तीरंदाज भवानी देवी ने वह कर दिखाया जो पिछले 125 साल में कोई भारतीय एथलीट नहीं कर पाया नहीं हुआ था। वह ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय तीरंदाज बन गई हैं। अपनी इस उपलब्धि का श्रेय वह अपने परिवार को देती हैं। उनके मुताबिक, मेरी मां ने अपने गहने गिरवी रखे। लोगों से उधार लिया, लेकिन कभी ऐसी नौबत नहीं आने दी, जिससे खेल के प्रति मेरे जुनून में जरा सी भी कमी आए।

भवानी देवी का पूरा नाम चदलवदा अनंधा सुंदररमन भवानी देवी है। हालांकि, साथियों और प्रशंसकों के बीच वह सीए भवानी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भवानी देवी के हवाले से लिखा है, ‘इसे लेकर कोई दो राय नहीं कि मैं आज यहां पर अपने परिवार की बदौलत हूं। मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आने के बावजूद मेरे माता-पिता हर स्थिति में मेरे साथ खड़े रहे।’ 27 साल की भवानी देवी के पिता सी सुंदरमन पुजारी थे और माता रमानी एक गृहिणी हैं।

भवानी देवी ने बताया, ‘मेरी मां ने मेरी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने गहने गिरवे रख दिए। मैं प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले पाऊं इसके लिए लोगों से उधार लिया। मुझे याद है कि जब-जब हम पैसे की व्यवस्था करने में विफल रहे तब मैं प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाई थी। मैंने दो साल पहले अपने पिता को खो दिया था। मैं इस मौके पर उन्हें सबसे ज्यादा मिस कर रहीं हूं।’

भवानी देवी ने बताया, ‘पिछले कुछ साल से मेरे सपोर्ट सिस्टम में गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन (GoSports Foundation) शामिल है। गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन ने मुझे राहुल द्रविड़ एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम, स्पोर्ट्स स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ तमिलनाडु, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया और तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के जरिए समर्थन किया। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मैं इस समय धन्यवाद देना चाहती हूं, क्योंकि उनके बिना यह यात्रा संभव नहीं थी।’

भवानी देवी ने समायोजित आधिकारिक रैंकिंग (एओआर) के आधार पर ओलंपिक क्वालीफिकेशन हासिल किया। विश्व रैंकिंग के आधार पर पांच अप्रैल 2021 तक एशिया-ओशिनिया क्षेत्र के लिए दो जगह थीं। भवानी फिलहाल 45वें स्थान पर है। रैंकिंग के आधार पर वह एक स्थान हासिल करने में सफल रहेंगी। इस 27 साल की खिलाड़ी के आधिकारिक क्वालीफिकेशन पर मुहर 5 अप्रैल को रैंकिंग जारी होने पर लगेगी।

बता दें कि पहली बार तलवारबाजी (फेन्सिंग) को 1896 एथेंस ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया था। तब से यह खेल लगातार ओलंपिक का हिस्सा है। साल 1924 तक इस खेल में सिर्फ पुरुष ही हिस्सा लेते थे, लेकिन पेरिस ओलंपिक खेलों से इस प्रतियोगिता में महिलाएं भी हिस्सा लेने लगीं। हालांकि, भवानी देवी से पहले 125 साल में कोई भी भारतीय इस खेल में ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया था।

वर्तमान में, पुरुष और महिला अलग-अलग प्रकार के हथियारों (फॉयल, एप्पी, साबरे) के साथ व्यक्तिगत और टीम स्पर्धाओं में हिस्सा लेते हैं। 1996 में अटलांटा ओलंपिक के समय तक महिलाएं सिर्फ एप्पी इवेंट में हिस्सा लेती थीं, लेकिन 2004 एथेंस ओलंपिक में पहली बार महिलाओं का साबरे इवेंट लांच हुआ।