भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अगले सप्ताह एक इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) गवर्निंग काउंसिल की बैठक बुलाई है। उस बैठक में लीग के स्पॉन्सरशिप डील्स की समीक्षा की जाएगी। उस बैठक में आईपीएल की स्पॉन्सर चीनी कंपनी वीवो से करार खत्म करने का फैसला लिया जा सकता है।

गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प होने के बाद देश में चीनी कंपनियों और उत्पादों को लेकर जबरदस्त विरोध है। चूंकि आईपीएल के स्पॉन्सरशिप राइट्स चीनी कंपनी वीवो (VIVO) के पास हैं। ऐसे में बीसीसीआई पर चीनी कंपनी के साथ करार रद्द करने का दबाव है।

यह वजह है कि दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई अगले सीजन के लिए अपनी स्पॉन्सरशिप पॉलिसी (प्रायोजन नीति) की समीक्षा के लिए तैयार है। अब उसने दुनिया की सबसे महंगी घरेलू क्रिकेट लीग आईपीएल के लिए बड़ा कदम उठाया है।

आईपीएल ने शुक्रवार रात ट्वीट कर कहा, ‘हमारे बहादुर जवानों की शहादत के परिणामस्वरूप हुई सीमा झड़प को ध्यान में रखते हुए आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने आईपीएल के विभिन्न प्रायोजन सौदों की समीक्षा के लिए अगले सप्ताह एक बैठक बुलाई है।’

बीसीसीआई को वीवो से सालाना 440 करोड़ रुपए मिलते हैं। उसके साथ उसका करार 2022 में खत्म होना है। इससे पहले आईपीएल बोर्ड के कोषाध्यक्ष अरुण धूमल ने कहा था कि आईपीएल में चीनी कंपनी से आ रहे पैसे से भारत को ही फायदा हो रहा है, चीन को नहीं। उनका कहना था, ‘जब हम भारत में चीनी कंपनियों को उनके उत्पाद बेचने की अनुमति देते हैं तो जो भी पैसा वे भारतीय उपभोक्ता से ले रहे हैं, उसमें से कुछ बीसीसीआई को ब्रांड प्रचार के लिए दे रहे हैं। बीसीसीआई भारत सरकार को टैक्स (कर) के रूप में 42 प्रतिशत राशि का भुगतान कर रहा है। इससे भारत का फायदा हो रहा है, चीन का नहीं।’

बता दें कि पिछले साल सितंबर तक मोबाइल कंपनी ओप्पो भारतीय टीम की प्रायोजक थी। उसके बाद बेंगलुरु स्थित शैक्षणिक स्टार्ट अप बायजू ने चीनी कंपनी की जगह ली। धूमल ने कहा कि वह चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने के पक्ष में हैं, लेकिन जब तक उन्हें भारत में व्यवसाय की अनुमति है, आईपीएल जैसे भारतीय ब्रांड का उनके द्वारा प्रायोजन किए जाने में कोई बुराई नहीं है।