भारत में ऑनलाइन खेलों की तेज रफ्तार से प्रभावित होकर एक व्यक्ति ने तय किया कि अब वह सिर्फ ई-स्पोर्ट्स में ही हिस्सा लेगा। 25 साल के अनिमेश अग्रवाल ने एक ‘गेमिंग टैलेंट एजंसी’ भी खोली है जिसमें वह युवाओं को अपनी प्रतिभा के सहारे आभासी मैदान में दांव लगाने का मौका देते हैं। साथ ही वह अब देश-विदेश में ई-स्पोर्ट्स खेलकर भारत का मान बढ़ा रहे हैं। ऐसी एक कहानी नहीं, हजारों युवा आज भारत में ई-स्पोर्ट्स को अपनी मूल कमाई का जरिया बनाए हुए हैं। इससे पता चलता है कि इस देश में ई-स्पोर्ट्स के लिए काफी जगह है।

आनलाइन खेलों को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला रीयल मनी गेम (आरएमजी), दूसरा मोबाइल पर खेले जाने वाले खेल और तीसरा ई-स्पोर्ट्स। आरएमजी के तहत फैंटेसी लीग, रमी और पोकर जैसे खेल आते हैं जिनमें खिलाड़ी खेल कर सीधे पैसा कमाते हैं। मोबाइल पर खेले जाने वाले खेलों में कैंडी क्रश, सबवे सफर्स और टेंपल रन जैसे खेल हैैं जो आज हर दूसरे व्यक्ति के फोन में उपलब्ध है। तीसरा और सबसे महत्तवपूर्ण है ई-स्पोर्ट्स। इसके तहत फीफा के आभासी टूर्नामेंट, रग्बी और कैरम जैसे खेलों के टूर्नामेंट और पब्जी जैसे खेलों को शामिल किया जाता है। हालांकि आज के समय में भारत में फैंटेसी लीग काफी लोकप्रिय हो रहा है।

डेटा व स्मार्ट फोन सस्ते हो जाने के बाद पहली बार फैंटेसी लीग तक भारतीय की पहुंच काफी आसान हो गई है। बार्क और निलसन की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना पूर्णबंदी के दौरान करीब 68 फीसद ज्यादा लोगों ने मोबाइल गेमिंग में दिलचस्पी दिखाई है। वहीं कोरोना से पहले जहां मोबाइल पर गेम खेलते हुए हर हफ्ते प्रति व्यक्ति 151 मिनट का समय बिताता था वहीं पूर्णबंदी के दौरान यह बढ़कर 218 मिनट हो गया। इन आंकड़ों से यह साफ हो जाता है कि भारत में आॅनलाइन खेलों का भविष्य उज्ज्वल है।

2000-01 में ईएसपीएन की आॅनलाइन टीम चुनने की सुविधा देने के बाद से फैटेंसी लीग ने पांव फैलाना शुरू किया। हालांकि जब तक भारत में प्रीमियर लीग का जन्म नहीं हुआ, तब तक ऐसे लीगों को सफल होना लगभग नामुमकिन सा था। 2008 में क्रिकेट की सबसे बड़ी लीग यानी इंडियन प्रीमियर लीग के आने के बाद इसे नई जान मिली। आज के दौर में क्रिकेट के अलावा फुटबॉल, रग्बी, कैरम, कबड्डी और हॉकी जैसे कई खेलों के लिए फैंटेसी लीग उपलब्ध हैं। इस समय फैंटेसी लीग में करीब 10 करोड़ भारतीय हिस्सा ले रहे हैं।

क्यों इतनी तेजी से बढ़ी फैंटेसी लीग
पारंपरिक रूप से किसी भी खेल प्रशंसक को अपनी पसंदीदा लीग देखने और उसका हिस्सा बनने के लिए स्टेडियम पहुंचना होता है या टीवी पर सीधा प्रसारण देखना होता है। इंटरनेट ने खिलाड़ियों और प्रसंशकों के बीच की दूरी को थोड़ा और कम किया और ट्विटर व फेसबुक जैसे सोशल मीडिया मंचों के सहारे वे आपस में जुड़ने लगे।

फैंटेसी लीग ने इससे एक कदम आगे का प्रयास किया। यहां प्रशंसक खुद की एक टीम तैयार करता है और मैच के दिन वह अपने भरोसे के खिलाड़ियों पर दांव लगाकर जीत या हार का सफर तय करता है। इससे प्रशंसक मैदान पर नहीं होते हुए भी वर्चुअल तरीके से अपनी बनाई टीम में चयनकर्ता और कोच की भूमिका अदा करता है।

फैंटेसी लीग ने बढ़ाई दर्शकों की संख्या
फैंटेसी लीग ने टीवी पर टूर्नामेंट देखने वालों की संख्या में इजाफा किया है। जब लोग फैंटेसी खेलों में भाग लेते हैं तो वे अपनी द्वारा चुने गए खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखने के लिए लाइव मैच देखते हैं। इसके साथ ही वह मैच में खिलाड़ी के प्रदर्शन को देखते हुए आगे की लिए टीम चयन की रणनीति भी तैयार करते हैं। एक शोध में सामने आया कि एक आम दर्शक जहां लाइव मैच देखते हुए हफ्ते में 160-170 मिनट गुजारता है, वहीं फैंटेसी लीग में भाग ले रहा उपभोक्ता 215 मिनट लाइव मैच देखता है। इससे पता चलता है कि फैंटेसी लीग ने किसी भी खेल के लिए दर्शकों की संख्या बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई है।

फैंटेसी लीग में भी क्रिकेट का दबदबा
भारत में ‘क्रिकेट से बड़ा कोई खेल नहीं और क्रिकेटर से ज्यादा कमाऊ कोई ब्रांड नहीं’। ये लाइन भारतीय खेल जगत में बिलकुल फिट बैठती है। इस देश में सबसे ज्यादा प्रशंसक क्रिकेट के पास ही हैं। सबसे ज्यादा पैसा क्रिकेट के पास ही है। सबसे ज्यादा टूर्नामेंट क्रिकेट के ही होते हैं। ऐसे में फैंटेसी लीग में भी इसका ही दबदबा है। कंपनियों की बात करें तो इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी ड्रीम11 की है। यह करीब 90 फीसद हिस्से पर राज करती है तो वहीं अन्य सभी फैंटेसी लीग कंपनिया 10 फीसद में सिमट जाती हैं। इन कंपनियों द्वारा संचालित लीग में 85 फीसद हिस्सा क्रिकेट का है। हालांकि एक शुभ संकेत यह भी है कि 2015 यह हिस्सेदारी 95 फीसद थी जो कुछ सालों में घटी है। इससे यह तय होता है कि भारतीय प्रशंसक अब फुटबॉल, कैरम, कबड्डी, हॉकी, वॉलीबॉल, बेसबॉल और हैंडबॉल में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

भारत में जो फैंटेसी स्पोर्ट्स हैं वह अपने प्रशंसकों को खेल के ज्ञान और कौशल के आधार पर प्रदर्शन का सुरक्षित व वैध मंच मुहैया कराते हैं। 2017 में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद यह साबित हो गया कि यह जुआ नहीं है। यहां एक खिलाड़ी अपनी प्रतिभा और समझ का इस्तेमाल कर अपनी टीम बनाता है और उसे जीत तक ले जाता है। साथ ही कई ग्लोबल रिसर्च ने फैंटेसी लीग को कौशल का वर्चस्व वाला खेल साबित किया है। आइआइएम बंगलुरु के एक अध्यन ने गणितीय तरीके से फैंटेसी लीग के मंच को कौशल वाला खेल साबित किया है।