पंजाब के एथलीट गुरविंदरवीर सिंह ने ओडिशा के भुवनेश्वर में हुए फेडरेशन कप में 10.35 सेकंड का समय निकालकर 100 मीटर में गोल्ड मेडल जीता। दो दिन में तीन रेस दौड़ने वाले गुरविंदरवीर सिंह ने इडली खाकर रिकवरी की और फिर पोडियम पर पहुंचे। गुरविंदरवीर की कहानी ट्रैक पर शुरू होकर पोडियम पर खत्म नहीं होती, यह कहानी है एक ऐसे एथलीट की है जो सुविधाओं की कमी के बीच अपने सपने को जी रहा है।
गुरविंदरवीर सिंह कर रहे हैं नियमित प्रदर्शन
गुरविंदरवीर सिंह ने साल 2021 में पटियाला में हुई नेशनल इंटरस्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 10.27 सेकंड का समय निकालकर गोल्ड मेडल जीता था। वह महज 0.1 सेकंड के अंतर से नेशनल रिकॉर्ड तोड़ने से चूक गए थे। वहीं उन्होंने उसी साल फेडरेशन कप में भी गोल्ड मेडल जीता। गुरविंदर अंडर14 के स्तर से मेडल ला रहे हैं और रिकॉर्ड भी कायम कर रहे हैं लेकिन उनकी समस्या अब तक कम नहीं हुई है। न तो उन्हें पंजाब एथलेटिक्स एसोसिएशन की ओर से मदद मिल रही है और न ही कोई स्पॉन्सर उनकी ओर हाथ बढ़ा रहा है।
गुरविंदरवीर सिंह और कोच की कहानी
आमतौर पर जब कोई खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है तो उनका ध्यान इस बात पर होता है कि किस तरह वह प्रदर्शन में सुधार करे और मेडल जीते लेकिन गुरविंदरवीर और उनके कोच की कहानी कुछ अलग है। जहां एक ओर उनका ध्यान इस बात पर होता है कि किस तरह वह मेडल जीते वहीं दूसरी ओर उन्हें होटल और खाने के इंतजाम की भी चिंता होती है।
गुरविंदरवीर के पास जूते के लिए भी नहीं है पैसे
गुरविंदवीर सिंह ने जनसत्ता.कॉम से बातचीत में अपने संघर्ष की कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘चैलेंज बहुत बड़ा है पर हम कोशिश कर रहे हैं। कभी अगर जूते चाहिए होते हैं या सप्लिमेंट चाहिए होते हैं तो कोच साहब के दोस्त मदद कर देते हैं। जब हमारे पास कही जाने के पैसे नहीं होते तो हमारे समुदाय के लोग मदद कर देते हैं।’
आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार का मिला साथ
गुरविंदरवीर अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे हैं। घर में केवल एक कमाने वाला है लेकिन फिर भी परिवार गुरविंदरवीर के सपनों को उड़ान देने की कोशिश में लगा है। इस एथलीट ने बताया, ‘मेरे परिवार में माता-पिता, दादी बड़े भाई और बहन है। वह मुझपर मानसिक तौर पर कोई दबाव नहीं डालते हैं। कहते हैं कि हमसे जितना हो सकेगा उतना हम करेंगे। घर पर एक ही कमाने वाला है इसके बावजूद कभी मुझे नौकरी करने के लिए नहीं कहा गया। घरवाले कहते हैं कि हम थोड़ा कम खा लेंगे या कम पहन लेंगे लेकिन तू अपने सपने को पूरा कर। वे चाहते हैं कि मैं यहीं तक न रुकों और आगे बढ़ता रहूं। दो साल तक मैं फिट नहीं था और मैं खेल भी नहीं पााया लेकिन फिर भी उन्होंने साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने बस यही कहा कि अभी हमारा समय नहीं है पर आगे आएगा।’
बिना फिजियो और किसी संसाधन के ट्रेनिंग कर रहे हैं गुरविंदरवीर
गुरविंदरवीर ने बताया कि वह किस तरह संसाधनों की कमी के बीच ट्रेनिंग करते हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर नौकरी होगी तो आर्थिक तंगी कम होगी।हमारे पास बड़े स्पॉन्सर नहीं है, हमारे पास स्ट्रेंथ कंडीशनिंग कोच नहीं है, हमारे पास फिजियो नहीं है, हमारे पास मसाज करने वाला नहीं है, हाइटेक जिम नहीं है। हमारे कोच साहब का जिम है, वहां हमसे जो हो पता है हम वही करते हैं। हमारा देश चाहता है कि हम मेडल लाएं लेकिन उसके लिए जिन सुविधाओं की जरूरत है वह हमारे पास नहीं हैं।’
प्रतियोगिताएं खेलने के लिए करना होता है महीनों का इंतजार
उन्होंने आगे कहा, ‘जिन एथलीट के पास स्पॉन्सर हैं वह फिनलैंड में प्रतियोगिता के लिए गए हैं। वह अगले कुछ हफ्ते वहीं यूरोप में रहेंगे। वहां वह के बाद एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। जब खिलाड़ी प्रतियोगिताओं में लगातार हिस्सा लेता है तो उसके खेल में सुधार होता है क्योंकि हम अपने शरीर को पुश करेंगे। बड़े एथलीट्स के साथ खेलकर हमारी सोच भी बड़ी होती है। हमारे इवेंट में इसी तरह टाइमिंग में सुधार होता है और हम बेहतर करने के लिए प्रेरित होते हैं। मैं वही टूर्नामेंट खेल सकता हूं जो कि भारत में होते हैं। भुवनेश्वर में हुए फेडरेशन कप के डेढ़ महीने बाद अगला टूर्नामेंट है (इंटरस्टेट टूर्नामेंट)। मुझे खुद में सुधार के लिए इस बीच एक-दो और प्रतियोगिताएं चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हो सकता।
सपने देते हैं संघर्ष करने की हिम्मत
इन सबके के बीच गुरविंदरवीर सिंह को मेहनत करते रहने की प्रेरणा अपने परिवार और चाहने वालों से मिलती है। इस एथलीट ने कहा, ‘बहुत चीजें प्रेरित करती हैं। मेरा परिवार और उनके सपने मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। जो मेरे बारे में नकारात्मक चीजें कहते हैं वह भी प्रेरित करते हैं। जो लोग मेरे साथ हैं और इस समय मेरा साथ दे रहे हैं वह भी मेरी मदद कर रहे हैं मैं उन सभी लोगों की उम्मीदों से प्रेरित होता हूं।’