‘मैं तेंदुलकर, धोनी या कोहली नहीं हूं, वे मुझ पर फिल्म क्यों बनाना चाहते हैं?’ प्रवीण ताम्बे की यह पहली प्रतिक्रिया थी, जब एक प्रोडक्शन हाउस ने उनके जीवन पर फिल्म बनाने के विचार के साथ उनसे संपर्क किया था। मुंबई के एक होटल में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए आयोजित एक विशेष स्क्रीनिंग में, उन्होंने पहली और इकलौती बार फिल्म ‘कौन प्रवीण ताम्बे?’ देखी।

उस समय श्रेयस अय्यर भी मौजूद थे। वह रोने लगे। मुंबई टीम के उनके पूर्व साथी अभिषेक नायर और विदेशी खिलाड़ियों ने फिल्म के अंत में उन्हें गले लगा लिया। प्रवीण ताम्बे को दर्शकों को संबोधित करने के लिए कहा गया था, लेकिन वह नहीं कर पाए; उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। उन्होंने किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू किया। प्रवीण ताम्बे ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘केवल एक चीज जो मैं उन्हें बता सकता था, वह है अपने सपनों का पीछा करना और सपने सच होते हैं।’

शायद ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो विश्वास के साथ इन शब्दों को कहने के लिए उनसे अधिक योग्य हों। शायद उन्हें भी नहीं पता था कि उनका जीवन नाटकीय रूप से बदल जाएगा। जब उनके जीवन पर फिल्म रिलीज होने वाली थी, प्रवीण ताम्बे तब कैरेबियन में चैंपियंस लीग खेल रहे थे। वह फिल्म निर्माण के लिए अपनी अंतिम स्वीकृति भी नहीं दे पाए थे। यह काम उनके लिए उनके परिवार ने किया।

ताम्बे शर्माते हुए बताते हैं, ‘मैंने अपनी पत्नी और मेरे भाई से पूछा, यह कैसा रहेगा? सभी ने कहा कि यह बहुत अच्छा है। वे मुझे कहानी सुना रहे थे, मैंने कहा, नहीं-नहीं, प्लीज मत, मुझे खुद फिल्म देखने दो। फिर मैं हंसा, अरे यह तो सिर्फ मेरी कहानी है। फिर भी, जब फिल्म निर्माताओं ने उनसे फिल्म के लिए संपर्क किया, तो ताम्बे को यकीन नहीं हुआ।’

अब केकेआर के साथ कोचिंग टीम का हिस्सा ताम्बे ने फोन पर बताया, ‘पहली बार मैंने कहा नहीं, मैंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन उन्होंने मुझे फिर से फोन किया और मुझसे एक बार मिलने का अनुरोध किया। वे 41 साल के ताम्बे के सफर को दिखाना चाहते थे। उनके वे शब्द जो मुझे दिल को छू गए वे यह थे कि लोगों को पता था कि आपने 41 साल की उम्र में डेब्यू किया है, लेकिन पिछले 20 साल में आपने जो किया, लोगों को आपके संघर्ष को जानना है। मैं सहमत हो गया।’

प्रवीण ताम्बे की जिंदगी की पटकथा में कई मोड़ आए। एक कदम आगे, दो कदम पीछे लगातार बना रहा। पेशेवर रूप से क्रिकेट खेलना उनका बचपन का सपना था, लेकिन इसमें रुकावट पड़ी। ऐसे कई लोग हैं जो मानते हैं कि जीवन का भाग्य हथेलियों की रेखाओं में चलता है, लेकिन ताम्बे के मामले में, सचमुच उनकी हथेलियों ने ही उनके जीवन की दिशा बदल दी।

वह कोच विद्या पराडकर ही थे, जिन्होंने जोर देकर कहा कि ताम्बे को लेग-स्पिन की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि उनके पास बड़ी हथेलियां हैं। इसमें कुछ समय लगा लेकिन ताम्बे लेग स्पिनर बन गए। 41 साल की उम्र में उन्हें मुंबई विजय हजारे ट्रॉफी टीम के लिए चुना गया था, लेकिन वह नहीं खेल पाए। साल 2013 में, उन्हें राजस्थान रॉयल्स ने अपनी टीम का हिस्सा बनाया। उसके बाद वह आईपीएल में अन्य फ्रेंचाइजी के लिए भी खेले। वह 2014 सीजन में मुंबई रणजी ट्रॉफी के लिए भी खेले।

फिल्म की रिलीज के बाद से ताम्बे के मोबाइल फोन के इनबॉक्स में संदेशों की बाढ़ आ गई है। उन्होंने बताया, ‘मेरा फोन बजना बंद नहीं हुआ है। मेरे फोन पर हजारों मैसेज आ चुके हैं। पहले मुझे क्रिकेट जगत से संदेश मिलते थे, लेकिन अब मुझे कॉरपोरेट और अन्य क्षेत्रों से संदेश मिल रहे हैं। इसका मतलब है कि फिल्म ने बहुत लोगों के दिल को छुआ है।’

फिल्म निर्माण से पहले प्रोडक्शन क्रू ने उन्हें यह भी बताया कि उनकी बायोपिक में कुछ काल्पनिक किरदार जोड़े जाएंगे। पत्रकार, जिसने अपने करियर में ताम्बे को नीचा दिखाने की कोशिश की, ऐसा ही एक काल्पनिक चरित्र था। फिल्म से पहले लेखकों ने उनके अतीत की समीक्षा की। मुंबई के परेल से लेकर न्यू मुंबई शिफ्ट होने तक सभी इलाकों को कवर किया गया। अभिनेता श्रेयस तलपड़े ने उनके एक्शन की नकल करने के लिए ताम्बे के साथ चार बैठकें कीं।

प्रवीण ताम्बे ने याद करते हुए बताया, ‘सबसे बड़ी समस्या मेरे पैटर्न को चुनने की थी। श्रेयस तलपड़े ने मुझे बताया कि हर किसी का कोई न कोई पैटर्न होता है और हम उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन मेरे मामले में कोई पैटर्न नहीं है। मैंने उनसे कहा कि हम एक खिलाड़ी के रूप में हमेशा यूनिक होने की कोशिश करते हैं, अगर जो पढ़ लिए तो बैट्समैन मारेगा।’ हालांकि, अब यह कहना गलत नहीं होगा कि 1200 रुपए मासिक कमाने से लेकर 6 अंकों का वेतन का चेक पाने तक, तांबे ने यह सब देखा है। अब कोई नहीं पूछता, ‘कौन प्रवीण तांबे?’