भारतीय क्रिकेट टीम में ऐसे कई खिलाड़ियों ने क्रिकेट की दुनिया में खूब नाम कमाया जिनकी ना तो आर्थिक स्थिति ठीक थी और ना ही क्रिकेट के टॉप लेवल तक पहुंचना उनके लिए आसान था। इन दिनों एक ऐसे ही खिलाड़ी सुर्खियों में बने हुए हैं। नाम है तनवीर उल हक। तनवीर राजस्थान रणजी टीम के बाएं हाथ के मध्यम गति तेज गेंदबाज है जो रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में अभी तक 47 विकेट अपने नाम कर चुके हैं। आज तनवीर राजस्थान बोलिंग अटैक के अग्रणी गेंदबाज हैं। उनकी टीम अब रणजी ट्रॉफी क्वार्टरफाइल में मंगलवार को बेंगलुरु से भिड़ेगी। बता दें कि क्रिकेट के इस मुकाम तक पहुंचने के दौरान तनवीर के सामने बड़ी से बड़ी परेशानियां आईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी तो उन्होंने कार गराज में काम किया। घर-घर जाकर अखबार बांटे, बच्चों के कपड़े बेचे। जयपुर में चौकीदार की नौकरी तक की।
तनवीर क्रिकेट प्रैक्टिस खत्म होने के बाद पांच घंटे गराज में काम करने के लिए जाते। इसके बदले में 300 रुपए महीना मिलते। पिता दर्जी की दुकान में काम करते थे। उन्हें जब पता चला कि बेटा गराज में काम कर रहा है तो दिल पर बहुत बुरा बीता। उन्होंने तुरंत बेटे की नौकरी छुड़वा दी। पुरानी जिंदगी को याद करते हुए तनवीर कहते हैं, ‘एक दिन अब्बू (पिता) ने मुझे देखा और तुरंत नौकरी छोड़ने को कहा। मैं क्या कर सकता था। क्रिकेट भी तो खाली पेट नहीं खेल सकते थे। मैं जानता था कि परिवार की आर्थिक हालत भी तो ठीक नहीं है। इसलिए क्रिकेट खर्च के लिए मैं काम करना चाहता था।’ तनवीर कहते हैं जिसने एक रुपया नहीं देखा उसके लिए 300 रुपए बड़ी रकम थी।
तनवीर कहते हैं कि गराज की नौकरी छूटने के बाद दोस्त संग आसपास की कॉलोनियों में अखबार बेचने का प्लान बनाया। पिता सोचते कि बेटा सुबह-सुबह नमाज और जॉगिंग के लिए जा रहा है, हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं था। मैं नमाज पढ़कर दोस्त की साइकिल उधार लेता और एक वेंडर से अखबार लेकर लोगों के घरों में पहुंचाता। मगर कभी सोचा नहीं था कि जो अखबार वह घर-घर बांटता है एक दिन उसकी कामयाबी की कहानी इन्हीं अखबारों की सुर्खियां बनेगी। हालांकि साइकिल चलाने के दौरान उनके पैर में चोट लग गई। तब पिता को पता चल गया कि बेटा क्या कर रहा है। तनवीर कहते हैं, ‘पिता को पता चलने के बाद मुझे वो काम भी छोड़ना पड़ा।’
तनवीर ने क्रिकेट नहीं छोड़ा। राजस्थान सीनियर टीम में जगह नहीं थी, इस वजह से उनका संघर्ष अभी और चलना था। पिता के अखबार बेचने से मना करने के बाद उन्होंने पास के गांवों में ठेले पर बच्चों के कपड़े बेचे। हालांकि बाद में यह काम भी बंद करना पड़ा क्योंकि इससे ज्यादा आमदनी नहीं हुई। इन्हीं दिनों तनवीर को उदयपुर में अंडर-22 ट्रायल के लिए सुमेंद्र तिवारी का फोन आया, जो उनके पहले मेंटर और कोच थे। तिवारी ही वह शख्स थे जिन्होंने उनके टैलेंट देखा। तनवीर कहते हैं कि वह तिवारी ही थे जिन्होंने उन्हें पहली कैप, क्रिकेट जर्सी और जूते दिए। यहां तक जिला क्रिकेट में हिस्सा लेने के लिए बस यात्रा के पैसे भी नहीं होते थे। इसके लिए बसों की छत पर बैठकर यात्रा करते।
तनवीर बताते हैं कि उन्हें याद है जब सर ने कहा, ‘कल प्रैक्टिस मैच है, इसिलए सभी का सफेद ड्रेस में आना जरुरी है।’ तनवीर कहते हैं, ‘मगर मेरे पास तो सफेद ड्रेस नहीं थी। मैंने पिता का पायजामा पहना और मैच खेलने चला गया। हर कोई खूब हंसा। तब पड़ोसी दुशयंत त्यागी ने कोच को मेरी आर्थिक हालत के बारे में बताया कि मैं ड्रेस खरीदने में सक्षम नहीं हूं। और अगले ही दिन तिवारी सर ने क्रिकेट का पूरा सामान फ्री में दे दिया। वह अभी भी मुझे यह दे रहे हैं। मैं उनका बहुत कर्जदार हूं।’ किस्मत ने भी तनवीर का खूब साथ दिया। उन्हें चुन लिया गया और तनवीर का सितारा बुलंदी छूता रहा।