बंगाल की राजधानी कलकत्ता से दूर एक छोटे से कस्बे नदिया की लड़की अपने आस-पास रहने वाले लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी। शुरुआत में गेंद फेंकती और छक्के-चौकों की बौछार होती। लड़कों ने धीमी गेंदबाज का तमगा लगा दिया। इसी को तोड़ने और अपने लक्ष्य को पाने के लिए उस खिलाड़ी ने तेज गेंदबाजी की राह पकड़ी। उसने ठान लिया कि अब रफ्तार से ही सबको चित करेंगी। कुछ समय बाद अपनी शानदार प्रदर्शन से भारतीय महिला टीम के तेज आक्रमण की अगुआ बन कर उभरीं। हम बात कर रहे हैं दिग्गज तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी की।
झूलन ने भारतीय तेज गेंदबाजी को एक नया स्वरूप दिया। पांच फुट 11 इंज की लंबाई के साथ झुकती हुई रनअप लेकर जब वह गेंद फेंकती हैं तो बल्लेबाजों के पसीने छूट जाते हैं। गोस्वामी की गेंद में तेजी के साथ सीम भी होती है। साथ ही गेंद को बाउंस कराने की अपनी कला के साथ वह काफी खतरनाक गेंदबाज साबित होती हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 329 विकेट लेने वाली इस खिलाड़ी ने महिला क्रिकेट को पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।
बचपन से क्रिकेट को चाहने वाली झूलन ने करीब 15 साल की उम्र के बाद गंभीरता से क्रिकेट खेलना शुरू किया। उन्होंने सीजन गेंद से अभ्यास शुरू किया। इससे पहले वह कॉस्को गेंद से ही खेलती थीं। हालांकि उनके लिए क्रिकेट को चुनना आसान नहीं था। नदिया से 80 किलोमीटर दूर कोलकाता पहुंचना और अभ्यास करना काफी मुश्किल था। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी। रोजाना सुबह साढ़े चार बजे ट्रेन पकड़तीं और अभ्यास के लिए हाजिर रहतीं। उनके इस मेहनत में मां-बाप के साथ ने चार चांद लगा दी।
झूलन ने अभ्यास करते हुए काफी कुछ सीख लिया था। हालांकि वह क्रिकेट को जुनून अब तक नहीं बना पाई थीं। लेकिन एक मौके ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने भारतीय टीम में शामिल होकर विश्व कप खेलने का सपना भी साकार किया। 1997 महिला विश्व कप का फाइनल मुकाबला ईडन गार्डंस पर खेला जा रहा था। झूलन तब तक मुख्य टीम का हिस्सा नहीं बनी थीं। उन्हें वॉलंटियर के तौर पर मैदान में रखा गया। यहां मुकाबला आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच खेला जा रहा था। इस दौरान उन्होंने बेलिंडा क्लार्क, डेबी हॉकी, कैथरीन फिट्जपैट्रिक जैसे खिलाड़ियों को खेलते देखा। उनके खेल ने झूलन को काफी प्रेरित किया और इसी मैच के बाद क्रिकेट उनका जुनून बन गया।
क्रिकेट खेलने के साथ झूलन का संघर्ष भी बढ़ता जा रहा था। साल 2000 में बाबुल से झूलन का सफर तय करने के क्रम में वे पूर्वी क्षेत्रा से गेंदबाजी कर रही थीं। दस ओवर में उन्होंने 13 रन देकर तीन विकेट लिए। एअर इंडिया जैसी मजबूत टीम के खिलाफ उनका यह प्रदर्शन काफी प्रभावी था। उनके सामने अंजू जैन जैसी शानदार खिलाड़ी बल्लेबाजी कर रही थी। उनके इस प्रदर्शन के बाद उन्हें एअर इंडिया में नौकरी का प्रस्ताव मिला। इसके साथ ही झूलन को भारतीय टीम में शामिल होने का माकूल रास्ता भी मिल गया। उन्होनें दो साल बाद यानी 2002 में भारतीय टीम के लिए पहला मैच खेला।
दस टैस्ट में 40 विकेट चटकाने वाली झूलन के लिए यादगार साल आया 2006 का। इंग्लैंड के खिलाफ पहली टैस्ट सीरीज जीतने में भारतीय टीम के लिए वह हीरो थीं। मैच के दोनों पारियों में पांच-पांच विकेट लेकर उन्होंने अपनी दमदार गेंदबाजी का लोहा मनवाया। पहली पारी में 13 ओवर में चार मेडन, 33 रन और पांच विकेट। वहीं दूसरी पारी में 36.2 ओवर, 21 मेडन, 45 रन और पांच विकेट ने झूलन के लिए टीम में जगह पक्की कर दी। इंग्लैंड की जमीन पर उसी के खिलाफ उनका यह प्रदर्शन भारत के दिग्गज गेंदबाजों में उन्हें स्थापित कर दिया।