आत्माराम भाटी
भारत के इतिहास में 30 अप्रैल, 2020 का दिन अलग-अलग क्षेत्रों के दो हीरो के दुनिया को अलविदा कहने के कारण सदैव याद रहेगा। एक हैं अपनी अदायगी से सबका दिल जीतने वाले अभिनेता ऋषि कपूर और दूसरे भारतीय फुटबॉल को एशियाई खेलों में स्वर्णिम सफलता दिलाने वाले फुटबॉलर चुन्नी गोस्वामी।

अविभाजित बंगाल के किशोरगंज (मौजूदा बांग्लादेश) में 15 जनवरी 1938 को जन्में चुन्नी गोस्वामी को छोटी उम्र से ही फुटबॉल से लगाव हो गया। खेल के प्रति उनके जुनून को देखते हुए 1946 में मात्र आठ साल की आयु में ही मोहन बागान ने उन्हें अपनी जूनियर टीम में शामिल कर लिया। चुन्नी ने भी अपने जादुई खेल से क्लब को निराश नहीं किया और 1954 में सीनियर टीम में जगह बनाई। इसके बाद क्लब के साथ बंगाल और भारत को अब तक के अपने फुटबॉल के स्वर्णिम काल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

ड्रिबलिंग के जादूगर
चुन्नी गोस्वामी इस क्लब में अपने कोच से मिले मार्गदर्शन और सीनियर खिलाड़ियों के खेल की बारीकियों को नजदीक से देखकर लगातार निखरते चले गए। मैदान में जिस तरह से वे अपनी जादुई ड्रिबलिंग, गेंद को अपने नियंत्रण में रखने के चमत्कारिक गुण और तीव्र गति से विरोधी टीमों के सुरक्षा घेरे में लगे खिलाड़ियों को मात देते वह काबिलेतारीफ था। निश्चित था कि उन्हें जल्द ही देश की टीम में खेलने का आमंत्रण मिलेगा। 1956 में वह समय आ ही गया जब उन्हें चीन की ओलंपिक फुटबॉल टीम के खिलाफ एक मैच में पहली बार भारतीय टीम से खेलने का मौका मिला जिसमें भारत ने 1-0 से जीत दर्ज की।

उसके बाद चुन्नी दा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1956 से 1964 तक के आठ साल के अंतरराष्ट्रीय करिअर में देश की ओर से काफी खेले। 1960 रोम ओलंपिक, 1962 जकार्ता एशियाई खेल, 1964 एशिया कप और मडेर्का कप में बतौर इनसाइड फॉरवर्ड की पॉजीशन में स्ट्राइकर के रूप में 50 मैच खेले जिसमें उन्होंने भारत के लिए 16 गोल किए।

देश को पीला तमगा दिलाया
जेंटलमैन कहलाना पसंद करने वाले चुन्नी दा के खेल जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में अपनी कप्तानी में भारत को स्वर्ण पदक दिलाना रहा। इस प्रतियोगिता के फाइनल में भारत ने पीके बनर्जी और जरनैल सिंह द्वारा किए गए गोल की मदद से दक्षिण कोरिया को 2-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता।