“वाह गुरु, छा गए गुरु!” समझ गए न गुरु, हम किसकी बात कर रहे हैं? नवजोत सिंह सिद्धू की। पाजी फॉर्मर क्रिकेटर हैं। जबरदस्त क्रिकेट कमेंट्री और कॉमेडी करते हैं। चलते फिरते शायरी और कविता के कोश हैं। राजनीति में भी जड़ जमा चुके हैं। आज वह बड़े पब्लिक फिगर हैं। बेहद जिंदादिल इंसान के तौर पर जाने जाते हैं। मगर जवानी के दिनों में वह मस्त-मौला थे। खूब आवारागिरी करते थे। दोस्तों के साथ लड़कियां ताकने में उनका वक्त गुजरता था। घर वालों से झूठ बोलते थे। ये बातें वह एक टीवी इंटरव्यू में कबूल चुके हैं। शो में वह बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे। मिसालें और शायरियां सुना रहे थे। अचानक एंकर ने उन्हें टोका और पूछा- आप तब लड़कियां ताकने में समय बिताते थे? जवाब दिया, “बिल्कुल ठीक। कोई बुराई नहीं है इसमें। लड़कियों को दिखाने का शौक है, लड़कों को देखने का शौक है। 16 साल का लड़का राम का नाम नहीं जपेगा।”

आगे पूछा गया कि बाइक फाटक नंबर 22 पर खड़ी होती थी। इस पर उन्होंने कहा कि वहां तीन रेलिंग थीं। हमारे हाथों के निशान आज भी छपे होंगे। वहां एक मिठाई वाले के यहां लड्डुओं के पीछ छिप जाते थे। लड़कियां देखते थे। एक दोस्त था मेरा, जो लड़कियों के सूट का रंग देखकर उनके मोहल्ले का नाम बता देता था। घर वालों का नाम न खराब न हो, बस इसलिए क्रिकेट खेलता था।

सिद्धू पाजी की हरकतों के चलते उनके पिता उन पर नजर रखते थे। वह क्रिकेट प्रैक्टिस के दौरान भी मौजूद रहते थे। इस पर उन्होंने बताया कि फिर भी वह बदले नहीं। बंदर गुलाटी नहीं भूलता। फिल्में उन्हें आकर्षित करती थीं। यही चक्कर था कि उन्होंने घर वालों को खूब बेवकूफ बनाया। घर वाले सुबह दौड़ लगाकर आने के लिए कहते थे। तब वह चुपचाप दूसरे कमरे में सो जाते थे। नौकर को रुपए दे देते थे, ताकि वह चुप रहे। थोड़ी देर बाद छींटे मार कर सामने आते और झूठ बोल देते कि वह दौड़ लगाकर आए हैं।

