लंबे इंतजार के बाद आखिरकार बंगाल के आकाश दीप को टीम इंडिया के लिए डेब्यू करने का मौका मिला। क्रिकेट के लिए जीने वाले आकाश दीप ने अपने सपने को पूरा करने के लिए कई तरह की परेशानियों का सामना किया। उन्हें एक समय पर घर की जिम्मेदारियों के कारण क्रिकेट से दूर भी होना पड़ा लेकिन इस खेल से उनका रिश्ता टूटा नहीं। शुक्रवार को रांची में आकाश दीप को अपने सब्र का फल मिला।
आकादीप ने दो महीने के अंदर ही पिता और भाई को खोया
आकाशदीप का परिवार बिहार के सासाराम में रहता था। वह नौकरी की तलाश में सासाराम से दुर्गापुर चले आए। अपने चाचा की मदद से उन्हें यहां नौकरी मिली। इसी दौरान उन्होंने एक लोकल क्रिकेट अकेडमी में ट्रेनिंग भी शुरू की लेकिन उनका क्रिकेट का सफर इतना आसान नहीं था। कुछ समय बाद उनके पिता को स्ट्रोक आया जिससे उनका निधन हो गया। दो महीने बाद आकाश दीप के बड़े भाई का भी निधन हो गया।
क्रिकेट से दूर हुए आकाशदीप
पिता और भाई के गुजर जाने के बाद मां की जिम्मेदारी आकाश के सिर पर आ गई। घर में कमाने वाला कोई नहीं था। इसी कारण आकाश को तीन साल तक क्रिकेट से दूर रहना पड़ा। इसी दौरान उन्हें एहसास हो गया कि क्रिकेट ही उनकी जिंदगी है।
आकाशदीप ने नहीं मानी हार
वह एक बार फिर दुर्गापुर की अकेडमी में लौटे। उन्हें सबसे पहले बंगाल अंडर 23 टीम में मौका मिला। वह दुर्गापुर से कोलकाता चले गए और किराये के मकान में रहने लगे। कुछ समय बाद ही उन्हें रणजी ट्रॉफी में डेब्यू का मौका मिला। आकाशदीप के करियर को गति मिली जब उन्हें आईपीएल में आरसीबी ने चुना। साल 2022 में आकाशदीप को आरसीबी ने 20 लाख रुपए में खरीदा। इस टीम के लिए उन्होंने अब तक 7 मैच खेले जिसमें छह विकेट हासिल किए। आईपीएल से ही वह इंडिया ए तक पहुंचे और फिर सीनियर टीम में मौका मिला।
डेब्यू को बनाया यादगार
रांची में शुक्रवार को इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट मैच में आकाशदीप को हेड कोच राहुल द्रविड़ ने टेस्ट कैप दी। अपने दूसरे ही ओवर में आकाशदीप ने जैक क्रॉली को बोल्ड किया लेकिन यह गेंद नो बॉल रही। हालांकि अपने पहले विकेट के लिए उन्हें लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। 10वें ओवर में ओपनर बेन डकेट आकाशदीप का पहला शिकार बने। इसके बाद उन्होंने इस सीरीज में 196 रनों की पारी खेलने वाले ओली पोप को बिना खाता खोले ही पवेलियन भेज दिया। जैक क्रॉली भी फिर आकाशदीप का ही शिकार बने। रांची में आकाशदीप ने अपने स्पैल से स्टेडियम में बैठी मां और बहनों को गर्व महसूस करने का मौका दिया जो इस संघर्ष के समय में उनके साथ थीं।