प्रत्यूष राज
खेल के लिहाज से भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है जरूरत होती है बस उस प्रतिभा को पहचानने की और निखारने की। जब ऐसा होता है तो गरीबी और मजबूरी के दलदल में भी कामयाबी के फूल खिल जाते हैं। भारत की जूनियर हॉकी खिलाड़ी अन्नू की कहानी भी है जिनके खेल के सफर की शुरुआत सिर्फ मुफ्त के खाने के लिए हुई थी लेकिन आज वह भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाने की तैयारी में जुटी हुई हैं।
मुफ्त खाने की उम्मीद में हुई हॉकी सफर की शुरुआत
अन्नू स्कूल में हॉकी खेला करती थीं। वहां एस्ट्रोटर्फ नहीं था। उसी स्कूल के एक टीचर ने अन्नू के पिता को बेटी की प्रतिभा के बारे में बताया और उसे सिरसा की नर्सरी में ले जाने को कहा। अन्नू ने वहां ट्रायल्स दिए और उनका चयन हो गया। अन्नू के पिता के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यही थी कि उनकी बेटी को स्पोर्ट्स नर्सरी में मुफ्त में रहना और खाना-पीना मिलने वाला है। अन्नू की मां इसके लिए तैयार नहीं थीं। ऐसे में रोती बेटी को जीवन का पाठ सिखाने के लिए अन्नू के पिता उन्हें वही छोड़कर घर लौट गए। उनका यही फैसला अन्नू की जिंदगी की सबसे बड़ी सौगात बन गया।
अन्नू के पास नहीं होता था बस का भी किराया
साई के हिसार सेंटर में भी अन्नू ने सभी को अपने खेल से प्रभावित किया। एक बार वह दो दिन की छुट्टी लेकर घर गईं और पांच दिन बाद आई तो कोच आजाद सिंह मलिक ने उन्हें बहुत डांटा। अन्नू ने तब रोते हुए बताया कि उनके पास बस के किराये के पैसे नहीं थे और इसलिए वह समय से नहीं आ पाईं। आजाद मलिक को तब पता चला कि अन्नू उधार की हॉकी से खेलती हैं और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अन्नू को हिसार जाने की अनुमति भी इसी शर्त पर मिली थी कि उनके रहने और खाने का खर्चा साई ही उठाएगा।
अन्नू ने जूनियर एशिया कप में मचाया धमाल
जब आजाद मलिक ने अन्नू की प्रतिभा और आर्थिक स्थिति का जिक्र अपने दोस्त करम पाल सिंधु से किया तो उन्होंने इस खिलाड़ी को स्पॉन्सर करने का फैसला किया। वह अन्नू के लिए जूते, हॉकी स्टिक और पूरी किट लेकर आए। अन्नू को बस इसी साथ की जरूरत थी। धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा रंग दिखाने लगी। उनका भारतीय टीम में चयन हो गया। हाल ही में हुए जूनियर एशिया कप में भारत को चैंपियन बनाने में अन्नू का अहम रोल रहा। वह इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने वाली खिलाड़ी रहीं।