड़ा से टोक्यो ओलंपिक जैसे प्रदर्शन की उम्मीद थी। नीरज ने निराश नहीं किया। हालांकि, वह गोल्ड नहीं जीत पाए। उन्हें सिल्वर से संतोष करना पड़ा, लेकिन इसका कारण उनका खराब प्रदर्शन नहीं था। 89 मीटर से ज्यादा का थ्रो करने के बाद भी वह गोल्ड अपने पाकिस्तान दोस्त अरशद नदीम के कारण नहीं जीत पाए। अरशद ने एक नहीं दो पार 90 मीटर मे मार्क को पार किया। पहली बार उन्होंने नीरज को हराया।
अरशद नदीम ने गोल्ड जीतकर इतिहास रचा। वह ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड में गोल्ड जीतने वाले पाकिस्तान के पहले एथलीट बने। नीरज चोपड़ा के प्रतिद्वंदी अरशद परिचय के मोहताज नहीं हैं। जब भी जैवलिन थ्रो का इवेंट होता है और नीरज की बात होती है तो अरशद का नाम लिया जाता है। हालांकि, दोनों के हालात में काफी फर्क है। अरशद का सफर काफी संघर्षों से भरा रहा है। यह स्टार बनने के बाद भी खत्म नहीं हुआ। 6 महीने पहले तक वह भाले के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस पर नीरज ने भी हैरानी जताई थी।
नए भाले के लिए संघर्ष
अरशद मार्च 2024 में नए भाले के लिए संघर्ष कर रहे थे। नीरज ने अरशद की मदद करने की अपील की थी। अरशद ने बताया था कि वह लगभग सात-आठ वर्षों से एक ही भाले इस्तेमाल कर रहे थे। इंटरनेशनल लेवल के एथलीट के लिए ऐसी स्थिति आदर्श नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था, “अब स्थिति ऐसी हो गई है कि भाला टूट गया है और मैंने राष्ट्रीय महासंघ और अपने कोच से पेरिस ओलंपिक से पहले इस बारे में कुछ करने को कहा है। जब मैंने 2015 में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू किया, तो मुझे यह भाला मिला था। ओलंपिक खेलों में पदक जीतने का लक्ष्य रखने वाले अंतरराष्ट्रीय एथलीट के लिए आपको बेहतर उपकरण और ट्रेनिंग सुविधाओं की आवश्यकता होती है।”
राजमिस्त्री के बेटे हैं अरशद
अरशद के पिता ने 2023 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के बाद द इंडियन एक्सप्रेस को इंटरव्यू में बताया था कि अरशद और उनके परिवार का जीवन कितनी संघर्षों में बिता है। खानेवाल जिले के मियां चन्नू शहर में पेशे से राजमिस्त्री मुहम्मद अशरफ के सात बच्चे हैं। एक वक्त था जब 9 लोगों का परिवार में दिने 300-400 रुपये की कमाई में गुजारा करता था। तब उन्होंने बताया था कि अरशद के पास स्पॉन्सर तक नहीं है।
स्पॉन्सर भी नहीं हैं
अरशद के पिता ने बताया था, ” हमने ऐसे दिन भी देखे हैं जब मैं रोजाना 300-400 रुपये कमाता था और मुझे घर पर नौ लोगों का भरण-पोषण करना पड़ता था। लेकिन हमने यह सुनिश्चित किया कि अरशद और उसके भाई-बहनों को दूध और घी मिले। आज भी जब वह पदक जीतकर गांव लौटता है,तो वह एक गिलास दूध और देसी घी से बने व्यंजन मांगता है। मैं भाग्यशाली रहा हूं कि मेरी रोजाना की कमाई और जो कुछ भी मैं कर सकता था,उससे मेरे पांच बेटे और दो बेटियां अब अच्छी तरह से बसे हुए हैं। लेकिन अरशद के पास कोई स्पॉन्सर नहीं है और उसे हर दिन अपनी कंप्टिशन और सपोर्ट के लिए सोचना पड़ता है। महीने गैस बिल ज्यादा आने के कारण हमें कनेक्शन काटना पड़ा और खाना पकाने के लिए कोयले का इस्तेमाल करना पड़ा।”