भारतीय हॉकी टीम पेरिस ओलंपिक में बहुत मामूली अंतर से फाइनल में पहुंचने और गोल्ड मेडल जीतने से चूक गई थी। जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल में भारतीय टीम 15 खिलाड़ियों से ही खेली, क्योंकि उसके फर्स्ट रशर अमित रोहिदास को ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ मैच के दौरान रेड कार्ड दिया गया था। सेमीफाइनल में भारत को अमित की कमी बहुत ज्यादा खली और टीम को 2-3 से हार झेलनी पड़ी।
पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट अमित रोहिदास फर्स्ट रशर होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण डिफेंडर भी हैं। वह पेनल्टी कॉर्नर को सफलतापूर्वक रोकने में भी माहिर हैं। कहना गलत नहीं होगा कि यदि पेरिस ओलंपिक के सेमीफाइनल मैच में भारतीय टीम के पास अमित रोहिदास का उचित विकल्प होता तो शायद नतीजा कुछ और हो सकता था।
भारतीय हॉकी टीम मैनेजमेंट ने पिछली गलतियों से सबक लिया है। भारतीय हॉकी की दीवार कहे जाने वाले पीआर श्रीजेश भी संन्यास ले चुके हैं। उनकी जगह कृष्णा पाठक और सूरज करकेरा टीम में गोलपोस्ट संभाल रहे हैं, लेकिन कभी-कभी पीआर श्रीजेश की कमी दिख जाती है। यही वजह है कि टीम मैनेजमेंट बेंच स्ट्रेंथ भी साथ-साथ तैयार करने में जुटा है। यह जानकारी भारतीय हॉकी टीम के सहायक कोच शिवेंद्र सिंह ने जनसत्ता को दी।
2016 से शुरू हुआ था पीआर श्रीजेश का पीक
शिवेंद्र सिंह ने भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के बेंगलुरु स्थित नेताजी सुभाष दक्षिण केंद्र में बताया, ‘देखिए, श्रीजेश को भी उस पोजिशन तक पहुंचने में काफी समय लगा। श्रीजेश ने मेरे साथ 2010 का वर्ल्ड कप खेला था। उसका पीक शुरू हुआ 2016 के बाद से। मतलब 6 साल उसे भी तैयार होने में लगा। …और ये जो सूरज करकेरा और कृष्णा पाठक हैं, ये 2018 से टीम के साथ जुड़े हुए हैं। पाठक थोड़ा देर लेट आया लेकिन सूरज काफी समय से है। उन्होंने एशियन गेम्स खेला, कॉमनवेल्थ गेम्स खेला।’
3-4 अच्छा मैच खेलने पर बहुत बढ़ जाएगा कॉन्फिडेंस लेवल
उन्होंने कहा, ‘मतलब कहीं न कहीं उनके पास भी अनुभव है। तो ऐसा नहीं है कि वे भारतीय हॉकी टीम के लिए नए हैं। बस एक कॉन्फिडेंस डेवलप होने की बात होती है। आप 3-4 मैच अच्छा खेल जाते हैं तो कॉन्फिडेंस लेवल बहुत बढ़ जाता है। विजन चेंज हो जाता है। तो ये चीजें भी मायने रखती हैं। हम दोनों गोलकीपरों को बराबर मौके दे रहे हैं। जो ज्यादा अच्छा परफॉर्म करेगा…, जैसे हमने प्रो लीग में देखा। तो आने वाला कोई भी टूर्नामेंट होगा तो हम उसे खिला सकते हैं।’
हमेशा मिला है हॉकी इंडिया लीग का फायदा
हॉकी इंडिया लीग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना फायदा मिल सकता है, के सवाल पर वह बोले, ‘देखिए हॉकी इंडिया लीग का हमेशा से हमें फायदा मिला है। पहले पीएचएल (प्रीमियर हॉकी लीग) हुआ करती थी। उससे भी कई खिलाड़ी निकल आए। मैं भी उसका प्रोडक्ट हूं। मैं उस लीग में खेला था तो मुझे टीम में चुने जाने का मौका मिला था। उसके बाद मनदीप सिंह, मनप्रीत… कितने ही लड़के हैं, जो उस लीग में खेले हैं और टीम में चुने गए हैं। तो कहीं न कहीं यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है।’
पेरिस में अमित को रेड कार्ड मिलना बहुत बड़ा एक्सीडेंट था
पेरिस ओलंपिक की गलतियां सुधारने को लेकर शिवेंद्र सिंह ने कहा, ‘पेरिस ओलंपिक में जो दुर्भाग्यवश अमित को रेड कार्ड मिल गया था, वह हमारे लिए बहुत बड़ा एक्सीडेंट था। इसके बावजूद हमने क्वार्टर फाइनल मैच में कमबैक किया। आज तक हिस्ट्री में किसी भी टीम के साथ ऐसा नहीं हुआ, लेकिन इंडियन खिलाड़ियों में जीत का जो पैशन था, वह करके दिखाया। हालांकि, अमित की कमी का खामियाजा हमें सेमीफाइनल में भुगतना पड़ा। वह दुनिया के बेस्ट पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट हैं। यही नहीं, कहीं न कहीं अमित हमारा दुनिया का बेस्ट फर्स्ट रनर है, लेकिन वह हमारे पास नहीं था।’
उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘दूसरी टीम (जर्मनी) के पास यह प्लस पॉइंट था और उनके ड्रैग फ्लिकर ने हमको अंतिम में 2 गोल मारे और जर्मनी को जीत दिलाई। अगर हमारा अमित होता तो हम लोग सेमीफाइनल में जर्मनी को हरा सकते थे। तो उसके बाद से ही हमारी तैयारी चालू हो गई है कि अगर हमारा बेस्ट फर्स्ट रशर या जो भी ड्रैग फ्लिकर है या स्टॉपर है, तो अगर ये नहीं हैं तो हमारे पास प्लान बी क्या है। तो इसके लिए भी हम लोग बराबर से तैयारी कर रहे हैं। जिससे की अगर हमारा फर्स्ट वाला नहीं होता है या दुर्भाग्यवश वह चोटिल हो जाता है या कार्ड मिल जाता है तो हमारी योजनाओं पर फर्क नहीं पड़े।’
बेंगलुरु SAI सेंटर की सुविधाओं के मुरीद हैं शिवेंद्र
SAI सेंटर बेंगलुरु के बारे में शिवेंद्र सिंह ने कहा, ‘जब भी मैं यहां आता हूं, तो बाहर नहीं जाता। यहां की सुविधाएं प्रभावशाली हैं और ऑक्सीजन का स्तर ऊंचा है। यहां बहुत हरियाली है। यहां खिलाड़ियों के लिए विश्वस्तरीय भोजन की व्यवस्था है। मैंने पहले कभी और कहीं ऐसी सुविधाएं नहीं देखीं…। पहले एथलीट्स के लिए कोई पुनर्वास केंद्र और कोई अतिरिक्त जिम नहीं था।’
उन्होंने कहा, ‘अब, हॉकी के लिए एक अलग रिकवरी सेंटर और अन्य एथलीट्स के लिए एक अलग रिकवरी सेंटर है। आपको कभी इंतजार नहीं करना पड़ता; आप अपना समय तय कर सकते हैं और रिकवरी के लिए वहां जा सकते हैं। भोजन भी एक बड़ी भूमिका निभाता है, यहां एक आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ हैं जो सलाह देते हैं कि कितना खाना चाहिए और क्या नहीं, जो हमारे लिए बहुत मददगार है।’
(लेखक भारतीय खेल प्राधिकरण के निमंत्रण पर एनएसएससी बेंगलुरु में थे।)