भारत के लिए चेस ओलंपियाड में गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए भारतीय चेस फेडरेशन ने सम्मान समारोह रखा था। मंच पर सभी खिलाड़ी एक साथ बैठे हुए थे। डी हरिका की गोद में उनकी दो साल की बेटी थी। लोगों की तरफ नहीं बल्कि वह पीछे लगे बैकग्राउंड की ओर देख रही थी जिसमें उनकी मां की तस्वीर थी। वह हरिका को वह तस्वीर दिखा रही थीं। हरिका के बगल में बैठे थे कैंडिटेट्स चैंपियन डी गुकेश। वह हरिका की बेटी हानविका की खुशी देख रहे थे। हानविका के चेहरे पर हंसी और आंखो में अपनी मां की तस्वीर को देखकर एक अलग चमक थी।

हरिका ने चेस के लिए बहुत कुछ त्यागा

हरिका अपने करियर के साथ-साथ बेटी को भी संभालती हैं। चेस ओलंपियाड के कारण उन्हें लगभग तीन हफ्ते बेटी से दूर रहना पड़ा। हरिका ने चेस के लिए बहुत त्याग किए हैं। उन्होंने अपने दो दशक लंबे करियर में कई सफलताएं हासिल की। वह भारतीय चेस में अब एक बड़ा नाम हैं। हालांकि वह नहीं चाहती कि उनकी बेटी शतरंज की खिलाड़ी बने।

हरिका नहीं चाहती बेटी बने चेस खिलाड़ी

हरिका से सवाल किया गया कि क्या वह चाहती हैं कि उनकी बेटी भी उनकी तरह चेस खिलाड़ी बने। हरिका ने कहा, ‘हानविका बहुत छोटी है, अभी कुछ नहीं कह सकती। उसे अपना करियर चुनने की आजादी होगी। हालांकि अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी चेस खिलाड़ी बने।’

हरिका से जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं चेस में सबकुछ देख चुकी हूं। सारे उतार-चढ़ाव। मैं इस खेल के बारे में सबकुछ जानती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी कोई और खेल चुनें ताकि उसके कारण मैं भी एक नया खेल सीख सकूं। मैंने सोचा है कि वह कौन सा खेल होगा लेकिन मैं अभी बताऊंगी नहीं। मैं नहीं चाहती कि मेरे प्लान को नजर लग जाए।’

पहले ओलंपियाड में तोहफे में मिला था सॉफ्ट टॉय

हरिका बुडापेस्ट में चेस ओलंपियाड गोल्ड जीतने वाली महिला टीम की सबसे अनुभवी खिलाड़ी थीं। 13 साल की उम्र में पहली बार ओलंपियाड खेलने वाली हरिका का गोल्ड जीतने का सपना 20 साल बाद पूरा हुआ है। हरिका ने अपने पहले ओलंपियाड और बुडापेस्ट ओलंपियाड का अंतर बताते हुए कहा, ‘जब मैंने अपना पहला ओलंपियाड खेला तो मैं केवल 13 साल की थी। मैं बहुत दबाव में थी। वह दबाव मुझ पर हावी हो रहा था। हमारे कोच को यह दिख रहा था। उन्होंने तब मेरे लिए एक सॉफ्ट टॉय खरीदा और तोहफा में दिया। मैं वह देखकर बहुत खुश हो गई। जबकि इस बार जब मैं गई तो मेरी दो साल की बेटी है। 20 सालों में बहुत कुछ बदल गया।’

आखिरी राउंड में भावुक हो गई थीं हरिका

हरिका को कुछ समय पहले तक यह नहीं पता था कि वह चेस ओलंपियाड में हिस्सा लेंगी। महिला टीम के कप्तान अभिजित कुंठे चाहते थे कि टीम में एक अनुभवी खिलाड़ी हो। कुनेरू हंपी के मना करने के बाद हरिका ने कुछ समय लिया और फिर वह तैयार हो गई। हरिका का प्रदर्शन पूरे टूर्नामेंट में शानदार नहीं था। हालांकि आखिरी दिन उनकी अहम जीत ने टीम को गोल्ड दिलाया। इस मैच को जीतने के बाद हरिका बहुत भावुक हो गई थीं।

20 साल का इंतजार हुआ खत्म

हरिका ने बताया कि वह आंसू खुशी के आंसू थे। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि जिन खिलाड़ियों को मैं जानती हूं उनमें स्वर्ण के लिए मेरा इंतजार सबसे लंबा रहा है। इतने सालों में मुझे कभी समझ नहीं आया कि गोल्ड क्यों नहीं जीत पा रही हूं। पिछली बार यह मेरी गर्भावस्था के दौरान था और उसके बाद मुझे किसी तरह संदेह होने लगा कि क्या ऐसा होगा (भारत का स्वर्ण पदक जीतना)।’ हरिका ने कहा, ”मैं एक भावुक इंसान हूं और मां बनने के बाद मैंने खुलकर अपनी भावनाएं जाहिर करना शुरू कर दिया है।”