खेल के सबसे जरूरी नियमों में से एक है ‘ठहरना’। चाहे क्रिकेट हो, फुटबॉल या फिर कोई और खेल। ठहरना सबकी जरूरत है। यह ठहराव कुछ पल का भी हो सकता है और कुछ मिनटों का भी। मसलन, फुटबॉल और हॉकी को काफी तेज खेलों का दर्जा दिया गया है। यहां पलक झपकते ही विरोधी विजयी हो जाता है। लेकिन जब पेनल्टी पर गोल करने की बारी आती है तो खिलाड़ी गोलकीपर के दिमाग को पढ़ने के लिए कुछ पहल ठहरता है और रणनीति के साथ गेंद को मंजिल तक पहुंचाने का प्रयास करता है।

दिसंबर 2019 में कोरोना विषाणु का पहला मरीज चीन में पाया गया था। तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह इतना खतरनाक होगा। इस महामारी ने दिग्गज फुटबॉलरों के पैर बांध दिए हैं। उन्हें मैदान पर ड्रिब्लिंग करने की जगह घर में कैद होना पड़ा है। ठीक ऐसे ही दूसरे विश्व युद्ध ने फुटबॉल खिलाड़ियों के रफ्तार पर ब्रेक लगा दी थी। हालांकि तब हालात इतने भयावह नहीं थे जितने आज हैं लेकिन तब भी कई टूर्नामेंटों को रद्द करना पड़ा था।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूरोपियन फुटबॉल पर व्यापक असर पड़ा था। 1939 के मध्य से 1946-47 तक लगभग सभी टूर्नामेंटों को रोक दिया गया था। इस दौरान कई फुटबॉलरों ने युद्ध में अपना योगदान दिया और कई शहीद भी हुए। इस दौरान छपे कुछ रिपोर्ट के मुताबिक इंग्लैंड के राष्ट्रीय लीगों को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। स्थानीय लीगों को हालांकि जारी रखा गया था।

बाद में ‘वार टाइम लीग’ और ‘द वार कप’ के नाम से फुटबॉल लीगों की शुरुआत हुई। फ्रांस ने भी 1945 तक अपने सभी राष्ट्रीय लीगों को रद्द कर दिया था। ऐसा माना जाता था कि अगर खेलों का आयोजन किया गया तो वहां प्रशंसक बड़ी संख्या में जुटेंगे और यह दुश्मनों के लिए हमला करने का मौका प्रदान करेगा। 1946 से फ्रांस में भी फुटबॉल प्रतियोगिताओं का आयोजन शुरू हो गया था।

विश्व युद्ध की जद से फुटबॉल विश्व कप भी नहीं बच पाया था। विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद यानी 1942 और 1946 फीफा विश्व कप को रद्द कर दिया गया था। दरअसल, 13 अगस्त 1936 को फीफा के 23वें आम बैठक में जर्मनी ने मेजबानी का दावा किया। बाद में ब्राजील ने भी मेजबानी की इच्छा जताई। लेकिन जब तक इस पर फैसला हो पाता विश्व युद्ध छिड़ गया। इसके कारण विश्व कप को रद्द करना पड़ा। अगले चार साल के बाद जब इसके आयोजन की बारी आई तब ज्यादातर देशों ने इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने पर सहमति जताई। दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद कोई भी इस स्थिति में नहीं था कि वह इतने बड़े टूर्नामेंट की मेजबानी कर सके। इसके बाद इसे 1950 में ब्राजील की मेजबानी में आयोजित किया गया।

दूसरी तरफ स्पेनिश गृह युद्ध के कारण 1936 से 1939 तक स्पेन ने सभी प्रीमेरा डीविजन लीगों को स्थगित कर दिया था। हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ईटली की सबसे बड़ी लीग सीरी ए बदस्तूर जारी रही। 1943 तक इसमें कोई खलल नहीं पड़ा। 1944-45 से 1945-46 के बीच हालांकि इसे रद्द कर दिया गया था।
जर्मनी में गउलीगा, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी जारी रहा। इस दौरान चाल्के सबसे सफल क्लब रहा जिसने 1939 से 1944 के बीच छह चैंपियनशिप जीते। जर्मनी में फुटबॉल को असली झटका युद्ध के बाद लगा। यही कारण रहा कि 1948 तक यहां किसी भी राष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन नहीं हुआ।

पहले विश्व युद्ध के दौरान फुटबॉल : एक खेल के रूप में पहले विश्व युद्ध के शुरू होने तक फुटबॉल काफी लोकप्रिय खेलों में शामिल था। कई बड़े और अमीर देशों में इसे खेला जाता था। हालांकि यह भी कहा जाता है कि फुटबॉल मुख्य रूप से कामगारों और युद्ध में लड़ने वाले जवानों का खेल था। इसके पीछ का तर्क भी इस तथ्य को साबित करने में सहायक है कि इसमें कम खर्च में काफी लोगों को मनोरंजन हो जाता था और युद्ध के दौरान जवानों को एकजुट रहने की शिक्षा भी इसी खेल के सहारे दी जाती थी।

1914 में विश्व युद्ध शुरू होने के साथ ही फुटबॉल की प्रतियोगिताएं रद्द होने लगीं। इंग्लैंड, फ्रांस, इटली और जर्मनी जैसे देशों ने अपने यहां राष्ट्रीय लीगों को रद्द कर दिया। स्पेन में तब तक ला लीगा का जन्म नहीं हुआ था जिसे 1929 में बनाया गया।
पहले विश्व युद्ध के दौरान भी बड़ी संख्या में फुटबॉल खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया। इस दौरान इंग्लैंड फौज ने तो एक पूरी बटालियन ही बना रखी थी जिसका नाम फुटबॉल बटालियन था। इसका संचालन बर्मिंघम सिटी के पूर्व खिलाड़ी फ्रैंक बकले के हाथों में था। इस बटालियन में मैनेचेस्टर युनाइटेड से लेकर चेल्सी तक के खिलाड़ी सेवा दे रहे थे।

युद्ध के दौरान खेला गया यादगार मुकाबला
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक यादगार मैच जर्मनी और ब्रिटेन के फौजियों के बीच खेला गया था। यह मुकाबला कई मायने में खास था। युद्ध के माहौल में क्रिसमस के मौके पर खेला गया मैच शांति का पैगाम था। इसे बॉक्सिंग डे फुटबॉल मैच भी कहा गया था जो 26 दिसंबर को खेला गया था। इस दौरान कई भारतीय भी टीम में शामिल थे जो तब ब्रिटेन की सरकार के लिए लड़ रहे थे।