लाजवाब प्रदर्शन से इस साल भारतीय महिला खिलाड़ियों की ज्यादा धूम रही। नारी शक्ति की चमक के बीच सवाल यह उठ रहा है कि कौन सा प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा। खेल एक नहीं हैं, अलग-अलग हैं और हर खिलाड़ी का प्रदर्शन अपने आप में ऐतिहासिक रहा। बात तीन बच्चों की मां एमसी मैरी कॉम की हो, बैडमिंटन जगत की नई क्वीन पीवी सिंधू, टेबल टेनिस की प्रतिभावान खिलाड़ी मनिका बत्रा की, युवा एथलीट हिमा दास की या फिर महिला पहलवान विनेश फोगाट की, सभी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन से देश का मान बढ़ाया है। राष्ट्रमंडल खेलों में साइना नेहवाल की सफलता और मनु भाकर और दीपा कर्मकार के करतबों ने भी सभी का ध्यान खींचा। साल जाते-जाते पीवी सिंधू ने ऐसा कमाल कर दिखाया जो भारतीय बैडमिंटन में पहले कभी नहीं हुआ। सिंधू ने चीन में आयोजित बीडब्ल्यूएफ विश्व टूर फाइनल्स का खिताब जीता। 23 साल की सिंधू ने जापान की नाजेमी ओकुहारा को हराकर अपने खिताबी सूखे को समाप्त किया। सितंबर 2017 के फाइनल में हार के बाद उन्हें जीत नसीब हुई। इस साल उन्होंने पांच फाइनल हारे जिससे उनके नाम के साथ ह्यचोकर’ जुड़ गया था। लेकिन यह खिताबी जीत अहम है। इससे निश्चित ही 2019 के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
बैडमिंटन इतिहास में नया अध्याय लिखने वालीं सिंधू इस सफलता से जुड़ने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं। वैसे 2011 में साइना नेहवाल और 2017 में सिंधू को फाइनल मुकाबले में शिकस्त मिली थी। सबसे सराहनीय बात यह रही कि इस सफर में उन्होंने विश्व की नंबर एक खिलाड़ी ताइ जू बिंग को हराया। चीनी ताइपे की यह खिलाड़ी साइना और सिंधू के लिए हमेशा बाधा बनती रही है, लेकिन सिंधू ने इस बार जबरदस्त जुझारूपन, टेंपरामेंट और अनुशासित खेल से चीनी ताइपे की खिलाड़ी को फतह किया। इससे अब सिंधू को ज्यादा गंभीरता से लिया जाएगा। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में पहली बार महिला सिंगल्स का फाइनल भारतीय खिलाड़ियों के बीच खेला गया। साइना नेहवाल ने ओलंपिक पदक विजेता पीवी सिंधू को 21-18, 23-21 से हराकर स्वर्ण जीता। इन खेलों की टीम स्पर्धा में पहली बार देश को स्वर्ण दिलाने में सहयोग दिया। साइना ने जकार्ता में एशियाई खेलों में भी कांस्य पदक जीता। उन्हें ताइ जू बिंग ने खिताबी संघर्ष में हराया था। इसका बदला सिंधू ने टूर फाइनल्स में उसे शिकस्त दे चुका लिया।
एथलेटिक्स की नई पोस्टर गर्ल बनकर उभरी है असम के धींग गांव की 18 वर्र्षीया हिमा दास। फिनलैंड में अंडर-29 विश्व चैंपियनशिप में इस किसान की बेटी ने चमत्कारिक दौड़ लगाते हुए महिलाओं की 400 मीटर दौड़ 51.48 सेकंड में जीतकर सुर्खियां बटोरीं। उनकी इस जीत ने एथलेटिक्स में सभी बेहतरीन भारतीय प्रदर्शनों को पीछे छोड़ दिया। इसके बाद इंडोनेशिया में आयोजित हुए एशियाई खेलों में भी शानदार प्रदर्शन से उन्होंने स्वर्ण और रजत पदक जीते। उनके प्रदर्शन से तो लगता है कि वह पीटी उषा की तरह लंबे समय तक भारतीय एथलेटिक्स को चमकाएंगी। हिमा से पहले विश्व स्तर पर आयु वर्ग चैंपियनशिप में पदक सीमा पूनिया ने डिस्कस थ्रो में जीता था। पर ट्रैक पर स्वर्ण पदक जीतने वाली हिमा पहली भारतीय एथलीट हैं। हिमा का फिलहाल लक्ष्य पदक जीतना नहीं, टाइमिंग बेहतर निकालना है। इसमें सफलता मिली तो पदक जीतने की संभावना प्रबल हो जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस के नक्शे पर भारतीय खिलाड़ी सफलता के लिए तरसते रहे हैं। लेकिन अब उन्हें भी आंशिक सफलता मिलने लगी है। राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता के बाद जकार्ता एशियाड में मनिका बत्रा का कांस्य पदक जीतना भी ऐतिहासिक रहा। हालांकि यह पदक उन्हें मिश्रित युगल में अचांत्या शरत कमल के साथ मिला। दोनों की जोड़ी सेमीफाइनल में चीनी जोड़ी से 1-4 से परास्त हुई। खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर था जब भारत के हिस्से में पदक आया। जहां चीन, जापान, कोरिया, चीनी ताइपेइ और सिंगापुर जैसे मजबूत राष्ट्र हों, वहां पदक मिलना काबिले-तारीफ है।
इससे यह भी साबित हुआ कि इसी साल आस्ट्रेलियाई शहर गोल्ड कोस्ट में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में मनिका का प्रदर्शन तुक वाला नहीं था। वहां मनिका ने चार पदक जीते थे। विश्व में 52वीं रैंकिंग की मनिका के लिए पदक से भी बड़ी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस फेडरेशन ने उन्हें कमाल का प्रदर्शन करने वाली खिलाड़ी के पुरस्कार से नवाजा। 2018 को अपने करिअॅर का सर्वश्रेष्ठ वर्ष मानने वालीं मनिका ने पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को टीम स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। फिर सिंगल्स में भी स्वर्णिम प्रदर्शन से इतिहास रचा। स्वर्ण पदक जीतने वाली वे पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं। महिला युगल में मौमा दास के साथ रजत और मिश्रित युगल में ज्ञानशेखरन के साथ कांस्य पदक जीता।
कुश्ती में विनेश फोगाट राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वालीं पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं। विनेश ने लगातार दूसरी बार राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का भी कारनामा किया।
मणिपुर के कांगेचेढ़ गांव से मुक्केबाजी की नई ऊंचाइयों का मैरी कॉम का सफर गजब का रहा है। नई दिल्ली में कुछ सप्ताह पूर्व आयोजित हुई विश्व चैंपियनशिप में मैरी कॉम ने 35 साल की उम्र में छठी स्वर्णिम सफलता दर्ज कर अपने को इतिहास की महान मुक्केबाज बना लिया। आठ साल बाद मिले छठे सोने ने 2016 के रियो ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर पाने की निराशा को दूर किया। मुक्केबाजी में चपलता, ऊर्जा, कौशल सभी का संगम जरूरी है। मुक्केबाज जितना युवा होगा, उतना ही फुर्तीला होगा। मैरी कॉम ने अपने कौशल को उम्र के मुताबिक ढाला है। वे पहले जीत के लिए ऊर्जा और ताकत का इस्तेमाल करती थीं लेकिन अब उन्होंने अनुभव के साथ कौशल से जीतने का मंत्र पा लिया है। रिंग में उनकी छठी सफलता जबरदस्त मेहनत का परिचायक है।
2017 में रिंग में वापसी करने वाली मैरी कॉम के लिए 2018 का साल तो शानदार रहा। उन्होंने लाइट फ्लावेट (48 किलो) में चार स्वर्ण पदक जीते। ये स्वर्ण उन्हें राष्ट्रमंडल खेल, इंडियन ओपन, सिलेसियम ओपन और विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में मिले। जिस खूबी से उन्होंने मानसिक तौर पर हर मुकाबले के लिए अपने को तैयार किया, उसकी तारीफ करनी होगी। खास तौर से उनकी डिफेंस की जिसका उनकी सफलता में काफी योगदान रहा। 2012 के लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता मैरी कॉम इस सफलता से उत्साहित हैं और 2020 के तोक्यो ओलंपिक को भी यादगार बनाना चाहती हैं।