वे यह उपलब्धि पाने वालीं पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। उन्होंने कांस्य पदक के प्ले आफ मुकाबले में दुनिया की छठे नंबर की जापानी खिलाड़ी हीना हयात को फतह किया। मनिका के इस प्रदर्शन से यह उम्मीद बनने लगी है कि भारत 2024 में पेरिस ओलंपिक की टेबल टेनिस में भी पदक का खाता खोल सकता है। मनिका ने इस पदक को जीतने के दौरान जिस तरह की संघर्ष क्षमता को दिखाया, वह उन्हें स्तरीय खिलाड़ी बनाता है।
हयात की सर्विस खासी मुश्किल मानी जाती है। मनिका ने इस मुकाबले के दौरान हयात को आक्रमण करने के लिए जरा भी मौका नहीं दिया। इस खूबी की वजह से ही वे अपनी विपक्षी खिलाड़ी को चौथे गेम में 6-10 से पिछड़ने के बाद भी दो-दो गेमों की बराबरी पर आने से रोकने में कामयाब रहीं। मनिका जानती थीं कि यदि हयात ने चौथा गेम जीत लिया तो वे खेल में वापसी कर सकती हैं। पर उन्होंने इस गेम को 12-10 से जीतकर हयात पर और दबाव बना दिया। इस चैंपियनशिप में किए प्रदर्शन को मनिका बत्रा कभी नहीं भूलना चाहेंगी। उन्होंने प्री क्वार्टर फाइनल में विश्व की सातवीं रैंकिंग की चीनी खिलाड़ी चेन सिंगटोंग को हराया। पर सेमीफाइनल में वे पांचवीं रैंकिंग की मीमा इतो से हार गईं।
मनिका ने कहा कि सेमीफाइनल में मीका इतो से हारने से वे बहुत निराश थीं। पर उन्होंने सोचा कि इतो बड़ी खिलाड़ी हैं और वे उनसे बुरी तरह नहीं हारी हैं और उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। इस दौरान उन्होंने अपने दिमाग को ठंडा बनाए रखकर कांस्य पदक के मुकाबले पर अपना ध्यान केंद्रित रखा। वे कहती हैं कि बहुत ज्यादा नहीं सोचने का भी यह परिणाम रहा है। वैसे मनिका अपने करिअर को लेकर हमेशा स्पष्ट रहीं हैं। उन्हें शुरुआती करिअर में ही माडलिंग के प्रस्ताव मिलने लगे थे पर उन्होंने इन्हें स्वीकार नहीं किया।
राजधानी दिल्ली के नारायणा में जून 1995 में जन्मीं मनिका ने अपनी बड़ी बहन आंचल और भाई साहिल को टेबल टेनिस खेलते देखकर मात्र चार प्रायोजन नहीं पा सकी थीं, पर उन्होंने कड़ी मेहनत करना जारी रखा और 21 साल की उम्र तक राष्ट्रमंडल खेलों , एशियाई खेलों और ओलंपिक खेलों में भाग लेने का अनुभव पा चुकी थीं। यह सही है कि इन तीनों ही बड़े खेलों में वे उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकीं। लेकिन इन खेलों में भाग लेने का अनुभव 2018 के गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेल में काम आया। इन खेलों में उन्होंने दो स्वर्ण सहित चार पदक जीते।
मनिका बत्रा की इन सफलताओं के पीछे उनकी कड़ी मेहनत तो है ही। इसके अलावा तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षक मेसिमो कांस्टेनटाइन की भी भूमिका खासी रही है। गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेल की तैयारियों के लिए लगे प्रशिक्षण शिविर में मेसिमो जानते थे कि उनकी प्रमुख चुनौती सिंगापुर की खिलाड़ी बनेंगी और इन खिलाड़ियों की गति और स्पिन से पार पाना आसान नहीं है।
इसलिए उन्होंने मनिका को लंबे दानों वाली रबड़ के रैकेट से खेलने को कहा। शुरुआत में मनिका को इन रैकेट से खेलने में खासी दिक्कत भी हुई। पर वे पक्के इरादे वाली हैं और उन्होंने कड़ी मेहनत करना जारी रखा और जल्द ही इन रैकेट से खेलने में पारंगत हो गईं। इस बदलाव ने मनिका को शिखर पर पहुंचा दिया। इसके अलावा बत्रा ने गोल्ड कोस्ट के लिए जर्मनी में एक माह अभ्यास करके तेज सर्विस, स्मैश और गेंद पर बेहतर नियंत्रण का प्रशिक्षण लेकर विजेता बनाया।
मनिका को इस मुकाम तक पहुंचाने में पिता गिरीश और माता सुषमा का भी कम योगदान नहीं रहा। माता-पिता ने बेटी के टेबल टेनिस को ध्यान में रखकर नारायणा विहार और आसपास के कई स्कूल बदल दिए थे। यह सफर आखिर में हंसराज माडल स्कूल में जाकर रुका। इस स्कूल में रहने के दौरान उन्होंने जब आठ साल की बालिकाओं का राज्य स्तरीय खिताब जीता तो उनके करिअर ने सही आकार लेना शुरू किया।
इस समय ही माता पिता ने बेटी के लिए संदीप गुप्ता से प्रशिक्षण दिलवाना शुरू किया। कुछ ही समय में वे दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन गर्इं। उन्होंने 15 साल की उम्र में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। इसके बाद उन्होंने सफलताएं लगातार उनके कदम चूमने लगीं। 2011 में चिली ओपन के अंडर-21 वर्ग में रजत पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलताएं पाने का शुरू हुआ सिलसिला राष्ट्रमंडल खेल में दो स्वर्ण सहित चार पदक और एशिया कप में कांस्य पदक जीतने तक पहुंचा है।