मनीष कुमार जोशी
भारत में एक दौर था जब बैडमिंटन में पुरुषों का दबदबा होता। समय बदला और महिलाओं ने धाक जमानी शुरू की। साइना नेहवाल के बाद पीवी सिंधू के रूप में भारत ने बैडमिंटन में भारत का सिर ऊंचा किया। एक के बाद एक जीत ने साइना और सिंधू को भारत के दिगग्ज बैडमिंटन खिलाड़ियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया। अब एक बार फिर इस खेल में पुरुष युग का उदय हुआ है। किदाम्बी श्रीकांत ने एक साल के भीतर चार सुपर सीरीज खिताब और लगातार छह खिताबों पर कब्जा कर खुद को साबित किया है।
दरअसल कई साल तक भारतीय पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ियों प्रकाश पादुकोण, सैयद मोदी, पुलेला गोपीचंद और विमल कुमार ने दुनिया में अपनी चमक बिखेरी थी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम किया, लेकिन इसके बाद लंबे समय के लिए एक खालीपन आ गया। कोई भी उस स्तर का पुरुष शटलर तैयार नहीं हो पाया जिसे खेलते देखकर दुनिया कहे कि, हां यह तो शीर्ष शटलरों को भी हराने का माद्दा रखता है। अब इस खाली जगह को श्रीकांत ने भर दिया है। कोरियाई ओपन, डेनमार्क, आस्ट्रेलियाई और फिर फ्रेंच ओपन जीत कर किदाम्बी ने बैडमिंटन जगत में सनसनी फैला दी है। आलम यह है कि अब तो चोटी के शटलर को भी इस 23 साल के भारतीय से खेलते समय काफी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह संकेत है कि बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण युग लौट आया है। संभावना यह भी है कि इस हफ्ते जारी होने वाली विश्व रैंकिंग में किदाम्बी दूसरे स्थान पर पहुंच सकते हैं।
आंकड़े भी इस युवा शटलर की कामयाबी के गवाह है। 240 मैचों में से 160 में जीत और महज 81 में हार। इससे साफ है कि वे लंबी रेस के घोड़े हैं। हालांकि बैडमिंटन जानकारों के मन में एक सवाल यह भी है कि किदाम्बी प्रकाश युग को लाएंगे या भारतीय बैडमिंटन को एक अलग मुकाम तक ले जाएंगे। उनका मानना है कि शुरुआत में किदाम्बी के लिए स्थितियां अनुकूल नहीं थीं। श्रीकांत ने करिअर की शुरुआत तब की जब दुनिया में भारतीय महिला शटलरों की तूती बोल रही थी। उनकी पहली चुनौती तो इनसे पार पाकर अपनी अलग पहचान बनाने की थी। हालांकि श्रीकांत ने इन सभी चुनौतियों को स्वीकार किया और लगातार आगे बढ़ते रहे। 2016 रियो से बगैर पदक लौटे श्रीकांत ने 2017 में प्रवेश के साथ ही धमाल शुरू कर दिया। सात महीने, पांच फाइनल और चार खिताब के साथ वे देश के पहले शटलर हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।

