नवजोत सिंह सिद्धू न सिर्फ शानदार क्रिकेटर बल्कि कुशल कमेंटेटर, प्रसिद्ध राजनेता और हाजिरजवाब इंसान भी हैं। हालांकि, बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वह बहुत जिद्दी थे। यहां तक कि उन्हें बिगड़े दिल शहजादा कहा जाता था। इस सच से नवजोत सिंह सिद्धू इनकार भी नहीं करते। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के शो आप की अदालत में स्वीकार किया था कि वह जिद्दी नंबर वन थे। यही वजह थी कि उन्हें बिगड़े दिल शहजादा का तमगा मिला था।

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व ओपनर नवजोत सिंह सिद्धू ने साल 1983 में इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू किया था। हालांकि, तब वह खास सफल नहीं हो पाए। वह अपने शुरुआती दो टेस्ट मैच की 3 पारियों में सिर्फ 39 रन ही बना पाए थे। इसके बाद वह टीम से ड्रॉप कर दिए गए। साल 1987 में कपिल देव की कप्तानी में उन्हें वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू का मौका मिला और वहां से उनके करियर को नया मुकाम मिला। नवजोत सिंह सिद्धू ने शुरुआती 5 वनडे में से 4 में अर्धशतक लगाए। एक में उन्हें बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिला। नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने 15 साल के क्रिकेटिंग करियर के दौरान 51 टेस्ट और 136 वनडे इंटरनेशनल मैच खेले थे। इसमें उन्होंने 3202 टेस्ट और 4413 वनडे रन बनाए थे। इसमें उनके 9 टेस्ट 6 वनडे शतक शामिल हैं। टेस्ट में उनका हाइएस्ट स्कोर 201 रन था, जबकि वनडे में नाबाद 134 रन।

शो के दौरान सिद्धू ने कहा, ‘बिल्कुल सही है। मैं तो हर जगह कहता हूं कि सभी को सभी कुछ हासिल नहीं होता, नदी की हर लहर साहिल नहीं मिलता, ये दिलवालों की दुनिया है, अजब है दास्तां इसकी, किसी से दिल नहीं मिलता, कोई दिल से नहीं मिलता। मैंने तो कभी कहा ही नहीं है हुजूर कि मुझमें त्रुटियां नहीं हैं। मुझमें खामियां नहीं हैं। मुझमें बुराइयां नहीं हैं।’

उन्होंने कहा, ‘इंसान गलतियों का पुतला है। और उन चीजों का इस्तकबाल करना कोई बुरी बात नहीं है। सुन लो यार, सोने में सुगंध नहीं। गन्ने में फूल नहीं। चंदन में फल नहीं होता। राजा दीर्घाजीवी नहीं होता। विद्वान के पास धन नहीं होता। किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं कहीं आसमां नहीं मिलता। अगर मुझमें कोई त्रुटि है, तो मैं समझता हूं उसमें कोई बुराई नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं एक बात आपको कह दूं कि जिद्दी होना अगर एक तरफ बुरा है तो एक तरफ अच्छा भी है। क्योंकि जिद्दी होने से इच्छाशक्ति पनपती है। मैं समझता हूं कि अगर आदमी अंगद के पैर की तरह एक बार पैर जमा दे और किसी चीज को करने की ठान ले और अगर उसमें इच्छाशक्ति हो तो दुनिया को अपने सांचे में ढाल सकता है। अरे मैं तो कहता हूं कि दारू पीने वाला रात को ठेका ढूंढ़ लेता है, चाहे ड्राई एरिया में ही क्यों न हो, तो फिर इंसान में अगर इच्छाशक्ति हो फिर वह अच्छे कार्य के लिए अगर किसी चीज को ठान ले तो फिर मैं समझता हूं कि वह कर सकता है।’