मनीष कुमार जोशी
एक ऐसा खेल जहां कोई शोर शराबा नहीं है। कोई हल्ला नहीं है। किसी भीड़ का दबाव नहीं है। परंतु रोमांच इतना ज्यादा है कि भीड़ भरे स्टेडियम के खेल भी पीछे छूट जाएं। रोमांच इतना कि आप अपनी सीट को एक सेकेंड के लिए भी छोड़ ना पाए। ऐसे खेल में जीतना और अपनी जीत को कायम रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। वह भी जब आप शांति से बिना किसी सहारे के शीर्ष स्थान पर बने रहे। ऐसा ही है रोमांच मिलता है हमें शतरंज के खेल में।
इस 64 खाने की खेल पर नार्वे के मैगनस कार्लसन ने अपनी पकड़ इतनी मजबूत बनाई है की कोई भी उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं है।हाल ही में संपन्न विश्व चैंपियनशिप में मैगनस कार्लसन ने पांचवी बार विश्व खिताब अपने नाम किया है। इस खिताब को बचाने में उन्हें बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आई। दुनिया का कोई भी शातिर उन्हें 64 खानों पर डिगा नहीं पाया है। उसकी किलेबंदी को ना तो कोई शातिर समझ पाया है और ना ही उसे भेद पाया है। ऐसे में लगता है की 64 खाने के इस खेल पर उनका राज काफी लंबे समय तक टिकने वाला है।
कार्लसन ने यह सोचा नहीं था कि विश्व चैंपियनशिप में उन्हें इतनी आसानी से जीत मिलेगी। कार्लसन ने फिडे विश्व चैंपियनशिप में रूस के नेपोम्नियाटची को आसानी के साथ 7.5-3.5 अंकों के अंतर से हराया। शतरंज की विश्व चैंपियनशिप में यह 100 सालों में सबसे बड़ी जीत है। खिताब के लिए खेली जाने वाली कोई भी बाजी रोमांचक हुए बिना नहीं रह सकती है। कार्लसन और नेपोम्नियाटची के बीच में खेला गया मैच भी रोमांच से भरपूर रहा हालांकि आप मैच के स्कोर से यह अंदाजा नहीं लगा सकते कि विश्व खिताब के दो दावेदारों के बीच मैच रोमांचक भी रहा है। निर्णायक बाजी मे दोनों बराबरी के स्तर पर चल रहे थे। रूस के ग्रैंड मास्टर नेपोम्नियाटची ने जैसे ही गलती की, कार्लसन ने कोई भूल नहीं की और बाजी अपने पक्ष में कर ली। उसकेबाद नेपोम्नियाटची वापसी नहीं कर पाए।
विश्व खिताब का फैसला 14 बाजियों में होना था परंतु कार्लसन 11 वी बाजी में ही चैंपियन बन गए और इतने बड़े अंतर से चैंपियन बने इससे पहले इतना बड़ा अंतर 1921 मे हवाना मे हुआ था, जब जोंस रोल कैपा ब्लैंका ने इमानुएल नैस्कर को हराया था। इस चैंपियनशिप का टर्निंग प्वाइंट गेम सिक्स रहा जिसमें 136 साल चली गई। 7 घंटे 45 मिनट तक चली यह बाजी कार्लसन ने जीती। यह चैंपियनशिप के इतिहास की सबसे लंबी बाजी रह। इस मुकाबले में जितनी चर्चा कार्लसन की जीत की थी उतनी ही चर्चा नेपोम्नियाटची की हार की थी। जिस तरह से वे हारे उसे चैंपियनशिप के 135 साल के इतिहास में सबसे खराब कहा जा रहा है।
लगातार पांचवें खिताब के साथ कार्लसन का 64 खानों पर अविरल राज हो गया। कार्लसन को पांच बार विश्व चैंपियन बनने में केवल दो बार कड़ी टक्कर मिली। एक बार 2013 में जब पहली बार वे भारत के विश्वनाथ आनंद को हराकर चैंपियन बने और अब 2021 में नेपोम्नियची को हराकर चैंपियन बने हैं। इस बार जीतना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं रहा। इस सफर में 136 चाल वाली बाजी भी रही। 2013 के बाद से कार्लसन को कोई बड़ी चुनौती नहीं मिली है। एक या दो शातिरो को छोड़कर कोई भी उन्हें हरा नहीं पाया है।
रूस के ने नेपोम्नियाटची एक बार ही हरा पाए हैं। कार्लसन को हरा पाना आसान काम नहीं है। कार्लसन की 64 खानों पर अपनी पकड़ मजबूत है और इस कारण उसके प्रतिद्वंदी गलती कर बैठते हैं। उसका काम आसान हो जाता है। विश्व चैंपियनशिप के खिताबी मुकाबले में नेपोम्नियाची गलती से किंग के आगे पैदल कर बैठे और वे कार्लसन के जाल में उलझ गए। यह बताता है की कार्लसन की पकड़ कितनी मजबूत है और निगाहेंं कितनी तीक्ष्ण। नेपोम्नियाची के अलावा हिराकी विश्वनाथ आनंद और टॉपलोव उन्हें हरा चुके हैं। विश्व चैंपियन बनने के बाद उन्हें नेपोम्नियाची से ही कड़ी चुनौती मिली है परंतु एक बार को छोड़कर हर बार जीते हैं। कार्लसन की रणनीति स्पष्ट है। 64 खानों पर उसकी ओपनिंग का कोई मुकाबला नहीं है। उसकी सधी हुई रणनीतिक चालें प्रतिद्वंदी को गलती करने पर मजबूर करती है।
विश्व शतरंज के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए 64 खानों पर कार्लसन अजेय दिख रहे हैं। विश्वनाथन आनंद के बाद कार्लसन ने शतरंज की दुनिया में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। केवल पांच बार चैंपियन बनने से ही नहीं बल्कि उसके खेल का भी पूरी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। अब देखना यह है कि कार्लसन कितने समय तक चौसठ खानो पर अजेय रहते हैं। आनंद की बादशाहत खत्म होने के बाद कार्लसन का उभरना रूस के बढ़ रहे दबदबे को रोकना है। आनंद की बादशाहत के साथ रूस का दबदबा भी बढ़ रहा था। नेपोम्नियाची उसी कड़ी का हिस्सा हैं परन्तु कार्लसन ने सभी की उड़ान को रोक दिया है। वर्तमान मे तो वही चौंसठ खाने के बादशाह हैं।